June 14, 2025
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ग्लोबल वार्मिंग के शिकार सांप माउंट एवरेस्ट में डेरा डाल रहे! माउंट एवरेस्ट के नजदीक किंग कोबरा पाए जाने से विशेषज्ञ चिंतित! गर्मी से राहत पाने के लिए सांप ऊंचे इलाकों में भाग रहे!

गर्मी सभी प्राणियों को लगती है. वह चाहे मनुष्य हो या जानवर या फिर सांप ही क्यों ना हो. गर्मी से राहत पाने के लिए हर जीव अपनी सुरक्षा और बचाव करता है. सांप भी अब ऐसा ही कर रहे हैं.

मिली जानकारी के अनुसार नेपाल के माउंट एवरेस्ट के नजदीक जहरीले सांप जमा हो रहे हैं. इससे पर्यावरण विदों को चिंता होने लगी है. क्योंकि सांपों का पलायन अथवा निश्चित स्थान या जंगल छोड़ना जलवायु के लिए अच्छा नहीं होता. सूत्रों ने बताया कि निचले इलाकों से सांप ऊपरी इलाकों में पहुंचने लगे हैं. ताकि उन्हें गर्मी से राहत मिल सके.

पिछले डेढ़ महीने में माउंट एवरेस्ट के नजदीक 10 जहरीले सांप पाए गए हैं. इनमें किंग कोबरा भी शामिल है. विशेषज्ञों ने बताया है कि ग्लोबल वार्मिंग का असर सांपों पर भी दिखने लगा है. सांप गर्मी को झेल नहीं पा रहे हैं. इसलिए ठंड की आस में वे पहाड़ों की तरफ भाग रहे हैं. लेकिन इसका पर्यावरण और प्राकृतिक संतुलन पर असर पड़ सकता है.

पर्यावरण विदों और पर्यावरण संरक्षकों ने लोगों से अपील की है कि वह पर्यावरण की रक्षा के लिए आगे आए और जंगलों की सुरक्षा के लिए कदम बढ़ाए. जंगल काटने से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचता है.ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बढ़ती है, जिसका असर प्राणी जगत पर पड़ता है.

वर्तमान में हमारी सरकार विकास के नाम पर जंगल काट रही है. विकास की इमारतें खड़ी की जा रही है. विकास तो हो रहा है, लेकिन यह पर्यावरण की कीमत पर ही हो रहा है. पर्यावरण में नुकसान का मतलब ही है प्राकृतिक असंतुलन जिसका असर कई रूपों में सामने आता है.जैसे बाढ़ , अकाल, भूकंप ,अनिश्चित बारिश इत्यादि.

सरकार बड़ी-बड़ी सड़कें बनाती है. पहाड़ को कटवाती है. लेकिन विकास का यह रास्ता पर्यावरण संरक्षण से होकर जाए तो इसमें सभी का भला होता है .सरकार और सामाजिक संस्थाएं लोगों से पेड़ लगाने की अपील करती है. लेकिन उनकी अपील का कितना असर होता है, यह सभी जानते हैं.

अगर पेड़ लगाने और हरियाली के लिए सक्रियता से पहल और प्रयास किया जाए तो प्राकृतिक असंतुलन नहीं होगा.ऐसे में जीवो का पलायन नहीं होगा. अगर सांप एक स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान जाते हैं तो इससे अन्य प्रजातियों में असंतुलन बढ़ जाता है. इसका पर्यावरण संरक्षण को नुकसान होता है.

ऐसा माना जाता है कि किंग कोबरा ठंडे इलाके में कम देखा जाता है. परंतु सच्चाई तो यह है कि किंग कोबरा भी माउंट एवरेस्ट की शरण में चला गया है.जलवायु परिवर्तन पर हर साल बड़ी-बड़ी बातें होती है.लेकिन उन पर अमल नहीं होता है. पर्यावरण विद और वैज्ञानिक केवल बड़ी-बड़ी बातें करते हैं. होना तो यह चाहिए कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों में जागरूकता लाई जाए और पर्यावरण के महत्व को लेकर सरकार का प्रोत्साहन और सहयोग जनता को मिले . तभी लोग पर्यावरण के प्रति जागरूक होंगे और इसका लाभ सभी प्राणियों को मिल सकेगा.

(अस्वीकरण : सभी फ़ोटो सिर्फ खबर में दिए जा रहे तथ्यों को सांकेतिक रूप से दर्शाने के लिए दिए गए है । इन फोटोज का इस खबर से कोई संबंध नहीं है। सभी फोटोज इंटरनेट से लिये गए है।)

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