जैसे-जैसे SIR प्रक्रिया आगे बढ़ रही है, इसको लेकर एक तरफ बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले बांग्लादेशी घुसपैठियों में खलबली मच गई है, तो दूसरी तरफ SIR को लेकर विवाद भी बढ़ता जा रहा है. बंगाल के कई इलाकों में घर-घर जाकर प्रपत्र बांटने वाले BLO को धमकियां मिल रही हैं. कुछ इलाकों में टीएमसी और भाजपा के बीच संघर्ष भी सुर्खियों में है. उत्तर 24 परगना जिले के हिंगलगंज इलाके में भाजपा के एक BLA पर हमला करने का टीएमसी पर आरोप लगा है.
हालांकि सिलीगुड़ी से लेकर कोलकाता तक BLO का कार्य शांतिपूर्ण चल रहा है. टीएमसी, भाजपा, माकपा, कांग्रेस आदि सभी दलों का उन्हें समर्थन मिलने लगा है. इसलिए वे अपना कार्य तेजी से कर रहे हैं. SIR कार्य की समीक्षा के लिए दिल्ली से पहुंची चुनाव आयोग की तीन सदस्यीय टीम ने जलपाईगुड़ी, कूचबिहार और अलीपुरद्वार जिलों के अधिकारियों के साथ बैठक की है. दरअसल ये बंगाल के वे जिले हैं, जो बांग्लादेश की सीमा पर स्थित हैं और यह भी कहा जाता है कि उत्तर बंगाल के इन तीन जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की बहुलता है.
सूत्रों ने बताया कि चुनाव आयोग के अधिकारियों की बैठक में सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले मतदाताओं के वोटर कार्ड में गड़बड़ी पाई जाने पर चिंता व्यक्त की गई है. चुनाव अधिकारी इसको गंभीरता से ले रहे हैं. इसके चलते सीमावर्ती इलाकों में तनाव भी बढ़ रहा है. दरअसल कूचबिहार जिले के शीतलकुची ब्लॉक के छोटे सालबाड़ी क्षेत्र के बडा गोदाईखोडा गांव में बुधवार को तब बवाल मच गया, जब एक ही एपिक नंबर पर दो अलग-अलग वोटर कार्ड जारी होने की खबर सामने आई थी.
दोनों ही वोटर कार्ड पर मतदाता का नाम महबूब आलम है. लेकिन उनके पिता के नाम अलग-अलग हैं. एक महबूब आलम की उम्र लगभग 50 साल है, जिसके पिता का नाम मोहम्मद हुसैन अली मियां है. जबकि दूसरे महबूब आलम की उम्र 26 साल है और उसके पिता का नाम अनिसुर रहमान है. अनिसुर रहमान का कहना है कि जब यहां SIR प्रक्रिया शुरू हुई तो वह और उनके परिवार के सदस्य मतदाता सूची की जांच कर रहे थे. उसी क्रम में उन्हें पता चला कि उनके बेटे का नाम मौजूदा मतदाता सूची से गायब है.
उसकी जगह महबूब आलम का नाम तो है, लेकिन वह उनके बेटे का वोटर कार्ड नहीं है. खोजबीन करने के बाद अनिसुर रहमान को पता चला कि वोटर कार्ड पर जिस महबूब आलम का नाम दर्ज है, वह व्यक्ति लगभग 10 साल पहले बांग्लादेश से आया है. उसने यहां शादी की और अवैध रूप से वोटर कार्ड बनवाकर बंगाल का नागरिक बनकर रह रहा है. अनिसुर रहमान ने इसका विरोध किया क्योंकि इस हिसाब से एस आई आर का जो फॉर्म मिलेगा, कानूनन वही बांग्लादेशी घुसपैठिए इसको भरेगा.
