बांग्लादेश में सेना के हाथ में सत्ता आ गई है. हालांकि यह कोई पहला मामला नहीं है, जब बांग्लादेश में तख्तापलट हुआ है. बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान, जो शेख हसीना के पिता भी थे, के कार्यकाल के दौरान भी ऐसा ही हुआ था. सितंबर 1947 में पूर्वी पाकिस्तान में जन्मी शेख हसीना 1960 में राजनीति में आई. उन्होंने ढाका यूनिवर्सिटी से अपनी शिक्षा पूरी की. अगस्त 1975 में शेख मुजीबुर रहमान, उनकी पत्नी और उनके तीन बेटों की घर में सेना के अधिकारियों ने हत्या कर दी थी. शेख हसीना भारत में होने की वजह से जीवित बच गई. वरना सेना ने उनको भी मार डाला होता.
1981 में शेख हसीना ने बांग्लादेश वापसी की और लोकतंत्र को लेकर अपनी आवाज बुलंद की. उनकी पार्टी का नाम अवामी लीग धा. उन्होंने अवामी लीग का नेतृत्व किया और चुनाव में खालिदा जिया को हराने के बाद 1996 से लेकर 2001 तक प्रधानमंत्री के रूप में बांग्लादेश पर शासन किया था. वह 2001 के चुनाव में सत्ता ग॔वा बैठी. लेकिन 2008 में हुए चुनाव में फिर से वापसी की. चुनाव जीतने के बाद शेख हसीना ने 1971 के युद्ध अपराध मामलों की सुनवाई के लिए ट्रिब्यूनल का गठन किया.
विपक्ष के कुछ हाई प्रोफाइल सदस्य दोषी ठहराए गए. इससे हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए. इस्लामाबाद पार्टी और बीएनपी की प्रमुख सहयोगी जमाते इस्लामी को 2013 में चुनाव में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया. बीएनपी प्रमुख खालिदा जिया को भ्रष्टाचार के आरोप में 17 साल की जेल हुई. बी एन पी और उनके सहयोगियों ने गैर पार्टी कार्यवाहक सरकार के तहत चुनाव की मांग करते हुए वोटो का बहिष्कार किया. जनवरी में शेख हसीना ने लगातार चौथी बार जीत हासिल की. इस बार प्रधानमंत्री बनने के 6 महीने के बाद ही शेख हसीना ने देश में 1971 के मुक्ति संग्राम में शामिल लोगों के परिजनों के लिए नौकरी में 30% आरक्षण दिया. इसके खिलाफ विरोध शुरू हो गया.
बांग्लादेश में 56% आरक्षण से छात्र पहले से ही परेशान थे. इसके बाद शेख हसीना ने 30% आरक्षण बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में शामिल लोगों के स्वजनों को दिया. इसे लेकर छात्रों का विरोध जुलाई में ही शुरू हो गया. शेख हसीना की सरकार ने कुछ समय पहले ही छात्रों के विरोध के बाद बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में शामिल लोगों के स्वजनों को दिए जाने वाले 30% आरक्षण पर रोक लगा दी थी. हालांकि बाद में हाईकोर्ट ने इसे बहाल कर दिया, जिसे लेकर छात्र प्रदर्शन कर रहे थे. सरकारी नौकरी में आरक्षण के खिलाफ छात्रों का प्रदर्शन 16 जुलाई को हिंसक को उठा. कॉलेज और विश्वविद्यालय अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिए गए. हिंसा को दबाने के लिए बल प्रयोग करना पड़ा. आंसू गैस के गोले छोड़े. पुलिस ने छात्रों का उत्पीड़न किया. कई छात्रों की मौत हो गई.
बांग्लादेश में बिगड़ते हालात को काबू में करने के लिए इंटरनेट और मोबाइल पर प्रतिबंध लगा दिया गया. सेना को हालात संभालने के लिए कहा गया. कर्फ्यू लगा दिया गया. इस दौरान हिंसक प्रदर्शन में लगभग डेढ़ सौ लोग मारे जा चुके थे. आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया और देश के 56% आरक्षण को कम कर मात्र 7% कर दिया गया. इसके बाद देश में हालात शांत हो गए थे. शेख हसीना ने हिंसा को दबाने के दौरान अधिकारियों की ओर से की गई लापरवाही की जांच का आश्वासन दिया.उन्होंने कहा कि जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. लेकिन छात्र नेताओं ने इसे नामंजूर कर दिया.
शेख हसीना ने छात्र नेताओं को बातचीत के लिए ऑफर दिया लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया. वे शेख हसीना के इस्तीफे की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए.इसके बाद हिंसा भड़क उठी. इसमें लगभग 100 लोगों की मौत हो गई. यह तो प्रत्यक्ष कारण था. परंतु इसके पीछे पाकिस्तान की मदद से फल फूल रहे भारत विरोधी कटर पंथियों की दुकानों को शेख हसीना द्वारा बंद करवाना तथा असम में छिपकर रहने वाले आतंकियों का सफाया करवाया जाना प्रमुख कारण है. इस वजह से भारत विरोधी कट्टरपंथियों ने शेख हसीना को निशाना बनाया.
संकट के समय शेख हसीना ने अपने मित्र राष्ट्र भारत को याद किया. और भारत में शरण की मांग की. इसके बाद भारत सरकार और सेना प्रमुख ने एक आपातकालीन बैठक करके शेख हसीना को आश्रय देने और उन्हें सुरक्षित दिल्ली लाने की व्यवस्था की गई. शेख हसीना दिल्ली पहुंच गई. यह भी कहा जाता है कि बांग्लादेश की सेना का शेख हसीना को सहयोग नहीं मिला. अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान शेख हसीना ने भारत का हमेशा साथ दिया है.
चाहे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार रही हो या वर्तमान में नरेंद्र मोदी की सरकार, शेख हसीना ने हमेशा भारतीय हितों का ख्याल रखा.उन्होंने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के नेटवर्क और पाक की मदद से फल-फूल रहे भारत विरोधी कटर पंथियों की दुकान बंद करवाई. उन्होंने ढाका में छिपकर रहने वाले असम के आतंकियों का सफाया करवाया. आतंकवाद के मुद्दे पर उन्होंने हमेशा भारत का साथ दिया. पर अब यह अतीत की बात हो चुकी है.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि बांग्लादेश में कट्टरपंथियों की ताकत बढ़ जाएगी. बीएनपी प्रमुख खालिदा जिया को जेल से रिहा कर दिया गया है. इस तरह से बीएनपी वहां की राजनीति में सक्रिय हो जाएगी. इनके साथ भारत का रिश्ता अच्छा होने की उम्मीद नहीं की जा सकती. जब खालिदा जिया की सरकार थी तो उन्होंने हमेशा चीन और पाकिस्तान को मदद पहुंचाई है. जिया ने असम में अल्फा आतंकियों पर लगाम नहीं लगायी. जिया के शासनकाल में ISI का बांग्लादेश प्रमुख अड्डा बन चुका था. बांग्लादेश में कट्टरपंथी के फलने फूलने का सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि अवामी लीग की सरकार के पतन के साथ ही बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की मूर्तियों को तोड़ दिया गया है. जमाते इस्लामी को खुली छूट दे दी गई है. जमाते इस्लामी हमेशा भारत का शत्रु रहा है और पाकिस्तान परस्त रहा. इस तरह से कहा जा सकता है कि अवामी लीग के पतन के बाद बांग्लादेश से भारत को खतरा बढ़ जाएगा. जिसके लिए भारत को हमेशा सतर्क दृष्टि रखनी होगी.
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