कालिमपोंग जिले में एक सरकारी स्कूल ऐसा भी है, जहां कोई भी छात्र मौजूद नहीं है. इसके बावजूद यह स्कूल चल रहा है. इस बात का पता शिक्षा विभाग के आंतरिक आंकड़े से चला है. हालांकि स्कूल के नाम का उल्लेख नहीं है. शिक्षा विभाग के आंतरिक आंकड़े पश्चिम बंगाल में शिक्षा की बदहाल स्थिति की ओर भी इशारा करते हैं.
सबसे पहले शिक्षा विभाग के आंतरिक आंकड़ों पर एक नजर डालते हैं. पूरे बंगाल के 23 जिलों के 348 स्कूल ऐसे हैं, जहां एक भी छात्र की मौजूदगी नहीं है. फिर भी इन स्कूलों को चलाया जा रहा है. सरकार शिक्षक और स्कूल की देखरेख पर हर महीने खर्च करती है. लेकिन दुखद स्थिति यह है कि इन स्कूलों में पढ़ने के लिए छात्र नहीं है. यह आश्चर्य की भी बात है.
शिक्षा विभाग के आंतरिक आंकड़े बताते हैं कि राज्य में जो 348 स्कूल हैं, उनमें से सभी या तो सरकारी या सरकार से सहायता प्राप्त करने वाले स्कूल हैं. आंकड़ों के अनुसार कोलकाता में 119 स्कूल ऐसे हैं, जहां 2020 के बाद एक भी छात्र का दाखिला नहीं हुआ है. कोलकाता के बाद उत्तर 24 परगना दूसरे नंबर पर आता है, जहां 60 स्कूल ऐसे हैं, जिनमें एक भी छात्र की मौजूदगी नहीं है.
आंकड़ों के अनुसार पूरे राज्य में तीसरे नंबर पर हावड़ा आता है. जहां 24 स्कूल हैं. इसके बाद पूर्वी वर्धमान जिला चौथे नंबर पर आता है. जहां 18 स्कूल हैं. इन स्कूलों में छात्रों की मौजूदगी नहीं है. इसके बाद उत्तर बंगाल का स्थान आता है. उत्तर बंगाल में कूच बिहार जिला और कालिमपोंग जिले में दो स्कूल ऐसे हैं, जहां एक भी छात्र की मौजूदगी नहीं है.
शिक्षा विभाग के आंतरिक आंकड़े के अनुसार इनमें से राज्य के 348 स्कूलों में से बहुत से स्कूल 50 साल से अधिक पुराने हैं. लेकिन उनमें छात्रों की मौजूदगी नहीं है. चर्चा है कि सरकार उन्हें चरणबद्ध तरीके से बंद करना चाहती है. इसके अलावा जिन स्कूलों में छात्रों की मौजूदगी बहुत कम है, उन स्कूलों को भी चरणबद्ध तरीके से बंद किया जा सकता है.
समाचार पत्रों और मीडिया में छपी खबरों के अनुसार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार ने शिक्षा विभाग के आंतरिक आंकड़ों पर संज्ञान लिया है. यह खबर आ रही है कि सरकार बिना छात्र के चलने इन स्कूलों को बंद कर देगी. शिक्षा विभाग के आंतरिक आंकड़ों के सुर्खियों में आने के बाद राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा ने राज्य सरकार पर हमला करना शुरू कर दिया है.
भाजपा के प्रदेश महासचिव जगन्नाथ चट्टोपाध्याय ने अपने एक बयान में कहा है कि इन आंकड़ों से पता चलता है कि ममता बनर्जी की सरकार में राज्य में स्कूली शिक्षा का खस्ता हाल है! हालांकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था पर खर्च कर रही है. आंगनबाड़ी से लेकर प्राथमिक स्कूलों में बच्चों के लिए मिड डे मील की उन्नत व्यवस्था के साथ ही शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया इस बात का संकेत है कि धीरे-धीरे स्कूलों की स्थिति में सुधार लाने का प्रयत्न किया जा रहा है.
दूसरी तरफ राज्य के जिन स्कूलों को विद्यार्थी विहीन चिन्हित किया गया है, ऐसे स्कूलों को बंद करने का राज्य सरकार का फैसला उचित कहा जा सकता है. इन स्कूलों का उपयोग सरकार पंचायत भवन अथवा अन्य कार्यों में कर सकती है. या फिर ऐसे स्कूलों को आधुनिक पढ़ाई के हिसाब से विकसित किया जा सकता है. यह सरकार को फैसला करना होगा. जो भी हो, समाचार पत्रों और मीडिया खबरों की सुर्खियां बने बिना छात्रों के चल रहे राज्य के 348 स्कूल शिक्षा व्यवस्था की बदहाल स्थिति की ओर इशारा करते हैं.
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