दिल्ली की हवा को सांस लेने लायक बनाने के लिए एक नई पहल की जा रही है — और वो है कृत्रिम बारिश यानी आर्टिफिशियल रेन। जी हां, राजधानी दिल्ली में पहली बार क्लाउड सीडिंग के ज़रिए कृत्रिम बारिश का ट्रायल किया जाएगा। 4 जुलाई से 11 जुलाई के बीच ये टेस्ट रन किया जाएगा, और अगर सब कुछ योजना के मुताबिक रहा, तो दिल्ली की जहरीली हवा में कुछ राहत मिल सकती है। आइये सबसे पहले बात करते हैं — कृत्रिम बारिश यानी क्लाउड सीडिंग क्या है? कृत्रिम बारिश एक ऐसी तकनीक है जिसमें वैज्ञानिक खास तरह के रसायनों को बादलों में भेजते हैं, जिससे बादलों के भीतर नमी बढ़ती है और बारिश करवाई जाती है।
इसके लिए सिल्वर आयोडाइड, पोटैशियम आयोडाइड, और सूखी बर्फ यानी सॉलिड कार्बन डाइऑक्साइड का इस्तेमाल होता है। कई बार टेबल सॉल्ट जैसी हाईड्रोस्कोपिक मटीरियल्स का भी छिड़काव किया जाता है। इन सभी तत्वों को हवाई जहाज़, ग्राउंड-जनरेटर्स, एंटी-एयरक्राफ्ट गन या रॉकेट्स के जरिए बादलों में भेजा जाता है। लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि, क्लाउड सीडिंग तभी की जा सकती है जब कम से कम 40% बादल आसमान में मौजूद हों। दिल्ली सरकार ने आईआईटी कानपुर को इस प्रोजेक्ट की तकनीकी जिम्मेदारी सौंपी है। कुल मिलाकर 5 एयरक्राफ्ट्स को इस ट्रायल में लगाया जाएगा, जो दिल्ली के उत्तर-पश्चिम और बाहरी इलाकों में उड़ान भरेंगे। प्रत्येक ट्रायल फ्लाइट करीब 90 मिनट की होगी और एक उड़ान लगभग 100 वर्ग किलोमीटर के इलाके को कवर करेगी। फ्लाइट के दौरान नैनो पार्टिकल्स और नमक के मिश्रण का छिड़काव किया जाएगा, जिससे बादलों के भीतर क्रिस्टल बनने लगते हैं और बारिश हो जाती है। इस पूरी प्रक्रिया के लिए सरकार ने DGCA (नागर विमानन महानिदेशालय) से जरूरी अनुमति भी ले ली है। इस प्रोजेक्ट की कुल लागत होगी करीब 3.21 करोड़ रुपये।
दरअसल,दिल्ली की हवा की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) कई बार “गंभीर” श्रेणी में पहुंच जाता है।ऐसे में अगर ये ट्रायल सफल होता है तो भविष्य में भारी प्रदूषण के समय भी इसे एक समाधान के तौर पर अपनाया जा सकता है। गौर करने वाली बात ये है कि, पिछले कुछ सालों में दिल्ली में कई बार कृत्रिम बारिश की बात हुई, लेकिन कभी तकनीकी तो कभी प्रशासनिक कारणों से ये सफल नहीं हो पाया। भारतीय मौसम विभाग ने जानकारी दी है कि, मानसून दिल्ली में 28 जून को आ चुका है, लेकिन अब तक बारिश बेहद कम हुई है।
यही हाल पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के आसपास के इलाकों का भी है। हालांकि मौसम विभाग का अनुमान है कि, अगले 3 से 4 दिनों में मानसूनी हवाओं की रफ्तार बढ़ेगी और स्थिति में सुधार हो सकता है। आइये अब आप ये जानिए की क्लाउड सीडिंग का साइंटिफिक प्रोसेस क्या है? क्लाउड सीडिंग के ज़रिए बादलों के तापमान को -20 से -7 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचाया जाता है। सिल्वर आयोडाइड फ्लेयर्स को विमान से फैलाया जाता है जो बर्फ के क्रिस्टल्स बनाते हैं। ज़मीन से छोड़े गए बारीक कण वायु धाराओं के जरिए ऊपर जाकर बादलों को प्रभावित करते हैं।दुनिया के कई देशों में क्लाउड सीडिंग पहले से अपनाई जा रही है। चीन, UAE, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश इसे सूखे इलाकों में बारिश लाने, खेती बचाने, या प्रदूषण घटाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। अगर दिल्ली में ये ट्रायल सफल हो जाता है, तो ये तकनीक आने वाले समय में प्रदूषण के खिलाफ एक बड़ी रणनीति बन सकती है।
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