पहाड़, डुवार्स एवं तराई क्षेत्र के लगभग 10 लाख चाय श्रमिक गदगद हैं. उन्हें वह मिल गया, जिसका वह लंबे समय से इंतजार कर रहे थे. उन्होंने इसके लिए कठिन श्रम किया. तपस्या की. धरना, आंदोलन, प्रदर्शन सब कुछ किया. लेकिन गुजरे सालों में उनकी आवाज नहीं सुनी गई. अब चुनाव सामने आ रहा है तो एक ही झटके में सरकार ने उनकी झोली भर दी है. 15 सितंबर से पहले चाय श्रमिकों को पूजा बोनस मिलने जा रहा है. वह भी 20%.
खुद चाय श्रमिक भी हैरान हैं. बागान मालिकों से अपनी मांग मनवाने के लिए उन्हें लंबी लड़ाइयां लड़नी पड़ती हैं. हर साल दुर्गा पूजा से पहले बोनस के मुद्दे पर मालिकों और श्रमिकों के बीच तलवारें खिंच जाती थीं. मालिक बागान बंद करके चले जाते थे. लेकिन इस साल पूरा कमाल हो गया. बोनस को लेकर पहली ही बैठक में फैसला हो गया. 20% बोनस मिलेगा. जिस तरह से यह फैसला हुआ है, जानकर उसे अभूतपूर्व मानते हैं.
क्योंकि इस तरह का फैसला पिछले वर्षों में कभी नहीं हुआ है. चुनाव विश्लेषक सरकार के इस कदम को चुनाव से पूर्व वोट बैंक सुरक्षित करने से जोर कर देख रहे हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार ने एक तीर से दो निशाना साधा है. विधानसभा चुनाव से पहले यह अंतिम पूजा बोनस है. दूसरे में चाय श्रमिकों को खुश करके उनका वोट हासिल करना है. विपक्ष हमेशा इसे मुद्दा बनाता रहा है. यहां विपक्ष कमजोर होगा…
भले ही सरकार के इस फैसले से चाय श्रमिक खुश हैं. परंतु उन्हें बोनस देने वाले चाय बागानों के मालिक और मैनेजर असंतुष्ट हैं. उन्हें लगता है कि सरकार ने बिना उनसे विचार विमर्श किये एक तरफा फैसला किया है. सरकार ने उनकी एक नहीं सुनी है. टी एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के महासचिव प्रवीर भट्टाचार्य कहते हैं कि हमारी स्थिति अच्छी नहीं है. लेकिन फिर भी सरकार ने हमारी समस्या नहीं सुनी. तराई इंडियन प्लांटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष महेंद्र बंसल भी कहते हैं कि सरकार का फैसला एक तरफा है. कोई भी चाय बागान इस स्थिति में नहीं है कि वह अपने श्रमिकों को 20% बोनस दे सके.
लेकिन यह सरकार का फैसला है. मालिक रो कर दे या गाकर, बोनस तो उन्हें 20% की दर से ही देना होगा. उसके लिए समय सीमा भी निर्धारित कर दी गई है. कोलकाता में 5 चाय बागान मालिकों के संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ श्रम मंत्री की बैठक हुई और उसी में यह नतीजा सामने आया. हालांकि देखा जाए तो चाय श्रमिकों की मांग कोई ज्यादा नहीं है और यह उचित भी है. क्योंकि यह सर्वविदित है कि उत्तर बंगाल के चाय श्रमिकों को बहुत कम मजदूरी मिलती है.
इससे उनके घर का खर्चा भी नहीं चलता है. पूरे साल अभाव का सामना करते आ रहे चाय श्रमिकों को एक ही उम्मीद रहती है कि साल में कम से कम एक बार इतना पूजा बोनस मिल जाए ताकि उनके बच्चों को नए कपड़े और कुछ देर के लिए खुशियां हासिल हो जाए. चाय श्रमिक इसी के लिए जीते भी हैं. चाय श्रमिकों को इससे कोई लेना देना नहीं है कि सरकार ने उन्हें चुनाव पूर्व तोहफा दिया है. वह खुश हैं और संतुष्ट भी नजर आ रहे हैं.
अगर आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो उन्हें दी जाने वाली बोनस की दर कोई ज्यादा नहीं है. वर्ष 2017 में श्रमिकों को 19.75% बोनस दिया गया था. जबकि 2018 में 19.5 प्रतिशत, इसी तरह से 2019 में 18.5%, जबकि 2020-2022 के दौरान चाय श्रमिकों को 20% बोनस दिया गया. वर्ष 2023 में चाय श्रमिकों को 19% और वर्ष 2024 में उन्हें 16% की दर से बोनस दिया गया था. इसलिए चाय बागान मालिकों को खुशी खुशी चाय श्रमिकों को यह तोहफा दे देना चाहिए.
एक समय पहाड़, तराई और Dooars चाय बागान के लिए मशहूर थे. यहां अनेक फैक्ट्रियां और चाय बागान थे. लेकिन धीरे-धीरे चाय बागान बंद होते चले गए. बागानों के बंद होने से श्रमिकों के समक्ष रोजी रोटी का संकट बढ़ता चला गया. अनेक श्रमिक पलायन करने के लिए मजबूर हो गए, तो कई श्रमिक छोटे-मोटे उद्योग धंधे करके अपने परिवार का पेट पालने लगे. इस समय लगभग 10 लाख श्रमिक विभिन्न चाय बागानों में काम कर रहे हैं. उनमें से काफी अस्थाई भी हैं. पर बोनस सभी को मिलेगा.
बोनस को लेकर अब राजनीति भी शुरू हो गई है. तृणमूल चाय बागान श्रमिक यूनियन सरकार की प्रशंसा में जुट गई है. जबकि विपक्षी यूनियन के हाथों के तोते उड़ने नजर आ रहे हैं. भाजपा समर्थित भारतीय टी वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष सांसद मनोज टीगा कहते हैं कि यह हमारी शुरू से ही मांग रही है. बंगाल सरकार ने जो कदम उठाया है, वह राजनीति से प्रेरित है.उन्होंने कहा कि चाय मजदूरों की और भी बहुत सी मांगे हैं. जैसे कम वेतन,पीएफ, ग्रेजुएटी का बकाया आदि,इसके बारे में सरकार कोई एडवाइजरी क्यों नहीं जारी करती है. जो भी हो, राजनीति अपनी जगह है. पर सच तो यह है कि चाय श्रमिक सरकार के फैसले से खुश नजर आ रहे हैं.