हाट हो या मेला या बाजार ,कुछ भी खरीदारी करने के लिए पैसे की जरूरत होती है. पैसे से ही वस्तु खरीदी जाती है… अगर आप यह सोचते हो तो शायद गलत होगा कि पैसा ही सब कुछ है. क्योंकि बंगाल में एक मेला ऐसा भी है जहां कुछ खरीदने के लिए पैसा नहीं बल्कि आपके पास वस्तु चाहिए. ठीक उसी तरह से जैसे प्राचीन काल में लोग विनिमय प्रथा से खरीदारी करते थे. अर्थात आपके पास कोई वस्तु हो, उसे आप दुकानदार के पास ले जाएंगे और दुकानदार वस्तु की कीमत का आकलन करते हुए उस वस्तु को रखकर आपको अन्य वस्तु देता है, जिसकी आपको जरूरत है.
इस तरह से इस खरीदारी में पैसे का कोई महत्व नहीं होता. बल्कि वस्तु का महत्व होता है. प्राचीन काल में लोग ऐसा ही करते थे. जिस व्यक्ति को किसी चीज की आवश्यकता होती थी, उस वस्तु के मूल्य के बराबर घर का कोई सामान व्यक्ति दुकानदार को देकर वस्तु को घर ले आता था. हजारों वर्षों पहले की यह विनिमय प्रथा और प्राचीन संस्कृति आज भी मालदा के चंचल के शिहीपुर में देखने को मिलती है.
मालदा जिला के अंतर्गत शिहीपुर में फाल्गुन संक्रांति पर बसंत पूजा की जाती है. लगभग 300 वर्षों से फाल्गुन की संक्रांति पर यहां हर साल खुजली मेले का आयोजन किया जाता है. बसंत देवता की पीठ के स्थान पर पूजा की जाती है. इसके बाद यहां मेला शुरू होता है. पूरे बंगाल में यह मेला काफी प्रसिद्ध है. क्योंकि यह प्राचीन मेला है. और यह भी कहा जाता है कि यहां बसंत देवता की पूजा करने से चर्म रोग से लोगों को मुक्ति मिलती है.
यहां के ग्रामीण बसंत देवता को खुश करने के लिए प्राचीन काल से ही पारंपरिक लावा, नाडू और मुरकी का भोग अर्पित करते हैं. यह सारी वस्तुएं मेले से ही खरीदनी पड़ती है.इन वस्तुओं को खरीदने के लिए ग्रामीणों को पैसे की जरूरत नहीं होती है. क्योंकि प्राचीन काल से चली आ रही प्रथा के अनुसार पूजा का सामान खरीदने के लिए बदले में ग्रामीणों को उपयुक्त मूल्य का सामान दुकानदार को देना होता है.
ऐसी मान्यता है कि दुकानदार खरीदारों से नगद पैसे नहीं ले सकता अन्यथा उसका काफी नुकसान हो सकता है. बसंत देवता नाराज हो सकते हैं. कोई भी विक्रेता पैसे लेकर भोग का सामान नहीं बेचना चाहता. भक्त अथवा बसंत देवता की पूजा करने वाले ग्रामीण अपने घर से धान, चावल, सरसों , गेहूं ,जौ आदि घर से लाते हैं. अनाजों के बदले में वे दुकानदारों से भोग का सामान लेते हैं.
चांचल का शिहीपुर गांव बेहद गरीब है. आज भी गांव के अधिकांश नर नारी गरीबी रेखा के नीचे जीवन व्यतीत करते हैं. एक एक पैसे के मोहताज गरीब लोग प्राचीन काल से चली आ रही प्रथा के अनुसार विनिमय पद्धति से खरीदारी करते हैं. पूजा का सामान खरीदना तो एक प्रतीक मात्र है.जो यहां की विनिमय प्रथा को बताता है.अनेक मान्यताओं तथा पुरानी संस्कृति से जुड़े इस मेले में दूर-दूर से लोग आते हैं और मन्नत मांगते हैं.