April 26, 2025
Sevoke Road, Siliguri
उत्तर बंगाल राजनीति लाइफस्टाइल सिलीगुड़ी

दार्जिलिंग को बंगाल से अलग करने की उठने लगी मांग!

काफी समय पहले पहाड़ में गोरखालैंड की मांग गूंजती थी. सुभाष घीसिंग ने गोरखालैंड की मांग में अपना नारा बुलंद किया था. सुभाष घीसिंग के बाद पहाड़ के कई क्षेत्रीय नेता जिसमें विमल गुरुंग भी शामिल थे, ने गोरखालैंड की मांग में अपने सहकर्मियों के साथ पहाड़ में जोरदार आवाज बुलंद की थी और पूरे पहाड़ को ठप कर दिया था. इसमें हिंसा भी हुई थी. लेकिन वह बात कुछ और थी. आज गोरखालैंड की बात तो नहीं हो रही, परंतु पहाड़ के नेता चाहते हैं कि दार्जिलिंग, कालिमपोंग और आसपास के गोरखाओं को न्याय मिल सके और उन्हें संवैधानिक अधिकार प्राप्त हो. बंगाल सरकार से उम्मीद खो बैठे ये नेता केंद्र सरकार से चाहते हैं कि दार्जिलिंग, कालिमपोंग और डुवार्स को बंगाल से अलग कर दिया जाए.

काफी पहले से ही पहाड़ के गोरखा नेता दार्जिलिंग और आसपास के इलाकों को पश्चिम बंगाल राज्य से अलग करने की मांग उठाते रहे हैं.अब दार्जिलिंग के भाजपा विधायक नीरज जिंबा ने अपनी मांग दोहराते हुए भारत के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र तक लिख दिया है. इस पत्र में नीरज जिंबा ने पश्चिम बंगाल से दार्जिलिंग ,कालिमपोंग और Dooars को अलग करने के संवैधानिक, प्रशासनिक और नागरिक जरूरतों का तथ्य पूर्ण विवरण भी दिया है.

नीरज जिंबा ने अपनी मांग के समर्थन में संवैधानिक, ऐतिहासिक और प्रशासनिक तथ्यों को प्रस्तुत किया है और यह बताने की कोशिश की है कि पश्चिम बंगाल से दार्जिलिंग, कालिमपोंग और Dooars को क्यों अलग किया जाना चाहिए. नीरज जिंबा किसी भी मसले पर विवेकपूर्ण बात रखते हैं और प्रमाणिकता का भी ध्यान रखते हैं. उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि पत्र जारी करने के पीछे उनकी मंशा अलगाववादी भावना नहीं है. बल्कि यह एक संवैधानिक जरूरत है. यह उन्होंने स्पष्ट करने की कोशिश की है.

नीरज जिंबा ने ऐतिहासिकता का उल्लेख करते हुए कहा है कि दार्जिलिंग पहाड़ी, कालिमपोंग और Dooars कभी भी पश्चिम बंगाल के हिस्से नहीं थे. पश्चिम बंगाल में विलय करते हुए कभी भी स्थानीय लोगों की सहमति की जरूरत महसूस नहीं की गई. सरकार ने आजादी के बाद एक तरफा फैसला किया और दार्जिलिंग को बंगाल में विलय कर दिया. अब यह जरूरत महसूस की जा रही है. यहां के लोगों को न्याय मिले और विकास के पूरे अवसर प्राप्त हो, जो उन्हें राज्य सरकार से अब तक मिल नहीं पाया है.

नीरज जिंबा ने अपनी मांग के समर्थन और बात को प्रमाणित करने के लिए कुछ सवाल और तथ्य भी रखे हैं और यह कहा है कि सरकार चाहे तो इसकी जांच कर सकती है.उदाहरण के लिए उन्होंने दार्जिलिंग के विलय की वैधता की जांच की मांग की है. जैसे उन्होंने कहा है कि दार्जिलिंग का जब विलय हो रहा था, तब यहां के लोगों की भावना का ख्याल नहीं रखा गया. अगर उनकी बात गलत है तो इसकी जांच कराई जा सकती है. उन्होंने एक उच्च स्तरीय संवैधानिक आयोग के गठन की भी सिफारिश की है ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए.

नीरज जिंबा चाहते हैं कि सरकार किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले एक राष्ट्रीय परामर्श प्रक्रिया शुरू करे. जिसमें केंद्र सरकार राज्य सरकार और क्षेत्रीय हित धारक शामिल हो. वे यह भी चाहते हैं कि भारतीय गोरखा की पहचान कायम हो. उनकी भाषा और संस्कृति का सम्मान बढ़े और यह सब तभी हो सकता है जब दार्जिलिंग और सीमावर्ती क्षेत्रों को पश्चिम बंगाल से अलग कर दिया जाए. नीरज जिंबा के राष्ट्रपति को लिखे पत्र के बाद देखना होगा कि पहाड़ के अब और कौन-कौन नेता उनकी मांग का समर्थन करते हुए अपनी राजनीतिक रणनीति तय करते हैं.

(अस्वीकरण : सभी फ़ोटो सिर्फ खबर में दिए जा रहे तथ्यों को सांकेतिक रूप से दर्शाने के लिए दिए गए है । इन फोटोज का इस खबर से कोई संबंध नहीं है। सभी फोटोज इंटरनेट से लिये गए है।)

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