राजनीति और नेता को समझना आसान नहीं होता है. बड़े-बड़े ज्ञानी, चतुर लोग भी फेल हो जाते हैं. राजनीति और नेता की दशा दिशा का अध्ययन करना इतना आसान नहीं है. दार्जिलिंग पहाड़ में आज राजू बिष्ट के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे विमल गुरुंग के बारे में अब तक यही कहा जाता था कि विमल गुरुंग खुद लोकसभा के उम्मीदवार होंगे और वे भाजपा के साथ नहीं जाएंगे. खुद विमल गुरुंग ने भी संकेत दिया था कि लोकसभा चुनाव में वह उम्मीदवार हो सकते हैं.
लेकिन सच्चाई यह है कि विमल गुरुंग भाजपा के साथ हैं और राजू बिष्ट को जीत दिलाने के लिए प्रचार कर रहे हैं. आखिर यह चमत्कार कैसे हो गया! किसी समय राजू बिष्ट से दूरी बनाने वाले विमल गुरुंग किस तरह राजू बिष्ट के नजदीक आ गए! अनेक लोगों को शायद पता नहीं होगा कि इस स्क्रिप्ट के रचनाकार हैं जितेंद्र सरीन, जिन्होंने विमल गुरुंग और भाजपा को एकजुट किया और राजू बिष्ट के साथ दोस्ती कराने में अपनी दमदार भूमिका निभाई. जितेंद्र सरीन एक ऐसे समाजसेवी है, जिनके बारे में लोगों को बहुत कम पता है कि कई दलों के छोटे से लेकर बड़े नेताओं के साथ उनकी दोस्ती भी रही है.
आज जितेंद्र सरीन की चर्चा इसलिए हो रही है, क्योंकि वे ना तो नेता हैं और ना ही राजनेता. किसी भी दल अथवा पार्टी से जुड़े भी नहीं हैं. परंतु लगभग सभी दलों के प्रमुख नेताओं के साथ उनकी दोस्ती भी जरूर है. हालांकि कांग्रेस से उनकी दूरी जरूर है. परंतु तृणमूल कांग्रेस, पहाड़ के क्षेत्रीय दल जैसे गोरखा जनमुक्ति मोर्चा आदि के साथ-साथ भाजपा के बड़े नेताओं के साथ उनकी उठ बैठ भी है. राष्ट्रीय हिंदू शक्ति संगठन के पश्चिम बंगाल प्रभारी और स्वयंसेवक, जिन्होंने कोरोना काल के समय अपनी मानवीयता और इंसानियत का परिचय देते हुए सिलीगुड़ी की समाज सेवा और दरिद्र नारायण सेवा के क्षेत्र में अद्भुत मिसाल पेश की थी, ऐसा कोई शख्स अगर राजनेताओं से भी बढ़कर अपना प्रभाव दिखाता है तो उसकी चर्चा छिपी नहीं रह जाती.
कुछ दिनों पहले जितेंद्र सरीन को ममता बनर्जी के भाई बाबुन बनर्जी के साथ देखा गया. जितेंद्र सरीन स्वीकार भी करते हैं कि बाबुन बनर्जी और टीएमसी के दूसरे नेता आलोक चक्रवर्ती के साथ उनके अच्छे संबंध हैं. बाबुन बनर्जी के साथ उनकी दोस्ती भी है. दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के बड़े-बड़े नेताओं के साथ भी उनके अच्छे संबंध हैं. गोरखा जन मुक्ति मोर्चा नेता विमल गुरुंग के साथ तो उनके बहुत करीबी संबंध है. आश्चर्य की बात तो यह है कि एक व्यक्ति जो कोई नेता नहीं है, लेकिन उस व्यक्ति ने एक भारी भर कम नेता से भी बढ़कर काम करते हुए विमल गुरुंग को लोकसभा की उम्मीदवारी से दूर रखा और राजू बिष्ट की उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए मजबूर कर दिया.
एक व्यक्ति जो टीएमसी के साथ भी करीबी संबंध रखता है और भाजपा के साथ भी उतना ही करीबी है. एक व्यक्ति जो विमल गुरुंग के साथ भी अच्छी मित्रता बनाकर रखा है. ऐसा व्यक्ति वर्तमान समय में देखने को बहुत कम मिलेगा. मजे की बात तो यह है कि विमल गुरुंग के साथ भाजपा की दोस्ती कराने के बाद भी टीएमसी के साथ अपने पुराने संबंधों को नहीं भूला, और ना ही किसी भी दल के नेता को उससे शिकायत है तो जरूर उसमें कुछ ना कुछ खास बात होगी.
बहरहाल विमल गुरुंग भाजपा के करीब कैसे आए और राजू बिष्ट के साथ विमल गुरुंग की दोस्ती कैसे हुई, पर्दे के पीछे की बात तो यह है कि जितेंद्र सरीन ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. वे विमल गुरुंग को दिल्ली ले गए और दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह समेत भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं से उनकी मुलाकात करवाई. कई बार की मुलाकात के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विमल गुरुंग के साथ भाजपा के पुराने संबंधों को याद दिलाया. इसके साथ ही गोरखालैंड और गोरखा मुद्दों पर भाजपा के स्टैंड से परिचित भी करवाया. भरोसा भी दिया. तब जाकर विमल गुरुंग के विचार बदले और उन्होंने लोकसभा चुनाव में राजू बिष्ट की उम्मीदवारी का समर्थन करने का फैसला किया.
ऐसे हैं जितेंद्र सरीन जो एक नेता न होकर भी अपनी बुद्धि, विवेक और दिमाग से ऐसे कारनामे करने में माहिर हैं जो बड़े से बड़े नेता भी नहीं कर सकते हैं. आज पहाड़ में राजू बिष्ट की स्थिति विमल गुरुंग के साथ आने के बाद संभली है तो इसका श्रेय जितेंद्र सरीन को ही दिया जाना चाहिए. आपको बता दूं कि जितेंद्र सरीन का सिलीगुड़ी के विधान मार्केट में जूते की एक प्रमुख दुकान भी है.
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