पृथ्वी पर लगभग 2 लाख 15000 ग्लेशियर हैं. इनमें से आधे ग्लेशियर सदी के अंत तक पिघल जाएंगे. यह बात हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है. हिमालय क्षेत्र में सर्वाधिक ग्लेशियर है. सिक्किम और कई राज्य हिमालय की गोद में बसे हैं.आप कल्पना कर सकते हैं कि जब ग्लेशियर पिघलेंगे, तब इन राज्यों का क्या होगा!
पिछले दिनों सिक्किम में हुई तबाही से भी बड़ी तबाही आने वाली है. अकेला सिक्किम नहीं है. बल्कि हिमालय क्षेत्र में बसे हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर भी शामिल है. इन क्षेत्रो में अधिकतर ग्लेशियर हैं. ग्लेशियर पिघलने का सबसे बड़ा कारण अनियंत्रित निर्माण, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन इत्यादि है. हिमनद झील तब आती है, जब ग्लेशियर पिघलता है. जैसा कि सिक्किम में देखा गया.
2013 में केदारनाथ हादसे को कोई भूला नहीं होगा. यह बड़ी आपदा ग्लेशियर के पिघलने के कारण ही आई थी. जिस तरह से मौसम, जलवायु का परिवर्तन, प्रदूषण, पहाड़ों पर अनियंत्रित निर्माण प्रदूषण की घटनाएं बढ़ रही है, ऐसे में वैज्ञानिक मानते हैं कि इस सदी के अंत तक पृथ्वी के आधे ग्लेशियर पिघल जाएंगे. आधे ग्लेशियर का मतलब हुआ एक लाख से काफी ज्यादा. कल्पना कर सकते हैं कि जब एक साथ इतने सारे ग्लेशियर पग लेंगे तो कयामत ही आ जाएगी यह सबसे बड़ी चिंता का कारण है. वैज्ञानिकों का अध्ययन भारत में हाल में घटी कई घटनाओं को प्रमाणित भी करती है. ज्वलंत घटना तो सिक्किम की ही है.
पर्यावरण विशेषज्ञ अंजल प्रकाश के अनुसार हिमनद झीलों की संख्या लगातार बढ़ रही है. यह पृथ्वी के लिए और मानव जाति के लिए सबसे बड़ा खतरा है. पहाड़ की भौगोलिक संरचना कुछ ऐसी है कि जिस तरह से यहां भवनों का निर्माण होता है, उसमें किसी तरह का तकनीकी अथवा इंजीनियरिंग पहलू का ध्यान नहीं रखा जाता है. इसके लिए कहीं ना कहीं सरकार भी दोषी है. इससे एक बड़ी आबादी मुसीबत में पड़ जाती है.
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान इंदौर के प्रोफेसर आजम के अनुसार केदारनाथ त्रासदी और इस तरह की कई घटनाएं भविष्य में भी होती रहेगी. इसलिए वैज्ञानिकों और हमारी सरकार को ग्लेशियर के पिघलने के जो भी कारण है, उन कारणों को दूर करने के लिए एक सटीक रणनीति का निर्माण करने की आवश्यकता है. आज सिक्किम में जो कुछ भी हुआ, वह हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, और जम्मू कश्मीर में भी हो सकता है. ऐसे में सिक्किम समेत हिमालय की गोद में बसे अन्य राज्यों को बचाने के लिए सरकार, वैज्ञानिक और सोशल इंजीनियरिंग को मिलकर एक ठोस रणनीति के साथ आगे कदम बढ़ाने की जरूरत है.
सिक्किम में भविष्य में ऐसी आपदाओं को रोकने के लिए सिक्किम सरकार, वैज्ञानिक और भारत सरकार विभिन्न संगठनों के साथ मिलकर एक सिस्टम विकसित करने जा रहे हैं. यह कुछ ऐसा सिस्टम होगा कि जब भी ऐसी आपदा आए तो पहले से लोगों को इसकी जानकारी हो सके. ताकि लोग सचेत हो सके. इसके अलावा सिक्किम के ग्लेशियर पर भी शोध चल रहे हैं. वैज्ञानिकों की एक टीम अध्ययन में जुट गई है.न केवल सिक्किम में ही बल्कि हिमालय के अन्य राज्यों में भी एक बड़ी आबादी को बचाने के लिए भारत सरकार,वैज्ञानिकों और सोशल इंजीनियरिंग के साथ प्रयास में जुट गई है!