युग बीत गया. वक्त बदल गया. भूगोल भी बदला. परिवेश और संस्कृति में भी बदलाव आया. लेकिन कुछ लोग दशकों पहले जैसे थे, आज भी वैसे ही हैं. ना तो उनके विचार बदले हैं और ना ही संस्कृति. वे परंपरागत तरीके से अपना काम करते हैं और दिन दुनिया से दूर अपने तरीके से जिंदगी भी जीते हैं.
हजारों वर्ष पहले भारत में रामायण और महाभारत की कथा लिखी गई थी. रामायण महाकाव्य के अंतर्गत सुर और असुर का वर्णन मिलता है. आज भी असुर जनजाति के लोग इस धरती पर क्या, बल्कि सिलीगुड़ी के निकट निवास करते हैं. राम नहीं, रावण की पूजा करने वाले लोग आज भी देश के कुछ भागों में निवास करते हैं. हमारे देश में ऐसे समुदाय और संस्कृति में विश्वास करने वाले लोग आधुनिकता से दूर अपनी परंपरा को ही तरजीह देते आए हैं.
सिलीगुड़ी के निकटवर्ती Dooars इलाकों में प्राचीन असुर वंशज के लोग निवास करते हैं जो अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीते हैं. उन्हें ना तो दुनिया की चिंता है और ना ही बदलाव की. उनकी सोच और विचार आज भी दशकों पुरानी है. प्राचीन हिंदू महाकाव्य में असुर की चर्चा हुई है. आज भी कुछ लोग खुद को प्राचीन असुर समाज के वंशज मानते हैं. ऐसे लोग ना तो आसमान में रहते हैं और ना ही पाताल लोक में. बल्कि इसी पृथ्वी पर और इसी सिलीगुड़ी के पास रहते हैं.
सिलीगुड़ी के निकट नागराकाटा के केरण चाय बागान के नजदीक असुर समाज के लोग फैले हुए हैं. ये लोग Dooars के अलग-अलग भागों में रहते हैं. इनका जमावड़ा भारत भूटान सीमा के नजदीक अधिक देखा जाता है. सूत्रों ने बताया कि केरण चाय बागान में लगभग 400 असुर जनजाति के लोग निवास करते हैं. इन असुरों की जिंदगी अलग पटरी पर चलती है और उनकी संस्कृति भी अलग है. हालांकि समय के बदलाव के साथ असुर समाज की नई पीढ़ी की सोच में बदलाव आया है. पर बड़े बुजुर्ग आज भी पुरानी सभ्यता में जीते हैं.
आज पूरे बंगाल में धूमधाम के साथ दुर्गा पूजा मनाई जा रही है. लेकिन असुर समाज के लोग दुर्गा पूजा नहीं मनाते.और तो और, इस समुदाय के लोग मां दुर्गा की प्रतिमा तक देखना गवारा नहीं समझते. इन असुर जनजातियों के लिए तो महिषासुर ही देवता हैं. वे महिषासुर की पूजा करते हैं और खूब धूमधाम के साथ महिषासुर का गुणगान और त्यौहार मनाते हैं. आखिर असुर समाज को मां दुर्गा की प्रतिमा से चिढ़ क्यों है? वे दुर्गा पूजा क्यों नहीं मनाते? इस बारे में असुर समाज के लोगों का कहना है कि दुर्गा ने उनके देवता महिषासुर का वध किया था. इसलिए वे दुर्गा पूजा नहीं करते और यहां तक कि दुर्गा की प्रतिमा तक देखना उन्हें पसंद नहीं है.
आज वक्त के साथ बहुत कुछ बदला है. इसलिए असुर समाज के लोगों के विचारों में भी बदलाव आ रहा है. एक समय तक असुर जनजाति के लोग दुर्गा पूजा उत्सव में भाग नहीं लेते थे.लेकिन आज भले ही वे मां दुर्गा की पूजा नहीं करते हों लेकिन दुर्गा उत्सव में जरूर शामिल होते हैं. समय के बदलाव ने उनके बच्चों को भी प्रभावित किया है.अब कहीं दुर्गा पूजा होती है तो उनके बच्चे और बुजुर्ग भी इस अवसर पर लगने वाले मेले में भाग लेते हैं. वे नए कपड़े पहनते हैं और खूब सारी खरीददारी भी करते हैं. इन असुरों की जिंदगी के अलग-अलग पहलू और दिलचस्प कहानियां छिपी हैं.