September 10, 2025
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नेपाल को लेकर भारत इतना दुखी क्यों है? आज नेपाल भारत का एक राज्य होता!

आज यह सवाल उठ रहा है कि अगर नेपाल भारत का एक राज्य होता तो शायद वहां इस तरह की नौबत नहीं आती. आप सोच रहे होंगे कि नेपाल भारत का एक राज्य कैसे हो जाता? तो आपकी जानकारी के लिए यह बताना जरूरी है कि स्वयं नेपाल के राजा त्रिभुवन वीर विक्रम शाह चाहते थे कि नेपाल का भारत में विलय हो जाए! वह नेपाल को भारत के एक राज्य के रूप में देखना चाहते थे.

लेकिन तब भारत में पंडित जवाहरलाल नेहरू का शासन था. उन दिनों नेपाल में त्रिभुवन वीर विक्रम शाह राजा थे. यह 1951 की बात है.राजा वीर विक्रम शाह भविष्य द्रष्टा भी थे. उन्होंने अपने देश में आने वाली स्थिति का आकलन कर लिया था और इसीलिए वे चाहते थे कि नेपाल को भारत में विलय कर दिया जाए और उन्होंने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के समक्ष नेपाल के विलय का प्रस्ताव भी रखा था.

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने नेपाल के मुद्दे पर कूटनीति से काम लिया. उन्होंने राजा के प्रस्ताव को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया कि नेपाल एक स्वतंत्र राष्ट्र है और उसे ऐसा ही रहना चाहिए. इस बात का उल्लेख पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी पुस्तक द प्रेसिडेंशियल ईयर के 11वे चैप्टर माई प्राइम मिनिस्टर डिफरेंट स्टाइल्स डिफरेंट टेंपरामेंट शीर्षक के अंतर्गत किया है. प्रणव मुखर्जी लिखते हैं कि अगर उस समय इंदिरा गांधी होती तो राजा के प्रस्ताव को मान लेती और इस स्थिति में आज नेपाल भारत का एक राज्य होता. जिस तरह से इंदिरा गांधी ने सिक्किम रियासत को भारत में विलय किया था.

भारत और नेपाल के बीच बेटी रोटी का संबंध है. दोनों देशों की संस्कृति और साधुता भी एक सी है. दोनों ही देश एक दूसरे के पूरक हैं.इस स्थिति में नेपाल को तबाह होते भला कैसे एक भारतीय देख सकता है! यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की ओर से नेपाल के हालात पर अपनी पीड़ा का इजहार किया है और वहां के लोगों के सुख और शांति की कामना की है.

नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता का दौर लंबे समय से चल रहा है. चीन में 1949 में कम्युनिस्ट क्रांति हुई थी. 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था. कम्युनिस्टों के बढ़ते प्रभाव ने नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ा दी थी. नेपाल के राजा त्रिभुवन वीर विक्रम शाह को नेपाल की सुरक्षा को लेकर चिंता होने लगी. तब उन्होंने नेपाल को भारत में विलय के लिए उस समय के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के समक्ष प्रस्ताव रखा था.

नेपाल के राजा वीर विक्रम शाह की आशंका सच साबित हुई. 2006 में नेपाल में माओवादियों ने सशस्त्र क्रांति के बाद सत्ता पर कब्जा कर लिया. उसके बाद से नेपाल में लगातार राजनीतिक अवसरवाद और भ्रष्टाचार की कहानी चलती रही. इसका परिणाम यह हुआ कि 17 साल में 14 प्रधानमंत्री बदले गए. अगर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने राजा वीर विक्रम शाह के प्रस्ताव को मान लिया होता तो आज नेपाल में वह सब नहीं होता, जो आज हुआ है.

यह वही नेपाल है जो 1846 से लेकर 1951 तक राणा शासको की छत्रछाया में था. यह वही नेपाल है, जो कभी पूरी दुनिया से अलग थलग था. भारत की आजादी और चीन की क्रांति के बाद नेपाल में सत्ता का बदलाव का खेल शुरू हुआ और उसके बाद से यहां भ्रष्टाचार की बेलें जड़ जमाती चली गई.

भारत और नेपाल के बीच एक पारिवारिक और व्यापारिक रिश्ता बन चुका है. दोनों ऐसे पड़ोसी हैं जिन्हें अलग करना संभव नहीं है. नजदीकियों के चलते भारत अपने पड़ोसी राष्ट्र की बदहाली पर दुखी है और नेपाल में राजनीतिक स्थिरता और वहां की जनता की सुख और शांति की कामना कर रहा है.

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