भारत और भारतीय के बारे में दुनिया में उदाहरण दिया जाता है कि यहां लोग अधिक संवेदनशील होते हैं. दया, धर्म ,करुणा, सुख दुख आदि का सह स्पर्श वाले इस देश में जब इंसानियत और मानवता को शर्मसार करने वाली घटना घटती है तो खुद से ही सवाल उत्पन्न होने लगते हैं. क्या ऋषि मुनियों वाला वही भारत है, या हम 21वीं सदी के एक नए भारत में प्रवेश कर गए हैं, जहां लोगों में ना दया है, ना धर्म है, ना करुणा है और ना इंसानियत ही बाकी है…
बागडोगरा की घटना कुछ इसी तरफ इशारा करती है. बागडोगरा की लाल बस्ती में शिवा मुंडा और उसका बेटा चिरण मुंडा रहते थे. मांग कर खाते थे. बेहद गरीबी में दिन गुजार रहे थे. शिवा मुंडा बीमार चल रहे थे और काफी समय से उनकी तबीयत खराब थी. घर में पैसा था नहीं कि उनका बेहतर इलाज हो सके.
वर्तमान में उनकी स्थिति ऐसी हो गई थी कि दोनों बाप बेटा बागडोगरा फ्लाईओवर के नीचे एक झोपड़ी डालकर रहते थे और लोगों की दानशीलता पर जीते थे. चिरण मुंडा ने अपने पिता का इलाज कराने के लिए इधर-उधर से सहयोग मांगा. लेकिन लोगों ने मुंह फेर लिया. गुरुवार को शिवा मुंडा एकाएक अचेत पड़ गए. चिरण मुंडा बदहवास हो गया. उसे लगा कि पिता अब इस दुनिया में नहीं है. पिता की मौत जानकर बेटा निढाल पड़ गया.
पिता को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाना जरूरी था. हालांकि पिता की मौत हो चुकी थी. लेकिन बेटा समझ रहा था कि वह अचेत हैं. अगर समय पर उनका इलाज हो जाए तो शायद बच सके. इसी उम्मीद में बेटा आसपास के लोगों से सहयोग मांगता रहा. कुछ लोगों ने सहयोग किया भी परंतु अधिकांश लोगों ने मुंह फेर लिया.
लड़के ने बताया कि उसके पिता की मौत हो चुकी थी और वह उन्हें कंफर्म करने के लिए अस्पताल पहुंचाना चाहता था. लेकिन पिता को अस्पताल ले जाने के लिए उसके पास गाड़ी के लिए पैसे नहीं थे. मदद के इंतजार में सुबह से शाम हो गई. लेकिन कोई भी सामने नहीं आया. पिता की लाश वैसे ही पड़ी रही. स्थिति की विडंबना देखिए कि उस दिन बागडोगरा हाट भी था. लेकिन लड़के को वहां से भी पर्याप्त आर्थिक कोई मदद नहीं मिली. ना ही भीड़ में से कोई सामने आया.
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार चिरण मुंडा दोपहर तक लोगों से सहयोग मांगता रहा. किसी ने बताया कि उसे स्थानीय पंचायत के पास जाना चाहिए. वही उसकी मदद कर सकते हैं. वह पंचायत भी गया. लेकिन वहां भी किसी ने उसकी मदद नहीं की. इसके बाद वह नजदीकी थाने में भी गया और पिता की मृत्यु का समाचार मरणासन्न स्थिति का समाचार सुनाया. लेकिन थाने से भी तत्काल उसे कोई मदद नहीं मिली.
सुबह से शाम हो गई. समाज के कुछ बुद्धिजीवी लोगों को इस घटना की जानकारी हुई तो वह चिरण मुंडा की मदद के लिए आगे आए. ऐसे लोगों में संजीव सरकार और आशीष झा शामिल थे. जिन्होंने स्वयं बागडोगरा थाने में जाकर पुलिस को पूरी जानकारी दी. उसके बाद थाने के ओसी पार्थ सारथी दास हरकत में आए और एक एंबुलेंस की व्यवस्था की. शाम 6:00 बजे शिवा मुंडा को उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल लाया गया. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. शिवा मुंडा का प्राणान्त हो चुका था.