सिलीगुड़ी के नरेश मोड़ इलाके के निवासी असित कुमार पाल पिछले 25 वर्षों से मोमबत्ती बनाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि जब उन्होंने यह व्यवसाय शुरू किया था, तब मोमबत्ती का बाजार काफी अच्छा था और बिक्री भी काफी होती थी। लेकिन अब हालात पहले जैसे नहीं रहे।
असित कुमार पाल के अनुसार, “अब टुनि लाइट्स कम खर्च में ज्यादा रोशनी देती हैं, जिससे मोमबत्तियों की मांग काफी घट गई है।” उन्होंने भावुक स्वर में यह भी कहा कि सरकार को इस कुटीर उद्योग को बचाने के लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए।
वहीं, इसी कारखाने के कारीगर सुभाष सरकार ने बताया कि अब किसी तरह काम चल रहा है। पहले जब चीनी टुनि लाइट बाजार में नहीं आई थी, तब रात तक काम करने का समय भी नहीं मिलता था। “अब बस किसी तरह गुज़ारा हो रहा है,” उन्होंने कहा।
सुभाष सरकार ने बताया कि उनके हाथों से बनी मोमबत्तियां शहर के बाहर तक जाती हैं, और अब ये मुख्य रूप से मंदिरों में पूजा-अर्चना के लिए उपयोग की जा रही हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि सरकार इस पारंपरिक कुटीर उद्योग को समर्थन देती है, तो न केवल रोजगार बढ़ेगा बल्कि एक पुरानी शिल्प परंपरा भी जीवित रह सकेगी।