8वीं वाहिनी सशस्त्र सीमा बल, खपरैल (सुबलजोत) के कार्यक्षेत्र में आज 10वें आयुर्वेद दिवस के अवसर पर एक विशेष जागरूकता रैली और आयुर्वेद प्रचार कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम श्री मितुल कुमार, कमांडेंट के मार्गदर्शन में सीमा चौकियों पर तैनात जवानों एवं कार्मिकों की सक्रिय भागीदारी से संपन्न हुआ।
कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य सीमावर्ती क्षेत्रों में आयुर्वेद के प्रति जागरूकता फैलाना और पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धति के महत्व को लोगों तक पहुँचाना रहा। रैली के माध्यम से आम नागरिकों को बताया गया कि आयुर्वेद कोई नई चिकित्सा प्रणाली नहीं, बल्कि यह एक प्राचीन और वैज्ञानिक पद्धति है जिसका उल्लेख 2500 वर्षों पूर्व से मिलता है।
विशेषज्ञों और सशस्त्र सीमा बल के कार्मिकों द्वारा स्थानीय लोगों को बताया गया कि आज जो अवधारणाएं आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में उभर कर आ रही हैं, वे आयुर्वेद में पहले से ही मौजूद थीं। उदाहरणस्वरूप, हाल ही में वैज्ञानिकों द्वारा कृत्रिम नाक बनाने की प्रक्रिया को विकसित किया गया, जो कि सुश्रुत संहिता में वर्णित “संधान कर्म” के सिद्धांतों पर आधारित है।
कमांडेंट श्री मितुल कुमार ने सभी कार्मिकों को संदेश दिया कि वे आयुर्वेद के सिद्धांतों को न केवल अपने जीवन में अपनाएं, बल्कि अपने आस-पास के लोगों को भी इसके प्रति जागरूक करें। उन्होंने कहा,
“आयुर्वेद एक जीवनशैली है, जिसे अपनाकर हम न केवल स्वयं स्वस्थ रह सकते हैं, बल्कि समाज और राष्ट्र को भी एक सकारात्मक दिशा दे सकते हैं।“
इस अवसर पर स्थानीय ग्रामीण नागरिकों ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया और सशस्त्र सीमा बल की इस पहल की भूरी-भूरी प्रशंसा की। कार्यक्रम ने न केवल आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा दिया, बल्कि सुरक्षा बलों और स्थानीय लोगों के बीच संवाद और सहयोग को भी मजबूत किया।