कोलकाता उच्च न्यायालय ने वह फैसला सुनाया है, जो अब तक देश के किसी भी राज्य के हाईकोर्ट ने नहीं सुनाया था. किसी भी न्यायाधीश या बेंचपीठ ने इसको छेड़ने की कोशिश नहीं की थी, जिसे कोलकाता उच्च न्यायालय ने राज्य और देश के समक्ष रखा है. इसलिए जाहिर है कि इस पर चर्चा शुरू हो गई है और लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि कोलकाता उच्च न्यायालय का यह फैसला बाल अपराध को बढ़ावा देगा या फिर अपराध पर अंकुश लगाएगा.
कोलकाता उच्च न्यायालय के फैसले को समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं. माना कि आप नाबालिग हैं. आपकी उम्र 18 साल से कम है. आपने कोई अपराध कर दिया है. वह अपराध छोटा हो या बड़ा, यहां तक कि आपसे कत्ल भी हो जाता है, तब भी कोर्ट से आप अग्रिम जमानत पा सकते हैं और कोर्ट आपको अग्रिम जमानत देने के लिए बाध्य है. कोलकाता उच्च न्यायालय का फैसला इसी दिशा में केंद्रित है और इसीलिए इसे ऐतिहासिक फैसला बताया जा रहा है.
कोलकाता उच्च न्यायालय की तीन जजों की पीठ ने यह फैसला 2-1 के अंतर से सुनाया है. यानी तीन जजों में से दो जज सहमत हैं और एक जज इसके खिलाफ हैं. इसलिए बहुमत से यह फैसला सुनाया गया है. इसके अनुसार नाबालिग अपराधियों को भी अग्रिम जमानत पाने का अधिकार है. अदालत ने कहा है कि नाबालिग अपराधी कोर्ट से अग्रिम जमानत पा सकते हैं. उन्हें इसका पूरा अधिकार है. कोर्ट उन्हें अग्रिम जमानत के लिए मना नहीं कर सकता है. हालांकि जानकार मानते हैं कि कोलकाता हाई कोर्ट का यह फैसला नाबालिग के अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है.
कोलकाता हाई कोर्ट ने कहा है कि अभी तक तो सिर्फ बड़े या वयस्कों को अग्रिम जमानत मिलती थी. लेकिन अब यह नियम नाबालिगों पर भी लागू होंगे. कोलकाता हाई कोर्ट की तीन जजों की पीठ में न्यायाधीश जय सेन गुप्ता, न्यायाधीश तीर्थंकर घोष और न्यायाधीश बिवास पटनायक शामिल हैं. उन्होंने ही यह फैसला सुनाया है. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि किसी भी अपराध में शामिल नाबालिग अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर कर सकते हैं.कोलकाता हाई कोर्ट का यह फैसला पूरे देश में पहला ऐतिहासिक फैसला बन गया है.
अब तक नाबालिग अपराधों के मामले में जो नियम थे, उसके अनुसार नाबालिग अपराधियों को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के सामने पेश किया जाता था. जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड यह तय करता था कि आरोपी को जमानत दी जानी चाहिए या नहीं. अगर आरोपी पर संगीन मामला दायर किया गया है तो जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के पास उसे अग्रिम जमानत देने का अधिकार भी नहीं होता था.
न्यायाधीश सेनगुप्ता और न्यायाधीश घोष का मानना है कि नाबालिग को अग्रिम जमानत देना सही है. लेकिन न्यायमूर्ति पटनायक ने इसका विरोध किया है. कानून के जानकार मानते हैं कि कोलकाता हाई कोर्ट का यह फैसला काफी सराहनीय है. हालांकि इसका दूसरा पहलू भी खतरनाक हो सकता है और शायद इसी की तरफ न्यायाधीश पटनायक का इशारा था और इसीलिए उन्होंने इसका विरोध किया है. आप कोलकाता हाई कोर्ट के इस फैसले को किस तरह से देखते हैं कमेंट करना ना भूलिएगा
