मेदिनीपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में Expired दवा चढ़ाने से हुई एक प्रसूता महिला की मौत तथा अन्य चार मरीजों की गंभीर स्थिति के बाद यह सवाल उठने लगा है कि सिलीगुड़ी में उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल तथा सिलीगुड़ी जिला अस्पताल में इलाज के लिए आए रोगियों को दी जाने वाली दवाइयों में कोई गड़बड़ी तो नहीं होती ?
पिछले दिनों मेदिनीपुर मेडिकल कॉलेज एव॔ अस्पताल में भर्ती कुछ प्रसूता महिलाओं को Expired सेलाइन रिंगर लैक्टेट चढ़ाया गया था. इसके बाद एक महिला की हालत बिगड़ती चली गई और उसकी मौत हो गई. अन्य चार महिलाओं की स्थिति भी काफी नाजुक बनी हुई है. इन चारों में से तीन की हालत तो ज्यादा बिगड़ गई है. अब इन महिलाओं को भी कोलकाता लाया गया है, जहां उनका इलाज चल रहा है.
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या एक्सपायर सेलाइन जानबूझकर चढ़ाया गया या फिर लापरवाही से? सेलाईन चढाने वाला क्या प्रशिक्षित नर्स या डॉक्टर थे? या फिर वार्ड बॉय? या जमादार टाइप के कर्मी? क्योंकि कई बार यह खबर भी सामने आती है कि डॉक्टर की अनुपस्थिति में मरीज की चिकित्सा वार्ड बॉय अथवा कभी-कभी जमादार के द्वारा भी की जाती है. कई बार तो साधारण सफाई कर्मी ही रोगी को इंजेक्शन लगा देते हैं. जो भी हो, किसी सरकारी अस्पताल में और वह भी मेदिनीपुर मेडिकल कॉलेज जैसे अस्पताल में इस तरह की लापरवाही की घटना काफी निंदनीय है और चिंता में डालने वाली है.
हालांकि इस पूरी घटना की जांच के लिए 13 सदस्यीय विशेष कमेटी बना दी गई है. परंतु जिन लोगों की जानें गई है, उसके लिए कौन जिम्मेदार? प्राय: देखा जाता है जब भी इस तरह की घटना घटती है, स्वास्थ्य विभाग और सरकारी मशीनरी दौड़ भाग में जुट जाती है. जांच आयोग बैठाया जाता है. कुछ दिनों में जांच रिपोर्ट भी आ जाती है. तब तक मामला शांत हो चुका होता है. लेकिन ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो, इसके लिए स्वास्थ्य विभाग की तरफ से कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया जाता?
सिलीगुड़ी में दो मुख्य अस्पताल हैं. उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल तथा सिलीगुड़ी जिला अस्पताल. जहां इलाज के लिए पहाड़, समतल और Dooars इलाकों से मरीज आते हैं. सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने आए लोग आमतौर पर गरीब होते हैं. उन्हें अस्पताल से ही दवाइयां, इंजेक्शन आदि मिल जाते हैं. यह दवाइयां सही है या नहीं, इसे देखने वाला कोई नहीं होता. अच्छे-अच्छे पढ़े लिखे लोगों को भी दवाइयां की प्रकृति के बारे में कुछ पता नहीं होता. अस्पताल से जो भी मेडिसिन दिये जाते हैं, उसके लिए मेडिसिन विभाग ही जिम्मेदार होता है.
क्या स्वास्थ्य विभाग नियमित रूप से दवाइयों की जांच करता है? शायद नहीं.अगर ऐसा नहीं होता तो आखिर कैसे एक्सपायर दवाइयां और इंजेक्शन सरकारी अस्पतालों में स्टॉक में आ जाते हैं? सवाल तो यह भी है कि अगर दवाइयां या इंजेक्शन का इस्तेमाल लंबे समय तक नहीं होता है तो इनके स्टॉक को वहां से बाहर करने की जिम्मेदारी किसकी है? इस घटना के बाद मेदिनीपुर की घटना के बाद सिलीगुड़ी जिला अस्पताल और उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल में रोगियों को दी जाने वाली दवाइयां, सेलाइन और इंजेक्शन की नियमित रूप से जांच की आवश्यकता महसूस की जा रही है.
क्योंकि सतर्कता हटी और दुर्घटना घटी की कहावत तो आपने सुनी ही होगी. खासकर दवाइयां के मामले में जरा सी लापरवाही मिदनापुर मेडिकल कॉलेज कांड की पुनरावृत्ति कर सकती है. इसलिए समय रहते स्वास्थ्य विभाग को कदम उठाना चाहिए और सरकारी अस्पतालों में अनुशासन और जिम्मेदारी बढ़ाने के लिए कार्य करना चाहिए.