केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जून महीने में गोरखालैंड के स्थाई राजनीतिक समाधान के लिए एक त्रिपक्षीय बैठक बुलाई है. उम्मीद की जा रही है कि बैठक में राज्य सरकार, केंद्र सरकार और पहाड़ तथा Dooars से गोरखा नेता भाग लेंगे. आपको बताते चलें कि हिल्स नेता बिनय तमांग ने ही त्रिपक्षीय रिव्यू बैठक के बारे में केंद्रीय गृह मंत्री को चिट्ठी लिखी थी.
लोकसभा चुनाव से पूर्व पहाड़ में गोरखालैंड की मांग जोर पकड़ती जा रही है. गोरखालैंड के मुद्दे पर केंद्र सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप लगातार जारी है. यह कहना गलत नहीं होगा कि दोनों की ओर से गोरखा लोगों को लॉलीपॉप दिया जा रहा है.गोरखा नेता खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं.जैसा कि हिल्स नेता विनय तमांग का आरोप है, जो उन्होंने खबर समय के साथ एक साक्षात्कार में दिया है.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी यूं तो गोरखालैंड के मुद्दे पर कोई स्पष्ट बात नहीं कहती. परंतु उनका मानना है कि अगर पहाड़ में विकास होता है तो इससे बड़ी बात और कुछ नहीं हो सकती. मुख्यमंत्री तथा राज्य सरकार की ओर से दार्जिलिंग पहाड़ के विकास के लिए कुछ ना कुछ योजनाएं लगातार चलाई जा रही हैं. विनय तमांग बताते हैं कि पहाड़ में जो कुछ भी अब तक संभव हो सका है,वह केवल कांग्रेस की देन है.इसमें ना तो तृणमूल कांग्रेस और ना ही भाजपा का कोई योगदान है. जबकि दार्जिलिंग संसदीय सीट से पिछले 15 सालों से लगातार भाजपा विजय हासिल करती आ रही है.
दार्जिलिंग के भाजपा सांसद राजू बिष्ट बताते हैं कि भाजपा पहाड़ के स्थाई राजनीतिक समाधान के लिए तत्पर है. किंतु राज्य सरकार का सहयोग नहीं मिल रहा है. उन्होंने आरोप लगाया है कि पिछली बैठक में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने रेजिडेंट कमिश्नर को भेजा था. इसी से पता चलता है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती कुछ और करती कुछ है. दूसरी ओर राज्यसभा सांसद शांतनु सेन का मानना है कि पहाड़ में जो कुछ भी विकास दिख रहा है, वह केवल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की देन है. ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद ही पहाड़ में विकास कार्य हुआ है. जबकि भाजपा ने हमेशा ही पहाड़ के लोगों को धोखा दिया है.
इस तरह से अलग-अलग पार्टियों का अलग-अलग स्टैंड रहा है. लेकिन गोरखालैंड को लेकर कोई भी पार्टी स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहना चाहती. जबकि गोरखा नेता मानते हैं कि अब समय आ गया है कि गोरखा लोगों को उनका संवैधानिक हक मिले. विनय तमांग ने स्पष्ट रूप से कहा है कि गोरखा लोगों को इंसाफ मिलना चाहिए. जब तक उनका संवैधानिक हक नहीं मिल जाता, तब तक पहाड़ का ना तो विकास होगा और ना ही कोई राजनीतिक समाधान होगा.
बहरहाल पहाड़ के सभी गोरखा नेता उत्साहित हैं. जून महीने में होने वाली संभावित त्रिपक्षीय बैठक को लेकर पहाड़ में लगातार चहल-पहल बढ़ती जा रही है.जैसे जैसे समय करीब आता जा रहा है, पहाड़ में राजनीतिक सरगर्मियां भी बढ़ती जाएंगी. उम्मीद की जा रही है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पूर्व जून महीने में होने वाली गोरखालैंड मुद्दे को लेकर त्रिपक्षीय बैठक से कोई ना कोई वांछित परिणाम सामने आएगा. जो कहीं ना कहीं गोरखा लोगों की कसौटी पर अथवा उनकी अपेक्षा के अनुकूल साबित होगा. बहर हाल अब देखना होगा कि यह त्रिपक्षीय बैठक कब और किस प्रकार होती है. यह भी देखना होगा कि बैठक में गोरखा नेता के बीच कितनी एकता रहती है!