महानंदा अभ्यारण्य के चारों तरफ 5 किलोमीटर का क्षेत्र इको सेंसिटिव जोन है. इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार का विकास कार्य, जो वन्य प्राणियों को असुरक्षित करे, नहीं किया जा सकता है. जबकि सच्चाई यह है कि इस क्षेत्र में मानव एवं निर्माण गतिविधियां तेजी से चल रही हैं. इसके कारण पर्यावरण और जलवायु पर खतरा बढा है. फिलहाल इस क्षेत्र में बड़े-बड़े निर्माण कार्य रुके हुए हैं. विभिन्न पक्षों और पीड़ितों की ओर से यह मांग की जा रही है कि इको सेंसिटिव जोन को नए तरीके से परिभाषित किया जाए और उसकी सीमा को घटाया जाए.
अगर ऐसा नहीं होता है तो ना तो यहां चाय बागान बचेंगे और ना ही बिल्डरों के प्रोजेक्ट. इसका सबसे बड़ा नुकसान यहां के लोगों को होने वाला है. ना तो यहां किसी तरह के विकास कार्य होंगे और ना ही चल रही परियोजनाओं का उन्हें लाभ मिलेगा. अब इस समस्या को लेकर माटीगाड़ा नक्सलबाड़ी के भाजपा विधायक आनंदमय बर्मन के साथ शिखा चटर्जी और उत्तर बंगाल के अन्य भाजपा विधायक दिल्ली में केंद्रीय वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव से मिले थे और उनसे मांग की थी कि इको सेंसेटिव जोन को लेकर एक सर्वमान्य फार्मूला निकाला जाए. केंद्रीय मंत्री ने भाजपा विधायकों को आश्वासन दिया है. मिली जानकारी के अनुसार केंद्रीय मंत्री इस संदर्भ में पड़ताल के लिए मई में सिलीगुड़ी आ सकते हैं.
महानंदा वन्य जीव अभ्यारण्य के आसपास के क्षेत्र को इको सेंसेटिव जोन घोषित किया गया है. इको सेंसेटिव जोन को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया जाता है. इसका उद्देश्य पर्यावरण और जैविक अखंडता की रक्षा करना है, जहां मानव जनित और जलवायु कारकों के कारण पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. महानंदा वन्य जीव अभयारण्य के अंतर्गत हाथी, रॉयल बंगाल टाइगर और बाइसन जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों को शामिल किया गया है. यह क्षेत्र सिलीगुड़ी के चारों ओर स्थित है.
महानंदा वन्य जीव अभ्यारण्य की सीमा के चारों ओर 5 किलोमीटर की दूरी तक इको सेंसेटिव जोन है. इसका क्षेत्रफल 18.16 वर्ग किलोमीटर है, जहां ना तो कोई निर्माण किया जा सकता है और ना ही कोई ऐसी गतिविधि जो संरक्षित क्षेत्र और पर्यावरण के लिए खतरा हो. महानंदा वन्य जीव अभ्यारण्य की सीमा के 5 किलोमीटर की दूरी में चाय बागान भी आते हैं, तो क्या चाय बागानों को नष्ट कर दिया जाएगा?
फिलहाल इसी मुद्दे पर मामला गरमाया हुआ है. चाय बागान पक्ष के लोगों ने हाल ही में सिलीगुड़ी नगर निगम के मेयर गौतम देव के साथ एक बैठक की थी. हालांकि इस पर अभी कोई फैसला नहीं आ सका है. आनंद मय बर्मन चाहते हैं कि इको सेंसिटिव जोन को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन किया जाए. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार किसी भी राष्ट्रीय उद्यान और वन्य जीव अभ्यारण्य का इको सेंसेटिव जोन कम से कम 1 किलोमीटर होना चाहिए. अगर इस नियम और निर्देश का पालन किया जाता है तो चाय बागान क्षेत्र को कोई नुकसान नहीं होगा और ना ही इको सेंसेटिव जोन के इलाकों में चल रहे विकास कार्य ज्यादा प्रभावित होंगे.
जबकि दूसरी तरफ केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्रालय ने महानंदा अभयारण्य के इको सेंसेटिव जोन को लेकर 22 सितंबर 2020 को एक राजपत्र अधिसूचना जारी की थी. इसमें कहा गया था कि महानंदा अभ्यारण्य के इको सेंसेटिव जोन के 5 किलोमीटर तक किसी तरह का निर्माण और विकास नहीं किया जा सकता. इस क्षेत्र को और विस्तारित करने के लिए 6 सितंबर 2024 को एक और अधिसूचना जारी की गई थी. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश में यह भी कहा गया है कि किसी भी राष्ट्रीय उद्यान या अभ्यारण्य के भौगोलिक वातावरण और स्थान के आधार पर उसे बढ़ाया जा सकता है.
बहरहाल केंद्रीय वन मंत्री भूपेंद्र यादव अगर सिलीगुड़ी आते हैं और वह यहां के महानंदा अभ्यारण्य के इको सेंसेटिव जोन की पड़ताल करते हैं, उसके बाद ही एक सेंसिटिव जोन के मैप को लेकर कोई महत्वपूर्ण निर्णय किया जा सकता है. उससे पहले कुछ नहीं हो सकता है. वन मंत्री को इस संदर्भ में फैसला करते समय इको सेंसिटिव जोन के लोगों की समस्या और शहरी क्षेत्र में रहने वाले लोगों के जीवन विकास और परियोजनाओं के लाभ को भी देखना होगा. इसके साथ ही वन्य जीव सुरक्षा को भी ध्यान में रखना होगा. विकास का कार्य वन्य जीव को खतरे में डालकर नहीं किया जा सकता. बहरहाल मई महीने में ही यह पता चलेगा कि किसके चेहरे पर मुस्कान रहती है और किसके चेहरे से मुस्कान गायब होती है.