सिलीगुड़ी में आए दिन स्कूली बच्चों से संबंधित कोई ना कोई बुरी खबर माता-पिता अथवा स्कूलों को सुनने को मिलती है. कभी स्कूल बस को लेकर बुरी खबर तो कभी बच्चों की कुसंगति और बुरे व्यसन की खबरें. जो माता-पिता को काफी परेशान और चिंतित करती हैं. अभी ज्यादा समय नहीं हुआ, जब सिलीगुड़ी मेट्रोपोलिटन पुलिस ने सिलीगुड़ी के कंचनजंगा स्टेडियम से कुछ स्कूली बच्चों के बैग से शराब की कुछ बोतलें बरामद की थीं.
विद्यालय में टिफिन के समय आप कुछ बच्चों को सिगरेट फूंकते देख सकते हैं. इस तरह से बच्चों का नैतिक और चारित्रिक बल लगातार कमजोर होता जा रहा है. आखिर बच्चों को गुमराह कौन कर रहा है? क्या विद्यालय? क्या हमारा सिस्टम? क्या हमारी सरकार या खुद बच्चे इसके जिम्मेदार हैं?
विद्यालय यानी विद्या का मंदिर, जहां छात्र और शिक्षक क्रमशः अध्ययन अध्यापन करते हैं. शिक्षक छात्रों को संस्कार और नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं. किसी व्यक्ति की उन्नति में शिक्षक का महत्वपूर्ण योगदान होता है. राजनीति, समाज सेवा, विज्ञान, अंतरिक्ष और सभी क्षेत्रों में बड़े-बड़े काम करने वाले लोग किसी न किसी विद्यालय के छात्र होते हैं और उनके जीवन पर शिक्षक का बडा असर होता है. विद्यालय का वातावरण शांत और सुरक्षित रहना चाहिए.
नियमों के अनुसार विद्यालय के आसपास किसी तरह का कोलाहल नहीं होना चाहिए. विद्यालय परिसर में हरियाली होनी चाहिए. विद्यालय में बच्चों के नैतिक, चारित्रिक और मानसिक विकास के लिए सभी संसाधन उपलब्ध रहने चाहिए. इसके अलावा विद्यालय के आसपास 500 मीटर की दूरी के भीतर ऐसी कोई दुकान नहीं होनी चाहिए, जहां से बच्चों को व्यसन की आदत लगने की आशंका रहती हो. परंतु यह सारे नियम केवल कागजों पर ही देखे जाते हैं. वास्तविकता में यह नियम लागू ही नहीं होते हैं, जिसका परिणाम यह है कि आज स्कूलों में अधिकतर बच्चे किसी न किसी व्यसन के शिकार हो गए हैं. उनमें सिगरेट अथवा नशा करने, शराब पीने आदि की लत लगती जा रही है.
एक अध्ययन से पता चलता है कि सिलीगुड़ी के अधिकांश स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को शांत वातावरण नहीं मिलता है. विद्यालय के आसपास ही शोर शराबा और कोलाहल का वातावरण रहता है. इसके अलावा कुछ विद्यालय के पास ही हाट भी लगता है. जिससे विद्यालय का वातावरण अध्ययन के योग्य नहीं होता. विद्यालय परिसर के बाहर ही कई ऐसी दुकाने हैं, जहां दुकानदार खुलेआम सिगरेट और पान मसाले बेचते हैं. टिफिन के समय जब बच्चे स्कूल परिसर से बाहर आते हैं तो उन्हें ऐसी दुकानों पर कुछ खरीदते जरूर देख सकते हैं.
विद्यालय जहां शिक्षक और छात्र का साक्षात्कार होता है, वह स्थान अत्यंत पवित्र और शांत होना चाहिए. नियमों के अनुसार विद्यालय अथवा शैक्षिक संस्थान के पास शांति और पवित्रता होनी चाहिए.जिस विद्यालय के आसपास हरियाली, दिव्यता, शांति और पवित्रता बनी रहती है, वहां साक्षात विद्या की देवी विराजती हैं और अपने छात्रों पर कृपा बरसाती हैं. कहने का मतलब यह है कि बच्चों के विकास का वैज्ञानिक वातावरण मिल जाता है.
क्या सिलीगुड़ी में ऐसा कोई विद्यालय अथवा शैक्षणिक संस्थान आप देखते हैं, जहां आसपास में शोर शराब नहीं होता हो. विद्यालय के आसपास पान मसाला, सिगरेट इत्यादि की दुकान नहीं हो? सिलीगुड़ी में कुछ विद्यालय ऐसे भी हैं, जहां परिसर के कुछ ही कदम दूर पान अथवा सिगरेट की दुकान होती है और दुकानदार बच्चों के मांगने पर सिगरेट देने से भी नहीं झिझकते हैं.
अगर सब कुछ विद्यालय के नियमों के अनुसार काम होता है तो फिर ये दुकाने विद्यालय के पास क्यों दिखाई देती हैं? क्या सिलीगुड़ी नगर निगम अथवा प्रशासन की इस पर नजर नहीं है? क्या प्रशासन जानबूझकर अनजान बना है? या इसमें विद्यालयों की मिलीभगत रहती है? सवाल कई है. लेकिन उत्तर नदारद.
क्या यह समझा जाना चाहिए कि हाथी के दांत दिखाने के और और खाने के और होते हैं. यह किसकी जिम्मेदारी है जो व्यवस्था संचालन को देख सके? ना तो स्कूल प्रशासन इस पर आपत्ति दर्ज कराता है और ना ही सिलीगुड़ी प्रशासन! ऐसे में स्कूली बच्चे व्यसन के शिकार तो होंगे ही. अगर बच्चों को संस्कार, नैतिकता, सदाचार और जीवन में कामयाब होने की शिक्षा देनी हो तो सर्वप्रथम विद्यालय का वातावरण उपयुक्त बनाया जाए और इसके साथ ही विद्यालय के जितने भी नियम है, उनका व्यावहारिक रूप से पालन किया जाए!