दार्जिलिंग: जुरासिक पार्क यह एक उपन्यास में आधारित फ़िल्म थी जिसमें दर्शाया गया था, कि, विलुप्त हुए डायनासोर को किस तरह से अस्तित्व में लाया गया, जो पूरी तरह काल्पनिक कहानी थी। लेकिन जुरासिक पार्क इस फिल्म में लोगों की मनोभावना को काफी हद तक प्रभावित किया है, 1993 में आई जुरासिक पार्क फिल्म अभी भी पसंद की जाती है क्योंकि जिस तरह से एक काल्पनिक कहानी में जुरासिक पार्क को दर्शाया गया है, वह लोगों को काफी रोमांचित करता है, यह तो हो गई जुरासिक पार्क फिल्में कहानी जो कल्पनिकता से जुड़ी हुई है । लेकिन दार्जिलिंग के पद्मजा नायडू हिमालयन जूलॉजिकल पार्क भारत का पहला फ्रोजन जू बन गया है लेकिन फ्रोजन जून है क्या ? तो क्या यहां भी डायनासोर को पूर्ण जीवित किया जाएगा ? यदि आपके ऐसे सवाल हैं , तो बता दे, ऐसा कुछ नहीं होने वाला , इस फ्रोजन जू में कुछ तकनीक और जलवायु के प्रभाव के कारण उन प्राणियों को अस्तित्व में रखा जाएगा जो विलुप्त होने के कगार में है ।
पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग जो वास्तविक पूर्वी हिमालय में बादलों से घिरा हुआ एक पहाड़ी क्षेत्र है, जिसे पहाड़ों की रानी माना जाता है और यहाँ दार्जिलिंग पद्मजा नायडू हिमालयन जूलॉजिकल पार्क है, जो भारत का पहला फ्रोजन जू बन गया है । यह एक जेनेटिक आर्क है जो हिमालयी वन्यजीवों के डीएनए को -196 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर तरल नाइट्रोजन से भरे स्टील टैंकों में सुरक्षित रखता है। यह चिड़ियाघर और हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी (CCMB) के सहयोग से संभव हो रहा है। इस क्रायोजेनिक संरक्षण पहल का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि, अगर कोई प्रजातियां जंगल में कम भी हो जाएं तो उनका जेनेटिक ब्लूप्रिंट सुरक्षित रहे।
इस विषय पर बंगाल के मुख्य वन्यजीव वार्डन देबल रॉय ने कहा, ‘यह डीएनए नमूनों को संरक्षित करने का एक प्रयास है’ , जहाँ जंगली जानवरों के टिशू सैंपल भी इकट्ठा किया जाएगा, यदि कोई जानवर प्राकृतिक रूप से या किसी दुर्घटना में मर जाता है तो उनके टिशू सैंपल लेकर इस केंद्र में संरक्षित करने का निर्णय लिया है।यहां पर होने वाली लंबी और जटिल प्रक्रिया कहीं ना कहीं जुरासिक पार्क की याद भी दिलाएगा । इस मामले पर चिड़ियाघर के निदेशक बसवराज होलेयाची ने बताया कि, यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है एक डेडीकेटेड लैब में विलुप्त प्रजातियों के गेमेट्स और डीएनए को सुरक्षित किया जाता है ,जो कि, जीवों के लिए बीमा पॉलिसी की तरह है, भविष्य में यदि कोई प्रजाति विलुप्त होने के कगार में आ जाए तो उसके डीएनए का प्रयोग करके उसे फिर से जीवित किए जाने का प्रयास किया जाएगा।
इस प्रक्रिया में पहला जेनेटिक सैंपलिंग जिसके लिए -20 डिग्री सेल्सियस पर भंडारण की आवश्यकता होती है और दूसरा बायो-बैंकिंग, जहां टिशू को -196 डिग्री सेल्सियस पर तरल नाइट्रोजन में डुबोकर रखा जाता है। वैज्ञानिक सेल डैमेज को रोकने के लिए सैंपल तैयार करते हैं।
चिड़ियाघर के एक अधिकारी ने जानकारी दी है, लैब को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली हुई है, हाल ही में वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ जू एंड एक्वेरियम ने इसे अपने लाल पांडा संरक्षण पहलों के लिए चुना है। दार्जिलिंग के पद्मजा नायडू हिमालयन जूलॉजिकल पार्क जिसने भारत के पहले फ्रोजेन जू’ बनने की यात्रा पूरी इसने सही मायनों में जुरासिक पार्क की कहानी को सच साबित करने की एक कोशिश जरूर की है ।
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