September 16, 2024
Sevoke Road, Siliguri
उत्तर बंगाल दार्जिलिंग राजनीति

पहाड़ में अनित थापा अपना घर ‘जोड़ने’ और अजय एडवर्ड ‘फूंकने’ में जुटे!

किसी ने सच कहा है कि पहाड़ की राजनीति को समझना आसान नहीं है. इन दिनों भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा के नेता अनित थापा के दिन गर्दिश में चल रहे हैं. विभिन्न आलोचनाओं से घिरे अनित थापा अपना खोया हुआ सम्मान वापस पाने की कोशिश में जुट गए हैं. जबकि तीन चार साल पुरानी पार्टी हाम्रो पार्टी के नेता अजय एडवर्ड अपना घर तो संभाल नहीं सके, अब नया घर बसाने की चेष्टा कर रहे हैं. पहाड़ के दूसरे छोटे बड़े संगठनों के प्रतिनिधियों तथा नेताओं का भी यही हाल है कि वह कब किस तरफ करवट बदल सकें, कहा नहीं जा सकता है.

किसी समय पहाड़ में सुभाष घीसिंग का डंका बजता था. सुभाष घीसिंग के बाद विमल गुरुंग ने भी पहाड़ में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई थी. लेकिन उसके बाद से पहाड़ में कोई ऐसा मजबूत नेता नहीं दिख रहा है, जिस पर पहाड़ के लोग गर्व कर सकें. अनित थापा बंगाल सरकार के प्रतिनिधि बनकर जीटीए चला रहे हैं और मुख्यमंत्री का गुणगान कर रहे हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी उन्हें निराश नहीं किया है. उन्हें इसका इनाम भी मिला है. बंगाल सरकार ने मिरिक के विकास के लिए 200 करोड़ का तोहफा दिया है. पिछले हफ्ते मिरिक में तीन बड़ी परियोजनाओं के शिलान्यास का कार्यक्रम हुआ. ये परियोजनाएं हैं पेयजल आपूर्ति, सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट और स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र की स्थापना. अनित थापा काफी समय से इसके लिए संघर्ष कर रहे थे.

इसमें कोई शक नहीं है कि वर्तमान में पहाड़ में अनित थापा जीटीए के चेयरमैन होने के नाते अन्य नेताओं के मुकाबले में काफी शक्तिशाली हैं. हाल ही में पंचायत चुनाव में उन्होंने अपनी ताकत को साबित भी किया है . लेकिन कहते हैं ना कि सूर्य उदय होता है तो अस्त भी होता है. हम यह तो नहीं कह सकते कि अनित थापा का सूरज अस्त हो चुका है. परंतु पिछले कुछ समय से उन्हें पहाड़ में भारी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है.

याद करिए जब पिछले साल अक्टूबर महीने में तीस्ता में त्रासदी आई थी. लेकिन GTA के द्वारा कालिमपोंग के बाढ़ पीड़ितों का समुचित पुनर्वास करने में सक्षम नहीं होने के कारण अनित थापा की काफी किरकिरी हुई थी. पश्चिम बंगाल सरकार ने पुनर्वास कार्यक्रम के लिए जीटीए को 25 करोड रुपए देने का वादा किया था. लेकिन सरकार ने उन्हें आज तक पैसा नहीं दिया. NHPC ने भी ठेंगा दिखा दिया.

पहाड़ में जमीन अथवा भूमि के स्वामित्व का मुद्दा काफी पुराना और संवेदनशील रहा है. पहाड़ के लोग पहाड़ की जमीन को गोरखालैंड की प्रॉपर्टी मानते रहे हैं. गोरखा अनित थापा को जमीन और मिट्टी से जुड़े देख रहे थे और उन्हें लग रहा था कि गोरखालैंड के मुद्दे पर उनका दृष्टिकोण सशक्त होगा. पर जिस तरह से पश्चिम बंगाल सरकार ने पहाड़ में जमीन के अधिकार को लेकर थिस लैंड बिलॉन्गस टू द गवर्नमेंट ऑफ़ वेस्ट बेंगल बोर्ड लिखकर लगाया और उसका विरोध अनित थापा द्वारा नहीं किया जाना, पहाड़ के गोरखाओं को उनके खिलाफ आग उगलने का अवसर प्रदान कर गया.

चौतरफा हमले के बाद अनित थापा ने दार्जिलिंग और कालिमपोंग के जिला अधिकारियों के साथ एक बैठक की और इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया. इसके साथ ही उन्होंने जिलाधिकारियों को यह चेतावनी भी दी कि अगर शांत पहाड़ में अशांति उत्पन्न होती है तो इसके लिए वह खुद जिम्मेदार होंगे. बाद में पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से इस बोर्ड को हटा लिया गया.लेकिन तब तक पहाड के लोगों में उनकी छवि काफी धूमिल हो चुकी थी. जानकार मानते हैं कि अनित थापा गोरखाओं में अपनी छवि और सम्मान वापस पाने के लिए मिरिक में तीन बड़ी परियोजनाओं के शिलान्यास के साथ ही अपनी पार्टी भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा का स्थापना दिवस जोर-जोर से मनाने जा रहे हैं.

