March 26, 2025
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उत्तर बंगाल मौसम

सिक्किम से लेकर उत्तर बंगाल तक तबाही का बढ़ रहा खतरा!

ना तो सिक्किम सुरक्षित है और ना ही पहाड़ और मैदान. भविष्य में यहां तबाही का बड़ा खतरा मंडरा रहा है. वैज्ञानिक, विशेषज्ञ और पर्यावरणविद सभी प्रयास रत हैं. लेकिन खतरा जिस तेजी से बढ़ रहा है, उस हिसाब से प्रयास नहीं हो रहा है. ग्लोबल वार्मिंग के चलते मौसम के बदलाव पर सटीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है. वैज्ञानिकों ने इस पर चिंता जताई है.

एक अध्ययन के अनुसार 2003 से 2010 के बीच सिक्किम क्षेत्र में 85 नयी झीलें सामने आई थी. इन झीलों के किनारे ढीली चट्टानों और बर्फ से बने होते हैं, जिन्हें हिमोढ कहा जाता है. ग्लोबल वार्मिंग के चलते जैसे-जैसे यह बर्फ पिघलती है, किनारे की चट्टानें पानी के लिए रास्ता छोड़ देती है. और यही बाढ का कारण बनता है. अक्टूबर 2023 में एक हिमनद झील के फटने से सिक्किम में विनाशकारी बाढ आई थी और उत्तर बंगाल भी अछूता नहीं रहा था.

इस बाढ ने 55 जिंदगियों को तबाह कर दिया था. इसके अलावा तीस्ता की जल विद्युत परियोजना पर भी बुरा प्रभाव पड़ा था. दक्षिण लहोनक झील के किनारे टूट जाने से भारी तबाही आई थी. इससे पहले जून 2013 में केदारनाथ में इससे भी भारी तबाही आई थी, जहां हजारों जिंदगियां तबाह हो गई थी. सिक्किम क्षेत्र में अनेक प्राकृतिक झीले हैं. उन पर बाढ का खतरा मंडरा रहा है. बर्फ पिघलने से झीलों का पानी घाटियों में बहने वाली नदियों में जाता है. फलस्वरूप बाढ़ का खतरा उत्पन्न हो जाता है.

एक अध्ययन से पता चलता है कि हिमालय क्षेत्र में लगभग 5000 झीले मानवता के लिए खतरा बन गई हैं. ग्लोबल वार्मिंग के चलते हिमनद पिघल रही है, जिससे झीलों में बाढ़ का खतरा बढ रहा है. वैज्ञानिकों के अनुसार जिन झीलों में पानी ज्यादा है, वहां बाढ का खतरा भी उतना ही ज्यादा है. उत्तर बंगाल और सिक्किम में बरसात के दिनों में तेज और मूसलाधार बारिश होती है. इसलिए नदियां तो पहले ही उफनायी रहती हैं. ऊपर से झीलों का पानी बढ़ने से यह सीधे तीस्ता में जाता है. फलस्वरूप तीस्ता विकराल रूप धारण कर लेती है और मैदानी इलाकों में जाते-जाते यह किनारे के कई गांवों को दफन कर देती है.

वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि आने वाले समय में पूर्वी हिमालय की हिमनद झीलो के कारण आने वाली बाढ का खतरा बढ़कर लगभग तीन गुना चार गुना हो सकता है. वैज्ञानिकों के अनुसार इसके लिए ग्लोबल वार्मिंग जिम्मेवार है. अगर हिमालय के ग्लेशियरों को बचाने का प्रयास नहीं किया गया तो बहुत जल्द यहां बर्फ पिघलनी शुरू हो जाएगी और इसके कारण झीलों में पानी की मात्रा बढ़ सकती है. इससे नदी घाटी में रहने वाले लाखों लोगों के लिए गंभीर संकट उत्पन्न हो सकता है.

कुछ समय पहले अंतरराष्ट्रीय जनरल नेचर में एक शोध छपा था. इसमें कहा गया था कि ग्लेशियर में जमी बर्फ पहले के मुकाबले 30 से 40% ज्यादा तेजी से पिघल रही है. इनमें हिमालय के ग्लेशियर सर्वाधिक हैं और वह तेजी से पिघल रहे हैं. ग्लेशियरों से बर्फ पिघल कर झीलों में जमा हो जाती है. ऐसे में अगर झीलों के किनारे टूटते हैं तो इससे बाढ़ का खतरा निचले इलाकों में रहने वाले पर बढ़ सकता है और यह बाढ कहीं विनाशकारी साबित हो सकती है.

अनेक अध्ययन और विश्लेषण में कहा गया है कि 1990 से 2023 के बीच 13 पहाड़ी क्षेत्रों में 1686 हिमनद झीलों का अध्ययन और झीलों में आई बाढ़ की उपग्रह से प्राप्त छवि का विश्लेषण किया गया. पता चला कि बर्फ से बनी झीले सिकुड़ रही है. जिन झीलों के किनारे ग्लेशियर द्वारा बहाकर लाए गए मलबे से बने हैं, वह स्थिर बनी हुई है. हिमनद झीलो से आने वाली बाढ एक तरह का व्यवहार नहीं करती हैं. इनमें से जिन झीलों के किनारे बर्फ से बने होते हैं, वे अक्सर टूट जाते है.

अध्ययन के अनुसार हिमालय में स्थित ग्लेशियरों के बदलते स्वरूप के कारण निचले इलाकों में रहने वाले लोग संकट में आ सकते हैं. और यह संकट आने वाले समय में और ज्यादा गंभीर होगा. हिमालय के बारे में पहले भी कहा गया है कि यह काफी संवेदनशील है और ग्लोबल वार्मिंग का इसके स्वरूप पर ज्यादा असर पड़ता है. इसलिए यह बताना कठिन है कि सिक्किम में स्थित झीलो की प्रकृति कब, क्या, कौन सा भयानक रूप लेगी. ऐसे में सरकार, प्रशासन ,आमलोग और पर्यावरणविदों को ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए प्रयास करने की जरूरत है.

(अस्वीकरण : सभी फ़ोटो सिर्फ खबर में दिए जा रहे तथ्यों को सांकेतिक रूप से दर्शाने के लिए दिए गए है । इन फोटोज का इस खबर से कोई संबंध नहीं है। सभी फोटोज इंटरनेट से लिये गए है।)

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