कोलकाता के आरजीकर कांड के बाद सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ने पश्चिम बंगाल सरकार को परेशान करके रख दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने ना केवल बंगाल सरकार, बल्कि कानून एवं व्यवस्था, प्रशासन, पुलिस तंत्र व सिस्टम सभी पर कड़ा प्रहार किया है. इसके बाद राज्य में तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो चुकी है. प्रदेश भाजपा के नेता शुरू से ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. आरजीकर मुद्दे पर वर्तमान में पूरे बंगाल में टीएमसी सरकार की खिंचाई हो रही है. फेसबुक और सोशल मीडिया पर टीएमसी सरकार के खिलाफ आक्रोश व्यक्त किए जा रहे हैं.
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी वी आनंद बोस तथा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच शुरू से ही 36 का आंकड़ा रहा है. कभी संवैधानिक अधिकार तो कभी कानून एवं व्यवस्था को लेकर राज्यपाल राज्य सरकार पर हमलावर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद राज्यपाल सी वी आनंद बोस को एक और मौका हाथ लगा है. राज्यपाल नई दिल्ली गए और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिले. उनके बीच काफी देर तक बात हुई थी. उनकी इस मुलाकात को तृणमूल कांग्रेस के मुख पात्र जागो बांग्ला ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की तैयारी के रूप में देखा है.
पश्चिम बंगाल संवाद पत्र जागो बांग्ला ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की तैयारी के रूप में समाचार प्रकाशित किया है. ममता बनर्जी की सरकार का मुख्य पत्र जागो बांग्ला माना जाता है. जागो बांग्ला ने लिखा है कि राज्यपाल सी वी आनंद बोस ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू तथा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक पत्र लिखा है. इसके अनुसार राज्य में कानून एवं व्यवस्था की गिरती हुई स्थिति को आधार बनाकर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की अनुशंसा की गई है.
हालांकि अधिकृत तौर पर इसकी कोई जानकारी सामने नहीं आई है. परंतु जागो बांग्ला में प्रकाशित लेख को केंद्र कर राज्य में इस पर राजनीति शुरू हो चुकी है. उधर राज्यपाल सी वी आनंद बोस तथा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के बीच मीटिंग को एक औपचारिक मुलाकात के रूप में देखा जा रहा है. आपको बताते चलें कि राज्यपाल श्री आनंद बोस ने कोलकाता में महिला ट्रेनी डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या के बाद उत्पन्न स्थिति को लेकर आरंभ से ही राज्य सरकार पर हमला करना शुरू कर दिया था.
उन्होंने कहा था कि राज्य में महिलाएं और नौजवान सुरक्षित नहीं है. लोग ममता बनर्जी की सरकार से दुखी है. कयास लगाया जा रहा है कि इन परिस्थितियों में राज्यपाल राष्ट्रपति से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकते हैं. यह भी चर्चा शुरू हो गई है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नैतिक आधार पर कोई फैसला ले सकती है. एक राजनीतिक दल के नेता ने इसका आधार बताते हुए कहा कि बताया कि 31 साल पहले 1993 में नदिया जिले में एक दिव्यांग लड़की से बलात्कार की घटना हुई थी. तब राज्य में ज्योति बसु की सरकार थी.
ममता बनर्जी पीड़िता के साथ राइटर्स बिल्डिंग पहुंच गई थी. उन्होंने ज्योति बसु से मुलाकात के लिए उनके चैंबर के दरवाजे के सामने धरने पर बैठकर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था. जब ममता बनर्जी को वहां से हटाने की सारी कोशिश कर ली गई और वह टस से मस नहीं हुई तब उन्हें और पीड़िता को महिला पुलिसकर्मियों ने घसीटते हुए उतार दिया और लाल बाजार थाना लेकर गई. इस दौरान ममता के कपड़े तक फट गए थे.
कहा जाता है कि इस घटना के बाद ममता बनर्जी ने कसम खाई थी कि जब तक मुख्यमंत्री बन नहीं जाती, तब तक वह इस इमारत में दोबारा कदम नहीं रखेगी. उनका यह सपना 20 मई 2011 को साकार हुआ. कुछ लोग इस आधार पर यह सोच रहे हैं कि ममता बनर्जी कुछ इस तरह के कदम उठा सकती हैं.जबकि कुछ लोगों के अनुसार ममता बनर्जी के लिए यह कुछ नया नहीं है.
राज्य में दुष्कर्म के मामलों पर कई बार ममता की भूमिका पर सवाल उठे हैं. वह चाहे हंसखाली का मामला हो या कुमुदिनी का, पहले भी उन पर आरोप लगते रहे हैं. लेकिन उन्होंने कभी इस्तीफा जैसी बात नहीं कही थी. 11 दिनों से चल रहा हंगामा आखिर कब तक शांत होगा, सबकी इस पर निगाहें टिकी है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी फिलहाल चुप हैं.
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