कुछ राजनीतिक पंडितों का मानना है कि 9 सितंबर को मिरिक में होने वाले अपने कार्यक्रम के जरिए अनित थापा अपनी शक्ति का प्रदर्शन करेंगे. स्थापना दिवस के कार्यक्रम को ऐतिहासिक बनाने की तैयारी चल रही है .विश्लेषकों के अनुसार अनित थापा कालिमपोंग, कर्सियांग और मिरिक नगर पालिकाओं के निकट भविष्य में होने वाले चुनाव को भुनाने के लिए अपना आधार मजबूत करने की तैयारी में जुट गए हैं. जो भी हो कम से कम अनित थापा ने अपनी पार्टी और संगठन को मजबूत बनाने की दिशा में कार्य तो शुरू कर ही दिया है.

जबकि दूसरी ओर अजय एडवर्ड जैसे नेता हैं, जो अपना घर तो संभाल नहीं सके. अब वह कुछ ऐसा करना चाहते हैं कि एक बार फिर से पहाड़ में एक मजबूत ताकत के रूप में उभर सकें. यह वही अजय एडवर्ड हैं, जिन्होंने चार-पांच साल पहले अपनी पार्टी हाम्रो पार्टी का गठन किया था. तब पहाड के लोग उन्हें दिल्ली के दूसरे केजरीवाल की तरह ही एक जुझारू नेता की तरह देख रहे थे. शायद यही कारण था कि 2022 के दार्जिलिंग नगर पालिका के चुनाव में उनकी पार्टी ने 32 सीटों में से 18 सीटों पर विजय हासिल की थी. लेकिन उसके बाद ना तो वे अपनी पार्टी को संभाल सके और ना ही संगठन को.

इसका परिणाम यह निकला कि उनकी पार्टी के नेता एक-एक करके पार्टी छोड़कर जाते रहे और वे बेचारा बनकर देखते रहे. अपनी पार्टी और संगठन पर भरोसा नहीं करने और कांग्रेस के पीछे-पीछे दौड़ने से उनकी छवि और खराब हुई और रही सही पार्टी की ताकत भी बिखर गई. अब उन्होंने फिर से अपने को पहाड़ में स्थापित करने के लिए एक तरफ जहां उन्होंने दार्जिलिंग शहर से 8 किलोमीटर दूर छोटा रंगीत नदी में एक 130 फुट लंबे सेतु का निर्माण कराया है तो दूसरी तरफ 160 फुट लंबे स्काई वाक ब्रिज के निर्माण में भी अपना अहम योगदान दिया है. कहने के लिए तो उनकी पार्टी हाम्रो पार्टी अभी जीवित है परंतु ऐसा लगता है कि यह आखरी सांस गिन रही है.

अगर ऐसा नहीं होता तो पहाड़ में अजय एडवर्ड को केंद्र करके एक नई राजनीति की पार्टी की सुगबुगाहट सुनाई नहीं पड़ती. सूत्रों ने बताया कि अजय एडवर्ड पहाड़ में भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा का विकल्प बनना चाहते हैं. हाल ही में दो सेतु के निर्माण के बाद विधानसभा चुनाव से पहले एक नई राजनीतिक पार्टी का गठन भी चर्चा में है. सूत्रों ने बताया कि अजय एडवर्ड के नेतृत्व में नई पार्टी का गठन होगा जो आने वाले विधानसभा चुनाव में पहाड़ में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगी.

हालांकि यह पार्टी कैसी होगी, उसकी विचारधारा क्या होगी, इसमें कौन-कौन लोग शामिल होंगे, इसके बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं है. कुल मिलाकर कह सकते हैं कि पहाड़ में छोटे बड़े सभी संगठनों के नेताओं के द्वारा एक दूसरे से आगे निकल जाने की होड मची है. सभी अपना अपना आधार मजबूत करने की तैयारी में जुट गए हैं और पहाड़ के गोरखा उनकी तरफ टकटकी लगा कर देख रहे हैं. सबसे बड़ा सवाल यह है कि पहाड़ में सुभाष घीसिंग और विमल गुरुंग के बाद गोरखा का सच्चा प्रतिनिधि इनमें से कौन चेहरा होगा?

(अस्वीकरण : सभी फ़ोटो सिर्फ खबर में दिए जा रहे तथ्यों को सांकेतिक रूप से दर्शाने के लिए दिए गए है । इन फोटोज का इस खबर से कोई संबंध नहीं है। सभी फोटोज इंटरनेट से लिये गए है।)

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