RGI द्वारा सिक्किम सरकार के प्रस्ताव पर विचार करने से मना किए जाने के बाद सिक्किम से लेकर दार्जिलिंग तक विभिन्न क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं के पैरों तले की धरती खिसक सी गई है. सिक्किम सरकार ने केंद्र को 12 जन जातियों को अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत रखे जाने को लेकर अनुमोदन हेतु एक प्रस्ताव भेजा था. जिसको रजिस्टार जनरल ऑफ इंडिया ने ठुकरा दिया है. इन 12 जातियों मे 11 जाति गोष्ठी को जनजाति का दर्जा देने की मांग पहले से ही दार्जिलिंग तराई Dooars की सूची में है.
सिक्किम सरकार ने सिक्किम के माझियों को भी ST कोटे में रखे जाने को लेकर एक प्रस्ताव भेजा था. केंद्रीय मंत्री जुवेल उरांव ने RGI के दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए कहा है कि सिक्किम सरकार ने जो प्रस्ताव केंद्र को भेजा था, वह पहले से ही विचाराधीन है.अब किसी नए प्रस्ताव पर विचार करना संभव नहीं है. आरटीआई को भेजे एक जवाब से पता चला है कि सिक्किम सरकार ने मांझी को ST गोष्ठी में रखे जाने को लेकर कोई नया प्रस्ताव नहीं भेजा है. केंद्रीय मंत्रालय ने भी यह स्पष्ट कर दिया है.
पहाड़ के नेता मौजूदा स्थिति को लेकर सन्न से रह गए हैं. केंद्रीय मंत्री द्वारा सिक्किम के राज्यसभा सांसद को दिए गए जवाब के बाद से ही पहाड़ से लेकर दिल्ली तक हलचल मची हुई है. पिछले दिनों दार्जिलिंग के भाजपा सांसद राजू बिष्ट की अगुवाई में दार्जिलिंग पहाड़ के कई नेता केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिले थे और उन्हें ताजा हालात से उत्पन्न स्थिति के बारे में अवगत कराया था. राजू बिष्ट के नेतृत्व में केंद्रीय गृह मंत्री से मिले नेताओं में गोरखा जन मुक्ति मोर्चा के संस्थापक विमल गुरुंग, रोशन गिरी, अर्जुन छेत्री, नोमन राई शामिल थे. केंद्रीय गृह मंत्री के साथ पहाड़ के नेताओं की लगभग 35 मिनट तक बैठक हुई थी. हालांकि केंद्रीय गृह मंत्री ने उन सभी नेताओं को आश्वस्त किया है और उन्हें भरोसा दिया है.
आपको बताते चलें कि भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में दार्जिलिंग और सिक्किम के लिए अपने घोषणा पत्र में कहा था कि अगर भाजपा सत्ता में आती है तो पहाड़ के गोरखाओं का स्थाई राजनीतिक समाधान ढूंढा जाएगा. इसके साथ ही 11 जनजाति गोष्टी को अनुसूचित जनजाति में दर्जा देने पर विचार होगा. सिक्किम के लिए भी भाजपा ने 12 जाति गोष्ठी के लिए ऐसा ही वादा किया था. 2019 में भी इस वादे को दोहराया था. पहाड़ के गोरखा नेता काफी समय से 11 जनजातियों को अनुसूचित जाति में रखे जाने की मांग करते रहे हैं.इन जातियों में किवार, राई, खम्भु, गुरूंग, क्षेत्री, भूजेल, सन्यासी,थामी, बेहुन, देवान, सुनवार, नेवार आदि शामिल है. जबकि सिक्किम में उपरोक्त सभी 11 जातियों के अलावा मांझी को भी इसमें शामिल किए जाने का प्रस्ताव है.
केंद्र के समक्ष पहाड़ की राजनीतिक समस्याओं को लेकर इस तरह का प्रस्ताव बंगाल सरकार के माध्यम से आया था. बंगाल सरकार ने 11 जनजाति गोष्ठी को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के संबंध में केंद्र को एक अनुशंसा पत्र भेजा था. केंद्र सरकार ने इस पर विचार करने के लिए तीन कमेटियों का गठन किया था. 2019 में कमेटी ने इसकी फाइनल रिपोर्ट दे दी थी . आदिवासी मामलों के मंत्रालय के संयुक्त सचिव M R छेरिंग के नेतृत्व में जो निष्कर्ष निकल कर सामने आया था, उसके बाद इस मुद्दे को आरजीआई के हवाले कर दिया गया था.
पहाड़ में काफी समय से केंद्र सरकार की बेरुखी को लेकर विभिन्न राजनीतिक संगठनों के नेताओं के बीच नाराजगी देखी जा रही है. राजनीतिक संगठनों में कुछ दल भाजपा के मित्र दल भी हैं, जो पहाड़ में काले झंडे से लेकर विभिन्न माध्यमों से अपनी नाराजगी केंद्र पर व्यक्त कर रहे हैं. राजू बिष्ट ने कालिदास कृष्णानंद की रैली में अपनी पार्टी के दृष्टिकोण को साझा करते हुए कहा है कि उनकी पार्टी ने पहाड़ से जो भी वादा किया है, उसे पूरा करने के लिए दृढ़ संकल्प है. पहाड़ को थोड़ा धैर्य रखना होगा. उनकी पार्टी पहाड से किए अपने सारे वादे को पूरा करेगी. राजू बिष्ट ने यह बात 11 सितंबर को कही थी.
राजू बिष्ट ने कहा कि गोरखाओं के स्थाई राजनीतिक समाधान के लिए प्रयास चल रहा है. उन्हें अवश्य ही न्याय मिलेगा. जब राजू बिष्ट का ध्यान पहाड़ में भाजपा के एक सहयोगी संगठन GNLF के द्वारा काले झंडे लगाने की ओर दिलाया गया तो उन्होंने कहा कि हर किसी को अपने-अपने तरीके से प्रदर्शन करने का अधिकार है. लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि भाजपा के साथ उनके संबंधों में तल्खी आई है. बहरहाल RGI द्वारा की गई टिप्पणी को सिक्किम सरकार को भेज दिया गया है. देखना होगा कि सिक्किम सरकार मौजूदा स्थिति को देखते हुए अगला कदम क्या उठाती है. हालांकि राजू बिष्ट ने पहाड़ को भरोसा दिया है कि इस मुद्दे को दोबारा RGI के पास भेजा जाएगा. उन्होंने यह भी आश्वासन दिया है कि केंद्र सरकार के साथ वार्ता जारी रहेगी.
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