हिमालय के क्षेत्रों में सिक्किम से शुरू होकर लद्दाख और उसके आसपास के क्षेत्र तक भारी संख्या में ग्लेशियर और झीलों का जंजाल फैला है. ग्लोबल वार्मिंग के चलते ग्लेशियर पिघल रहे हैं. जब ग्लेशियर पिघल जाएंगे तो ऐसे हादसों का होना स्वाभाविक है. वैज्ञानिक भी इस पर सहमत हैं. मौसम विभाग के मुताबिक सिक्किम में जो तबाही आई है, इसका कारण बादल फटना नहीं. बल्कि इलाके में स्थित निचले इलाकों में ग्लेशियर के पिघले पानी से बनी झीलों के बांध टूटने या फटने से हुई है. इसको वैज्ञानिक भाषा में ग्लेशियर लेक आउट Burst flood कहते हैं.
सिक्किम में ग्लेशियर के निचले इलाकों में इस तरह की कई झीले हैं. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि आने वाले समय में इस तरह की कई आपदाएं खड़ी हो सकती हैं. इस तरह की घटनाएं उत्तराखंड में भी हो चुकी है. हाल ही में चमोली में ऐसी घटना घटी थी. 2013 में केदारनाथ धाम त्रासदी के पीछे भी यही कारण जिम्मेवार था. जब जब ग्लेशियर झीलों का बांध टूटता है तो ऐसी ही तबाही आती है. वैज्ञानिकों के अनुसार सिक्किम और लद्दाख के इलाकों में ग्लेशियर के नीचे वाले भाग में उसके पिघलने वाले बर्फ के पानी से बड़ी-बड़ी झीले तैयार हो जाती है. जब झील में पानी बहुत ज्यादा जमा हो जाता है तब यह पानी बांध के रूप में अपनी सभी सीमाएं तोड़ देता है और तबाही मचाता है.
सिक्किम में ऐसा ही हुआ है. वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों का मानना है कि जब भी ग्लेशियर लेक आउट burst flood आता है तो वह अचानक ही आता है. इससे पूरा इलाका खतरे में डूब जाता है. हालांकि जो खबरें सामने आ रही है, उसके मुताबिक चूंगथांग बांध से पानी छोड़े जाने के कारण नीचे की ओर 15 से 20 फीट की ऊंचाई तक जलस्तर अचानक बढ़ गया. इससे सिंगताम के पास वारदांग में खड़े सेना के वाहन पानी में बह गए. जबकि 23 जवानों के लापता होने की सूचना है.
विशेषज्ञों ने बताया कि जिस तरह से ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट हुआ, उसका पानी इतनी तीव्रता के साथ आगे बढ़ा कि मौजूदा बांध को अगर ना खोला जाता तो भारी तबाही हो सकती थी. सूत्र बता रहे हैं कि सिक्किम में सडके, पुल सब बाढ़ के पानी में समा गए हैं. राष्ट्रीय राजमार्ग 10 बह गई है. हालांकि सिक्किम में युद्ध स्तर पर राहत तथा बचाव कार्य शुरू कर दिया गया है. लेकिन तीस्ता नदी का जलस्तर अभी नियंत्रण में नहीं है. सिक्किम का प्रमुख पुल इंद्रेणी भी बह गया है. यह पूर्वी सिक्किम में सिंगताम को दक्षिण जिले के आदर्श गांव से जोड़ता है. सिंगताम और रंगपो में कितनी तबाही हुई है ,अभी इसका आकलन नहीं किया जा सका है.
वैज्ञानिक ए बनर्जी के अनुसार जिस तरह से ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ता जा रहा है, ऐसे में आने वाले दिनों में हिमालय क्षेत्र में कई ग्लेशियर पिघलेंगे और इससे से भी बड़े खतरे सामने आ सकते हैं.उनकी आशंका है कि सिक्किम में इससे भी बड़ा खतरा उत्पन्न हो सकता है. इसलिए जरूरी है कि सिक्किम को प्राकृतिक खतरों से बचाने के लिए बेहतर तकनीकी का इस्तेमाल और वाटर बॉडीज पर नजर रखी जाए. इसके अलावा मानसून के महीने में सिक्किम में स्थित झीलों के पानी के स्तर पर तथा उसके निकास को बारीकी से अध्ययन किए जाने की जरूरत है.
वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर लेक flood को लेकर पहले से दी जाने वाली चेतावनी तथा सेंसर आधारित तकनीक का बेहतर तरीके से इस्तेमाल किए जाने की जरूरत है और यह सब काम वक्त रहते किया जाना जरूरी है.