सिलीगुड़ी में जब भी कोई स्कूल बस दुर्घटना होती है, तब पुलिस प्रशासन हरकत में आता है. नए सिरे से स्कूल बस परिचालन नियमों की विवेचना की जाती है और आवश्यकता के अनुसार कुछ नए नियम भी जोड़े जाते हैं. स्कूल प्रबंधन और स्कूल बस चालकों को प्रशासन की ओर से चेतावनी जारी की जाती है कि अगर नियम तोड़े तो होगी कार्रवाई और फिर कागजी कार्रवाई पूरी करने के बाद बैठक समाप्त हो जाती है. सिलीगुड़ी में पिछले कई सालों में यही देखा गया है.
जब तक दुर्घटना को अभिभावक भुला नहीं देते हैं, तब तक पुलिस प्रशासन भी कुछ इस तरह से अपना कार्य कर रहा होता है, जैसे सड़क दुर्घटना रोकने के लिए दृढ़ संकल्पित हो. फिर धीरे-धीरे प्रशासन की ढिलाई और स्कूल बस चालकों की लापवाही सामने आती है. सिलीगुड़ी में केवल स्कूल बस परिचालन ही नहीं, अतिक्रमण से लेकर अवैध टोटो की धर पकड़, निर्माण और सभी क्षेत्रों में ऐसा ही देखा जाता है. कुछ दिनों तक प्रशासन की सजगता रहती है और उसके बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है. लोगों का भ्रम उतर जाता है.
सिलीगुड़ी में हाल ही में ईस्टर्न बाईपास पर 8 साल के मासूम यश की दर्दनाक मौत के बाद सिलीगुड़ी पुलिस प्रशासन हरकत में है और सिलीगुड़ी में चल रही बेलगाम स्कूल बसों पर नियंत्रण की योजना बना रहा है. स्कूल प्रबंधन, बस मालिक और चालकों के साथ पुलिस प्रशासन की पिछले दिनों हुई बैठक के बाद जो नए नियम निर्धारित किए गए हैं, उन पर एक नजर डाल लेते हैं. मुख्य रूप से जो नियम बनाए गए हैं, उनमें प्रत्येक स्कूल को मुख्य सड़क पर बस स्टॉप निर्धारित करना होगा. बड़ी बसें गली मोहल्ले में नहीं जाएंगी. माता-पिता या अभिभावक को ही अपने बच्चों को लेकर मुख्य सड़क पर निर्धारित बस स्टॉप पर आना होगा.
अन्य नियमों में सभी स्कूली बसों में महिला अटेंडेंट, फर्स्ट एड बॉक्स, जीपीएस की अनिवार्य व्यवस्था, बसों का फिटनेस प्रमाण पत्र, परमिट, रोड टैक्स, बीमा, पीयूसी प्रमाण पत्र, चालकों का कैरक्टर्स सर्टिफिकेट, बस चालकों की पृष्ठभूमि, शराब पीकर गाड़ी चलाने पर प्रतिबंध, इत्यादि नियमों को लागू करने पर सहमति हुई है. डीसीपी ट्रैफिक काजी शमसुद्दीन अहमद ने जोर देकर कहा है कि नियमों में लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी और किसी तरह की त्रुटि होने पर चालकों का लाइसेंस रद्द किया जाएगा.
उन्होंने यह भी कहा है कि प्रत्येक दिन स्कूल बस की आखिरी ट्रिप में प्रमाण पत्रों की पूरी जांच होगी. अगर कोई भी दस्तावेज गलत पाया जाता है, तो स्कूल बस चालक का लाइसेंस रद्द किया जा सकता है. पुलिस प्रशासन का यह नियम कहीं से भी व्यावहारिक नहीं दिखता है. अगर कुछ दिनों तक ट्रैफिक पुलिस के अधिकारी ऐसा करते भी हैं तो बाद में वे खुद ही ढीले पड़ सकते हैं. इसका एक कारण यह भी है कि पुलिस के पास और भी काम होते हैं. इसके लिए अलग से नियमित रूप से समय निकालना आसान नहीं होगा. सिलीगुड़ी पुलिस कमिश्नरेट इलाके में छोटे बड़े 50 से ज्यादा निजी स्कूल हैं और इन स्कूलों के पास 500 से भी ज्यादा स्कूली बसें हैं.
