सावन का पवित्र महीना चल रहा है और देशभर में शिवभक्त अपने आराध्य को जल चढ़ा रहे हैं।
इसी श्रद्धा और आस्था की बयार पहुँची है पश्चिम बंगाल के तारापीठ मंदिर तक, जहाँ माँ तारा को जल अर्पित कर रहे हैं हजारों श्रद्धालु।
कांवड़ यात्रा की तरह, भक्त यहाँ विभिन्न जिलों और राज्यों से जल लेकर पहुँचते हैं। सावन में यह मंदिर न केवल शिव उपासकों के लिए, बल्कि शक्ति उपासकों के लिए भी एक विशेष तीर्थ बन जाता है।
भारत के 51 शक्तिपीठों में शामिल, यह मंदिर देवी माँ तारा को समर्पित है — जो दस महाविद्याओं में से एक हैं।
यह मान्यता है कि यहीं देवी सती का तीसरा नेत्र गिरा था। इसी कारण यह स्थान बना एक महान शक्तिपीठ और तांत्रिक साधना का केंद्र।
मंदिर से सटे हुए श्मशान घाट की भी बड़ी महिमा है।
यहीं प्रसिद्ध तांत्रिक वामाखेपा ने अपनी साधना पूरी की थी। आज भी, उनके अनुगामी और साधक यहाँ तांत्रिक अनुष्ठान और ध्यान के लिए जुटते हैं।
भक्तों का मानना है कि माँ तारा केवल कामनाओं की पूर्ति नहीं करतीं —
बल्कि आध्यात्मिक शांति, तांत्रिक ऊर्जा और मनोबल भी प्रदान करती हैं।
सावन, नवरात्रि, अमावस्या जैसे पर्वों पर तो यहाँ विशेष पूजा, दर्शन, और श्रृंगार होता है,
लेकिन सालभर तारापीठ में श्रद्धालुओं की कतार बनी रहती है।
तारापीठ केवल एक मंदिर नहीं — यह है लोक आस्था, तंत्र साधना और माँ शक्ति के चमत्कार का साक्षात स्थल।
यहाँ हर भक्त को माँ तारा के चरणों में शांति, ऊर्जा और कृपा की अनुभूति होती है।
📺 अब सीधे लिए चलते हैं आपको तारापीठ, जहाँ हमारे विशेष संवाददाता कौशल बिस्वास मौजूद हैं।
देखिए माँ तारा की भक्ति से ओतप्रोत यह खास रिपोर्ट।
🙏 “जय माँ तारा!”