December 23, 2024
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मणिपुर मामले ने केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव तक पहुंचाया!

संसद में मानसून सत्र चल रहा है. जब से सदन शुरू हुआ है, तभी से मणिपुर मामला सरकार की नींद हराम कर चुका है. ऐसा 1 दिन भी नहीं हुआ, जब विपक्ष ने मणिपुर मामले को लेकर सदन में हंगामा नहीं किया हो. आज मणिपुर हिंसा को लेकर कांग्रेस के गौरव गोगोई ने केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया. उनके अविश्वास प्रस्ताव को लोकसभा ने मंजूर भी कर लिया. जबकि राज्यसभा ने विपक्ष के सभी नोटिस को खारिज करते हुए कहा कि नियम 176 के तहत चर्चा का प्रस्ताव पहले ही मंजूर कर चुके हैं. राज्यसभा के सभापति के बयान के बाद दोनों सदनों की कार्यवाही 12:00 बजे तक के लिए रोक दी गई.

मणिपुर को लेकर पांचवें दिन भी संसद में गतिरोध बना हुआ है. विपक्षी पार्टियां मणिपुर हिंसा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बयान देने की मांग कर रही है. वहीं केंद्र सरकार इस मुद्दे पर बहस को तैयार है. उनका कहना है कि इस मुद्दे पर पीएम मोदी नहीं बल्कि गृह मंत्री अमित शाह सदन में बयान देंगे. विपक्ष का हंगामा लगातार बढ़ता जा रहा है. विपक्ष नियम 267 के तहत चर्चा की मांग पर अड़ा हुआ है. गौरव गोगोई के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि इस पर सब से बात करके समय निर्धारित करेंगे.

स्पीकर के साथ एक सर्वदलीय बैठक में बहुजन समाज पार्टी और ओवैसी की पार्टी एआई एम आई एम का कहना था कि इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री जवाब दें अथवा ना दें लेकिन मणिपुर पर चर्चा के दौरान उनका सदन में रहना जरूरी है. अगर प्रधानमंत्री को लगता है कि कुछ बोलना चाहिए तो बोले. अगर नहीं लगता है तो नहीं बोले. उधर मणिपुर मुद्दे पर ही राज्यसभा से पूरे सत्र के लिए संजय सिंह को निलंबित किया जा चुका है. संजय सिंह आम आदमी पार्टी के सांसद हैं.वे संसद परिसर में धरने पर बैठे हुए हैं. उनका यही कहना है कि प्रधानमंत्री मणिपुर मुद्दे पर चुप क्यों है?

इतना तो तय हो चुका है कि लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव गिर जाएगा. परंतु कुछ हो या ना हो, अविश्वास प्रस्ताव से सरकार की गरिमा और विश्वसनीयता को ठेस पहुंचती है. यह जानना जरूरी है कि अविश्वास प्रस्ताव क्या है और किस नियम के तहत इस पर चर्चा कराई जाती है. यह भी जानने की कोशिश करते हैं कि सरकार के खिलाफ कब-कब अविश्वास प्रस्ताव लाए गए.

क्या होता है अविश्वास प्रस्ताव? जब लोकसभा में विपक्ष के किसी दल को लगता है कि मौजूदा सरकार के पास बहुमत नहीं है अथवा सरकार सदन में अपना विश्वास खो चुकी है तो अविश्वास प्रस्ताव सरकार के खिलाफ लाया जा सकता है. इसे अंग्रेजी में नो कॉन्फिडेंस मोशन कहते हैं. संविधान में इसका उल्लेख आर्टिकल 75 में किया गया है.

अविश्वास प्रस्ताव सिर्फ लोकसभा में लाया जा सकता है. नियम यह है कि कोई भी सांसद सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे सकता है. इसके लिए कम से कम 50 सांसदों का समर्थन जरूरी होता है. अविश्वास प्रस्ताव की नोटिस पर स्पीकर चर्चा के लिए दिन निर्धारित करते हैं. स्पीकर को 10 दिन के अंदर दिन तय करना जरूरी होता है. इसके साथ ही सरकार को सदन पटल पर बहुमत साबित करना होता है.

आजादी के बाद से विभिन्न सरकारों के खिलाफ विपक्ष ने समय समय-समय पर अविश्वास प्रस्ताव लाए हैं. 1963 में नेहरू सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था. तीन बार सरकार विश्वास मत हासिल नहीं कर पाई. उसके बाद 1990 में विपक्ष ने बी पी सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया. 1997 में एचडी देवगौड़ा की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था. उसके बाद 1999 में जब अटल बिहारी वाजपेई की सरकार थी, तब विपक्ष ने उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव सदन में रखा था.

वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के खिलाफ तेलुगू देशम पार्टी ने अविश्वास प्रस्ताव रखा. जो 126 के मुकाबले 325 मतों से सदन में गिर गया. इस बार भी संख्या बल को देखते हुए यह अविश्वास प्रस्ताव गिर जाएगा. आज के अविश्वास प्रस्ताव को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में ही भविष्यवाणी कर दी थी.

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