November 18, 2024
Sevoke Road, Siliguri
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सिक्किम में ‘सुनामी’ के बाद तबाही के मंजर!

सिक्किम प्रदेश में सुनामी तो गुजर गई, अब जो तबाही सामने दिख रही है, उसे देखकर किसी का भी हृदय विचलित हो सकता है. किसी का पिता पानी के सैलाब में बह गया, तो किसी की बहू. किसी का चमन उजड़ गया, तो किसी का बरसों से एक एक पाई जोड़कर बनाया गया आशियाना भी जमींदोज हो गया. सूनी आंखें किसी को ढूंढ रही हैं तो बच्चों के आंसू सूख नहीं रहे हैं. एक मां अपने लाडले को इधर-उधर ढूंढते हुए मानसिक सदमे का शिकार हो चुकी है. उसे विश्वास है कि उसका बेटा जीवित है और वह एक दिन उसे सहारा देने आएगा.

घर,बस्ती, मकान, इंसान, पशु पक्षी,अपने पराए… कुछ भी तो सुरक्षित नहीं रहा. तीस्ता बेसिन में लोग अपने उजड़े बगिया को ढूंढ रहे हैं. उन्हें एक बार फिर से खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. जो लापता हो गए हैं, उन्होंने अपने पीछे परिवार वालों को काफी दर्द दिया है. यह दर्द इतना बड़ा है कि उसका बयान करना आसान नहीं है. तीस्ता बेसिन में कई कहानियां जन्म ले रही है.

हर लोगों की अपनी अपनी कहानी है. एक मां ने अपना सब कुछ खो दिया. बरसों की कमाई, घर में रखे गहने, दस्तावेज कुछ भी तो नहीं बचा रहा. इस मां की एक बहू है और दो बच्चे. गनीमत है कि सभी सलामत है. लेकिन बाकी कुछ भी उनके पास नहीं है. रो रो कर उनका बुरा हाल है. लोग सांत्वना तो दे रहे हैं. परंतु जो तबाही हो चुकी है, उसका किसी के पास समाधान नहीं है. सरकार अपने नियम के अनुसार मुआवजा तो देगी, लेकिन उससे उनका आशियाना खड़ा नहीं हो सकता.

जिस रात सुनामी आई थी, तीस्ता बेसिन में सायरन की आवाज सुनकर एक पिता उठ गया. उसने अपने बच्चों और परिवार को खतरे के प्रति आगाह किया और वहां से सुरक्षित स्थान पर निकलने के लिए तैयार करने लगा. बस्ती के दूसरे लोगों को भी होशियार करने के लिए वह पिता एक घर से दूसरे घर जाने लगा. ताकि लोग सतर्क हो जाए और सुरक्षित निकलने की तैयारी शुरू कर दें. अब उस पिता का ही पता नहीं है. कुदरत की यह लीला बड़ी विचित्र थी. जो शख्स दूसरों की मदद करने निकला हो, कुदरत ने उसे ही अपनी चपेट में ले लिया.

कई बच्चे अनाथ हो चुके हैं. शरणार्थी शिविरों में शरण लिए अनेक लोग पानी उतरने के बाद अपने-अपने आशियाने की ओर चल पड़े हैं. लेकिन तबाही का मंजर देखकर वे भी नाउम्मीद होने लगे हैं. सिक्किम सरकार जितना संभव हो सकता है, पीड़ितों की मदद कर रही है. लेकिन जो अपने खो चुके हैं, उन्हें तो कोई भी नहीं ला सकता. फिर भी जनजीवन को बहाल करने की कोशिश की जा रही है. सिक्किम को एक बार फिर से पटरी पर लाने की कोशिश की जा रही है. लेकिन इसमें वक्त लगेगा.

फिलहाल सिक्किम में पीड़ितों के आंसू पोछने की जरूरत है. तीस्ता बेसिन फिर से अपने पुराने रंग रूप में लौटेगा या नहीं, फिलहाल बता पाना मुश्किल है. वर्तमान में तो तबाही के बाद लोगों को कई और मुसीबत से जूझना पड़ सकता है. जैसे संक्रामक रोग का खतरा बढ़ गया है. इसके अलावा आशियाने की चिंता, सुरक्षा और बच्चों की पढ़ाई लिखाई, भोजन, पानी कई समस्याएं खड़ी हो गई हैं. सिक्किम सरकार को इन सभी चुनौतियों से मुकाबला करना होगा. हालांकि विपदा की इस घड़ी में सिलीगुड़ी और आसपास के विभिन्न संगठनों से मदद भेजी जा रही है. इसके अलावा कई राज्य सरकारों ने भी सिक्किम को मदद भेजने की पेशकश की है. भारत सरकार लगातार सिक्किम सरकार से संपर्क बनाए हुए है.

अब देखना है कि सिक्किम कब तक अपनी पुरानी छवि में लौटता है.

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