दुर्गा पूजा में अब कुछ ही दिन शेष रह गए हैं. ढाकियों का बाजार गरमाने लगा है. ढाकियों के लिए मशहूर है मुर्शिदाबाद, बांकुरा, नदिया जिला आदि. जिले के विभिन्न गांवों में अधिकतर ढाकी मिल जाएंगे. साल भर वे छोटे-मोटे कार्य करके अपना घर चलाते हैं. लेकिन दुर्गा पूजा के आगमन के साथ ही उनके चेहरे पर विशेष चमक लौट आती है. सूत्र बताते हैं कि पूरे साल भर की कमाई उन्हें दुर्गा पूजा में ही मिल जाती है. क्योंकि ऐसे ढाकिए केवल बंगाल में ही नहीं, बल्कि देश के दूसरे राज्यों जैसे दिल्ली, मुंबई, जयपुर आदि शहरों में भी जाते हैं और मुहमांगी कमाई करते हैं.
कल तक कुछ ऐसा ही नजारा था. लेकिन आज हालात उनके अनुकूल नहीं है. देश के दूसरे राज्यों से उनका बुलावा आ रहा है. लेकिन वे डरे हुए हैं. पिछले कुछ समय से एक डर का वातावरण बन गया है. समाचार पत्रों और टीवी चैनल्स के जरिए उन्हें पता चला है कि राज्य से बाहर में रहने वाले बंगालियों पर पुलिस अत्याचार कर रही है. उन्हें बांग्लादेशी बता कर जबरन गिरफ्तार किया जा रहा है. अगर उनके पास उपयुक्त कागजात अथवा दस्तावेज नहीं है तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है. यही डर ढाकियों को भी सता रहा है. कहीं उन्हें भी पुलिस गिरफ्तार ना करे. इस डर से वे राज्य से बाहर जाने से बचना चाहते हैं.
अगर कमाई की बात करें तो ढाकियों की स्थिति प्रदेश में उन्हें घर की मुर्गी दाल बराबर देखा जाता है और उसी के हिसाब से उन्हें मेहनताना भी मिलता है. जबकि अगर वे दूसरे राज्यों में ढाक बजाने जाएं तो उनकी अच्छी खासी आमदनी हो जाती है. एक अनुमान के अनुसार पूजा में ढाक बजाने पर दूसरे राज्यों में 15000 से 25000 रुपए मिल जाते हैं. जबकि दिल्ली और मुंबई में तो उससे भी ज्यादा आमदनी हो जाती है. जो लोग उन्हें बुलाते हैं, वही उनके आने-जाने का भाड़ा, खाने पीने और रहने का प्रबंध करते हैं. दुर्गा पूजा आयोजन कमेटियों को उनका सारा खर्चा उठाना पड़ता है.
हालांकि बंगाल में भी ऐसा ही है. परंतु उन्हें बहुत कम मेहनताना मिलता है. सूत्रों ने बताया कि ढाकियों को रोज के हिसाब से सामान्य मजदूरी दी जाती है. जितने दिन वे ढाक बजाते हैं, उतने दिन के हिसाब से उन्हें मजदूरी मिलती है. इसलिए ऐसे ढाकिए अच्छी कमाई करने के लिए प्रदेश से बाहर के राज्यों और शहरों मे जाते हैं. इस बार बहुत कम लोगों को यह मौका मिल रहा है. जिनके पास कागजात पूरे हैं, वही देश के दूसरे राज्यों में ढाक बजाने जा रहे हैं.
क्योंकि इस बार भाषा आंदोलन को लेकर प्रदेश का मिजाज कुछ और है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी प्रदेश के बाहर काम करने वाले बंगाली भाषा श्रमिकों और मजदूरों को प्रदेश में बुलाकर उन्हें मासिक भत्ता देने की तैयारी कर रही है. ऐसे में ढाकिए प्रदेश से बाहर जाने के लिए तैयार नहीं है. कई ढाकियों ने यह फैसला भी किया है कि वह अपने प्रदेश में रहकर ही ढाक बजाएंगे और जो कुछ भी मिलेगा उसी में संतोष करेंगे. हालांकि नौजवान ढाकिए जोखिम उठाने के लिए तैयार है. उनका मनोबल बढ़ा रहे हैं तृणमूल कांग्रेस विधायक अरूप चक्रवर्ती.
अरुप चक्रवर्ती भयभीत और प्रदेश से बाहर ढाक बजाने नहीं जाने वाले ढाकियों को आश्वासन देते हैं कि अगर देश के दूसरे राज्यों में एक भी ढाकी को किसी कारण से परेशान होना पड़ा तो वह हजारों ढाकियों के साथ संसद का घेराव करेंगे. लेकिन प्रदेश के खासकर बुजुर्ग ढाकी किसी भी तरह का खतरा मोल लेने को तैयार नहीं है. बंगाल के जिन जिलों से वे आते हैं, बांग्लादेश उनसे सटा हुआ है. इसलिए उनकी भाषा में बांग्लादेशी लहजा भी आ जाता है. इस वजह से उन्हें दूसरे राज्यों में बांग्लादेशी समझ लिया जाता है और उन्हें परेशान किया जाता है.
हालांकि जो ढाकिए बंगाल के निवासी हैं, उन्हें डर तो नहीं है. परंतु वे राज्य से बाहर जाने के लिए अपने सभी कागजात तैयार करवा रहे हैं. ताकि पुलिस उन्हें पकड़े तो वे पुलिस को कागजात दिखा सके. कई ढाकियों को मुंबई के सितारों से भी आमंत्रण मिला है. जहां उन्हें लाखों रुपए की आमदनी होने वाली है. मुंबई जाने के लिए वे अपने दस्तावेज और कागजात बनाने शुरू कर दिए हैं. बहुत से ढाकी ऐसे हैं जो अपने साथ राशन कार्ड, आधार ,मतदाता पहचान पत्र व तमाम दस्तावेज साथ लेकर जा रहे हैं. ताकि मुसीबत के समय कागजात उनके काम आए.
आवश्यकता है ऐसे ढाकियों के दिल में बैठ गए वहम और डर को दूर करने की. हिंदुस्तान में कोई भी कहीं जा सकता है और रोजी रोटी कमा सकता है. यह उन्हें याद रखना चाहिए. क्योंकि यह हर व्यक्ति को संवैधानिक अधिकार प्राप्त है.