नक्सलबाड़ी के अंतर्गत किलाराम जोत, ताड़ाबारी स्थित कारगिल मोड में उस समय खुदाई का काम चल रहा था, जब अचानक ही वहां कुछ लोग पहुंचे और मजदूरों को खुदाई का काम करने से रोक दिया. दरअसल यहां स्थानीय टीएमसी नेता स्वर्गीय अमर सिन्हा की मूर्ति लगाने के लिए खुदाई उनके परिवार वालों के द्वारा करवाई जा रही थी. काम रोके जाने के बाद मजदूरों ने अमर सिन्हा के घर वालों को इस बात की जानकारी दी, तो स्वर्गीय अमर सिंहा की पत्नी वहां पहुंची.
अमर सिंहा की पत्नी ने खुदाई का काम रोके जाने का कारण पूछा तो इसका विरोध कर रहे लोगों ने कहा कि कारगिल मोड पर शहीद की प्रतिमा के साथ किसी स्थानीय नेता की प्रतिमा लगाना ठीक नहीं है. इससे शहीदों का अपमान होता है. लोगों ने कहा कि यहां पहले से ही राजीव गांधी, कारगिल शहीद सुरेश छेत्री और महात्मा गांधी की प्रतिमा लगाई गई है. यह सभी महान लोग हैं. ऐसे में इन प्रतिमाओं के साथ अमर सिंहा की प्रतिमा लगाना बिल्कुल अनुचित है.
स्वर्गीय अमर सिंहा की पत्नी ने जवाब दिया, आप लोग भूलिए मत कि यहां जो तीन प्रतिमाएं लगाई गई है, वह सब उनके पति की बदौलत ही संभव हो सका है. उनके पति ने न केवल जमीन दी है बल्कि प्रतिमा लगाने का खर्च भी वहन किया है. फिर उनके पति ने मरने से पहले मुझसे कहा था कि अगर मैं मर जाऊं तो मेरी प्रतिमा कारगिल मोड पर ही लगाना. इसलिए मुझे अधिकार है कि मैं अपने पति की आत्मा की शांति के लिए उनकी इच्छा से यहां उनकी प्रतिमा लगाऊं.
इस पर दोनों पक्षों से विवाद बढ़ने लगा. कारगिल मोड़ में फिलहाल तीन मूर्तियां हैं. इनमें से एक मूर्ति राजीव गांधी की है. जबकि दूसरी प्रतिमा कारगिल शहीद सुरेश छेत्री की है. यहां महात्मा गांधी की भी प्रतिमा लगाई गई है. टीकाराम दाहाल बताते हैं कि यह सच है कि स्थानीय दार्जिलिंग जिला टीएमसी पंचायत समिति के सभापति अमर सिंहा की बदौलत ही यहां यह सभी मूर्तियां लगाई गई हैं. भूतपूर्व सैनिक नहीं चाहते हैं कि कारगिल शहीद की प्रतिमा के साथ किसी स्थानीय नेता की प्रतिमा लगाई जाए. इसलिए वह इसका विरोध कर रहे हैं.
स्वर्गीय अमर सिंहा की पत्नी अधिकार की बात करती है. उनका कहना है कि यह जमीन उनकी है और यहां जो प्रतिमाएं लगाई गई है उन्हें लगाने में उनके स्वर्गीय पति का प्रमुख योगदान रहा है. अगर पति की अंतिम इच्छा को वह पूरा करना चाहती हैं तो इसका विरोध क्यों किया जा रहा है. उस दिन दो पक्षों में वाद विवाद इतना बढ़ गया कि मौके पर नक्सलबाड़ी पुलिस, BL और LRO को बुलाना पड़ा. इसके बाद स्थिति नियंत्रण में आई.
टीकाराम दाहाल कारगिल मोड की घटना का प्रत्यक्षदर्शी गवाह है. यहां 2005 में कारगिल शहीद सुरेश छेत्री की प्रतिमा लगाई गई थी. इस प्रतिमा को लगाने में टीएमसी नेता अमर सिंहा ने भारी योगदान दिया था और यहां तक कि अपनी जमीन भी उपलब्ध कराई थी. हालांकि सुरेश छेत्री को दूसरे मुल्क का शहीद बताकर उस समय भी कुछ लोगों ने उनकी प्रतिमा यहां लगाने का विरोध किया था. लेकिन इन सभी के बावजूद अमर सिंहा ने शहीद की प्रतिमा लगाई जो आज भी कारगिल मोड पर स्थित है.
फिलहाल यहां जमीन का विवाद चल रहा है. अमर सिंहा की पत्नी का कहना है कि यह उनकी जमीन है, जहां शहीद की प्रतिमा लगाई गई है. तो दूसरे पक्ष का कहना है कि जमीन तो सरकार की हो गई. ऐसे में प्रशासन की मर्जी के बगैर यहां खुदाई नहीं की जा सकती. भूतपूर्व सैनिक टीएमसी नेता स्वर्गीय अमर सिंहा की यहां प्रतिमा लगाने से रोक रहे हैं. उनका मानना है कि शहीद के साथ एक स्थानीय नेता की प्रतिमा का होना शहीद का अपमान है. दूसरी तरफ अमर सिंहा की पत्नी इसे अपने पति की अंतिम इच्छा बताती है और इसीलिए वह चाहती है कि कारगिल मोड पर लगाई गई प्रतिमाओं के बीच ही उनके पति की भी प्रतिमा लगाई जाए.
भूतपूर्व सैनिकों ने चेतावनी दी है कि अगर स्वर्गीय अमर सिंहा की प्रतिमा कारगिल मोड पर देश के महापुरुषों के बीच लगाई जाती है तो वह शहीद सुरेश छेत्री की प्रतिमा को वहां से हटा लेंगे. यह मामला तूल पकड़ता जा रहा है. लोकसभा चुनाव से पहले नक्सलबाड़ी में टीएमसी नेता की प्रतिमा लगाने के इस प्रकरण ने गुटीय राजनीति को बढ़ावा दिया है. अब यह गांव दो खेमों में बट गया है. एक पक्ष चाहता है कि यहां अमर सिंह की प्रतिमा लगाई जानी चाहिए क्योंकि उनकी बदौलत ही कारगिल मोड पर शहीद सुरेश छेत्री समेत अन्य महापुरुषों की प्रतिमा लगाई गई है. इस पक्ष का यह भी कहना है कि क्योंकि अमर सिंहा की अंतिम इच्छा थी, इसलिए उनकी इच्छा का सम्मान किया जाना चाहिए.
जबकि विरोधी पक्ष का तर्क है कि कारगिल मोड पर जो प्रतिमाएं लगाई गई हैं, वह देश के महापुरुषों की प्रतिमाएं हैं, जिन्होंने देश के लिए कुर्बानियां दी है. ऐसे महापुरुषों के बीच एक स्थानीय नेता की प्रतिमा लगाना क्या महापुरुषों के सम्मान को कम करना नहीं है? दोनों पक्षों का तर्क अपनी जगह पर सही है. फैसला प्रशासन को करना है. इसलिए यह मामला प्रशासन के विचार अधीन है. अब देखना होगा कि प्रशासन का इस पर क्या फैसला आता है? क्या स्वर्गीय अमर सिंहा की पत्नी अपने पति की अंतिम इच्छा को पूरा कर पाती है या फिर जैसा कि कारगिल शहीद सुरेश छेत्री के समर्थक और भूतपूर्व सैनिक संगठन सवाल उठा रहे हैं, उस पर प्रशासन के द्वारा नजरअंदाज करना कठिन होगा?
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