April 20, 2024
Sevoke Road, Siliguri
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सिलीगुड़ी में 25 से शुरू हो रही है चैती छठ पूजा!

सिलीगुड़ी के विभिन्न घाटों पर एक बार फिर से चहल-पहल बढ़ने वाली है. एक बार फिर से सिलीगुड़ी शहर में छठ मैया के गीत बजने वाले हैं. यह चहल-पहल और उत्साह चैती छठ पूजा को लेकर होगा. आगामी 25 मार्च से यानी शनिवार से सिलीगुड़ी में चैती छठ पूजा शुरू होगी. उस दिन नहाए खाए से व्रत आरंभ होगा.

सिलीगुड़ी में मां संतोषी घाट, हरिओम घाट, महानंदा घाट अथवा निरंजन मौलिक घाट इत्यादि विभिन्न घाटो पर छठ पूजा का आयोजन स्थानीय समितियों के द्वारा किया जाएगा. इसके लिए तैयारी शुरू हो चुकी है. आपको बताते चलें कि छठ पूजा साल में दो बार होती है. एक बार कार्तिक मास में तथा दूसरी बार चैत्र मास में. हालांकि कार्तिक मास की छठ पूजा काफी संख्या में व्रती करते हैं.

स्थानीय छठ पूजा कमेटियों से मिली जानकारी के अनुसार शनिवार को नहाए खाए, रविवार यानी 26 मार्च को खरना, 27 मार्च को पहला अर्घ्य तथा 28 मार्च को प्रातः कालीन अर्घ्य के साथ ही छठ पूजा संपन्न हो जाएगी. चैती छठ पूजा की शुरुआत चैत्र शुक्ल चतुर्थी को होती है. चैती छठ पूजा की सबसे खास बात यह है कि इसे नवरात्रि के छठे दिन मनाते हैं.

उस दिन देवी के छठे रूप यानी कात्यायनी की पूजा होती है. जबकि नहाए खाए के दिन देवी के कुष्मांडा रूप की पूजा होती है. खरना के दिन कुमार कार्तिकेय की माता देवी स्कंदमाता की पूजा होती है. इसलिए चैत्र नवरात्रि के दौरान जो श्रद्धालु चैती छठ का व्रत रखते हैं, उन्हें छठी मैया के साथ-साथ देवी की भी कृपा मिल जाती है. ऐसी मान्यता है कि छठ व्रत करने से व्रती को बल, आरोग्य, समृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति होती है.

चैती छठ पूजा के बारे में लोगों की ऐसी मान्यता है कि इस पूजा की शुरुआत भगवान राम ने की थी. भगवान राम का संबंध सूर्यवंश से है. ऐसा माना जाता है कि जब भगवान राम का राज्याभिषेक हुआ था तब भगवान राम ने देवी सीता के साथ अपने कुलदेवता भगवान भास्कर की पूजा की थी. कहा जाता है कि भगवान राम ने चैत्र महीने की षष्ठी तिथि पर सरजू नदी के तट पर सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया था.

सूर्य देव की पूजा का आरंभ सृष्टि के आरंभ से माना जाता है. यह कहा जाता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि को सृष्टि का आरंभ हुआ था. उसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में पहला अवतार लिया था. इसके बाद सांसारिक जीवो ने चैत शुक्ल षष्ठी तिथि को सांसारिक संतुलन बनाए रखने के लिए सूर्य की उपासना की थी और तभी से ही सूर्य पूजा की परंपरा चली आ रही है.

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