महानंदा अभयारण्य सिलीगुड़ी को एक प्राकृतिक और नैसर्गिक प्रवाह देता है. सिलीगुड़ी की सुंदरता महानंदा अभयारण्य से है. यही कारण है कि प्रशासन हर समय महानंदा अभयारण्य को बचाने के लिए काम करता रहता है. लेकिन इस समय महानंदा अभ्यारण्य कुछ प्राकृतिक और कुछ भौतिक कारणों से अपना बुनियादी स्वरूप खो रहा है.
वर्तमान में गुलमा नदी महानंदा अभ्यारण्य के लिए शोक बन चुकी है. इस नदी की स्थिति यह है कि नदी के मध्य में चट्टान और बालू पत्थर जमा हो गए हैं. जिसके कारण गुलमा नदी अपना रास्ता बदल कर महानंदा अभयारण्य की भूमि को निगल रही है.अभी बारिश का मौसम है.बरसात सितंबर अक्टूबर तक जारी रहेगी.ऐसे में पर्यावरण विदों को लगता है कि जिस तरह से गुलमा नदी ने अपना मुख्य प्रवाह बदला है और बदले रास्ते से बह रही है, ऐसे में महानंदा अभ्यारण्य की ढेर सारी भूमि नदी के आगोश में चली जाएगी!
यह कोई पहली घटना नहीं है. बरसों से गुलमा नदी महानंदा अभयारण्य की भूमि निगल रही है. अब देर से ही सही, प्रशासन जगा है और नदी तथा महानंदा अभयारण्य दोनों को ही बचाने में जुट गया है. गुलमा नदी के बहाव का मुख्य रास्ता खोलने के लिए नदी के बीच से बालू पत्थर और चट्टानों को निकालने का काम शुरू कर दिया गया है. जब यह काम पूरा हो जाएगा तो यह नदी अपना स्वाभाविक मार्ग फिर से पकड़ लेगी.
चर्चा है कि वन मंत्री ज्योति प्रिय मलिक इसमें खासी दिलचस्पी ले रहे हैं.राज्य सरकार लगातार सहयोग कर रही है. महानंदा अभयारण्य की ढेर सारी भूमि नदी के अंदर समाहित हो चुकी है. हर साल इस नदी में बाढ़ आती है और बाढ़ का पानी महानंदा अभयारण्य में प्रवेश करने लगता है, जिसके कारण जंगली जीव जंतु और पारिस्थितिक संतुलन को खतरा उत्पन्न होने लगता है.
गुलमा नदी और महानंदा अभयारण्य दोनों को बचाने के लिए यही विकल्प लाया गया कि नदी का रास्ता साफ किया जाए.अप्रैल महीने से ही गुलमा नदी से बालू पत्थर उठाने का काम शुरू कर दिया गया है. यहां से जो बालू पत्थर उठाए जाते हैं, वह सभी बालासन ब्रिज से लेकर आर्मी कैंप तक बनने वाली फोर और सिक्स लेन एलिवेटेड रोड के निर्माण में लगाई जाएगी. 40 हजार सीएफटी बालू पत्थर को रोड निर्माण में लगाने की बात कही जा रही है.
हालांकि गुलमा नदी से बालू पत्थर निकालने को लेकर स्थानीय कुछ संगठन एतराज भी जता रहे हैं. क्योंकि जब दूसरी नदियों से खनन का काम बंद है तो ऐसे में गुलमा नदी से खनन कैसे किया जा रहा है? खैर सवाल यह महत्वपूर्ण नहीं है. सवाल महानंदा अभयारण्य और गुलमा नदी को बचाने का है. अगर वन विभाग और पश्चिम बंगाल सरकार अपने इरादे में कामयाब होती है तो यह सिलीगुड़ी के पर्यावरण और जलवायु के लिए गौरव की बात होगी.