यह घटना जितनी हैरतंगेज है, उतनी ही ज्यादा चिंता भी उत्पन्न करती है. आप कल्पना नहीं कर सकते हैं कि किस तरह से कुछ शातिर दिमाग लोगों ने एक वैध भारतीय नागरिक का नाम गायब करके उसकी जगह पर बांग्लादेशी घुसपैठिए का नाम अंकित कर उसे बंगाल का नागरिक बना दिया. जानकार मानते हैं कि कूचबिहार और जलपाईगुड़ी जिले के सीमावर्ती इलाकों में इस तरह की बहुत सी घटनाएं सामने आएंगी, जैसे-जैसे SIR की प्रक्रिया आगे बढ़ती जाएगी. चुनाव आयोग के अधिकारियों को इन जिलों के लिए विशेष निगरानी और पर्यवेक्षण की आवश्यकता है.
यहां के लोगों और कुछ विशेषज्ञों के अनुसार अधिकतर बांग्लादेशी घुसपैठियों ने बंगाल का नागरिक बनने के लिए कुछ इसी तरह का रास्ता अपनाया है. यानी फर्जी चीजों को असली दिखाने की कोशिश की गई है. कई बार नकली चीज भी असली दिखने लगती है. जबकि असली चीज कुछ समय के लिए नकली हो जाती है. सूत्रों ने बताया कि भारत बांग्लादेश सीमांत इलाके में इस तरह का फर्जीवाड़ा खूब किया गया है.
जिस महबूब आलम की बात की जा रही है, वोटर कार्ड पर उसका नाम तो है लेकिन उम्र 50 साल है. जब अनिसुर रहमान और उनके परिवार के लोगों ने नकली महबूब आलम की पिटाई की तो उसने बताया कि वह बांग्लादेश से आया है. लेकिन उसने यह भी दावा किया है कि वह लगभग 40 साल पहले भारत आया था. पुलिस इसकी जांच कर रही है और उससे सबूत भी मांगा जा रहा है. SIR से कई बांग्लादेशी घुसपैठियों की नकाब उतरने वाली है. बहरहाल शीतलकूची थाना की पुलिस ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लिया है और इस घटना की जांच शुरू कर दी गई है.
इस क्षेत्र की अच्छी खबर रखने वाले कुछ विद्वानों के अनुसार भारत बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाकों में SIR प्रक्रिया के दौरान इस तरह की बहुत सी घटनाएं सामने आ सकती हैं. लेकिन मजे की बात तो यह है कि बांग्लादेशी घुसपैठिए और फर्जी वोटर कार्ड तैयार करने वाले गिरोह के लोग किस तरह के मास्टरमाइंड हैं, जो एक भारतीय वैध मतदाता का नाम काटकर उसकी जगह पर अपना नाम और पता दर्ज करवा कर बंगाल के नागरिक बने बैठे हैं.
विशेषज्ञों के अनुसार सीमावर्ती इलाकों में एस आई आर के क्रम में तस्वीर बदल सकती है और फर्जी वोटर कार्ड के साथ ही एक ही एपिक नंबर पर दो-दो कार्ड के जरिए बांग्लादेशी घुसपैठियों के बंगाल के नागरिक बनने का भी कच्चा चिट्ठा खुल सकता है. जरा सोचिए कि फर्जी वोटर कार्ड तैयार करने वाला गिरोह किस तरह से बांग्लादेशी घुसपैठियों को बंगाल का नागरिक बना रहा है और बंगाल के नागरिक को मतदाता सूची से गायब कर रहा है!
इस घटना ने एक सबसे बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर असली मतदाता कौन है? एक ही एपिक नंबर दो लोगों को कैसे मिल गया? पुलिस और प्रशासन इसकी जांच में जुटा है. सूत्रों ने बताया कि यह घटना सामने आने के बाद दिल्ली से आए चुनाव अधिकारी भी हैरान हैं. सूत्रों से जो जानकारी मिल रही है, इस घटना के मद्देनजर चुनाव अधिकारी पूरी स्थिति पर नजर रखे हुए हैं. अभी SIR शुरू हुए 4 दिन भी नहीं हुए हैं, लेकिन बांग्लादेशी घुसपैठियों में हलचल और दहशत लगातार बढ़ती जा रही है. चुनाव आयोग के अधिकारी इसको किस रूप में लेते हैं और उनके आगे की रणनीति क्या होगी, यह उनकी रिपोर्ट पर भारतीय चुनाव आयोग फैसला लेगा.