ये सभी बसें दिन में तीन से चार बार सिलीगुड़ी की सड़कों पर दौड़ती हैं. ट्रैफिक पुलिस स्कूल बस का साइन बोर्ड देखकर उस तरह से सजगता नहीं दिखाती, जिस तरह से अन्य सामान्य बस देखकर सजग होती है. कई बार तो ऐसा भी होता है कि स्कूल बसों के चालक व्यस्त ट्रैफिक से बचने के लिए शॉर्टकट मार्ग को ही अपना लेते हैं. तब भी ट्रैफिक पुलिस चुपचाप रह जाती है. इसलिए यह जरूरी है कि सामान्य बसों की तरह स्कूल बसों से भी नियमों का पालन करवाने के लिए ट्रैफिक पुलिस मुस्तैदी दिखाए.
स्कूल बस चालकों पर बेलगाम होकर गाड़ी चलाने का आमतौर पर आरोप लगता है और यह कोई गलत आरोप भी नहीं है. कई बार तो बस चालक रोड सिग्नल की भी परवाह नहीं करते हैं. ऐसे में दुर्घटनाएं होना स्वाभाविक है. इसलिए ट्रैफिक पुलिस के साथ-साथ स्कूल प्रबंधन की भी सबसे बड़ी जिम्मेवारी है कि स्कूल बस चलाने की जिम्मेदारी ऐसे हाथों में दी जाए, जो अनुभवी हो और जिनकी पृष्ठभूमि बेदाग हो. चालक पीते नहीं हों. कम से कम स्कूल के समय में वे शराब से दूर रहें, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए. परंतु बहुत कम ऐसे स्कूल हैं, जो यह सब देखते हैं. उन्हें तो सिर्फ कम वेतन पर ड्राइवर नियुक्त करने से मतलब होता है.
सिलीगुड़ी के अभिभावक स्कूल देखकर बच्चों को दाखिला दिलाते हैं.उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि उनके बच्चों को लाने ले जाने वाली बसें अच्छी हालत में है या नहीं और बस चालक प्रमाणित हैं या नहीं. अभिभावकों को अच्छा स्कूल चाहिए जो उन्हें मिल जाता है. लेकिन जिस बस से उनके बच्चे आना-जाना करते हैं, उन बसों की ओर उनका कोई ध्यान नहीं रहता है.
अगर अभिभावक स्कूल के साथ-साथ बच्चों को स्कूल लाने और घर छोड़ने वाली बस का ध्यान रखें तो दुर्घटनाएं कम होंगी. माता-पिता और अभिभावक को चाहिए कि हर महीने परिवहन पर 2000 से ₹3000 खर्च करते हैं. लेकिन उनके बच्चे बसों में सुरक्षित नहीं होते हैं.इसलिए अब समय आ गया है कि सिलीगुड़ी के अभिभावक स्कूल के साथ-साथ स्कूली बसों को भी तरजीह दें. दाखिले के समय ही स्कूल प्रबंधन को अपनी बात स्पष्ट रूप से समझा दें कि बच्चों की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर कोई समझौता नहीं होगा. यह अत्यंत महत्वपूर्ण है. क्योंकि बच्चे सुरक्षित हैं, तभी पढ़ाई का कोई मतलब होता है. बच्चों की जान से खिलवाड़ करती स्कूली बसों का हर तरह से बहिष्कार किया जाना चाहिए.
इस तरह से अभिभावक, स्कूल प्रशासन, पुलिस प्रशासन और स्कूल बस चालकों के परस्पर समन्वय, सहयोग, अनुशासन और नियमों के पालन में सख्ती से ही सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाई जा सकती है. अन्यथा पुलिस प्रशासन की ओर से चाहे जितने नए नियम बना लिए जाएं और उन नियमों को स्कूलों तथा स्कूल बस चालकों पर थोप दिए जाएं, उसका कोई मतलब नहीं होता. जब तक सिलीगुड़ी के अभिभावक दृढता नहीं दिखाते हैं, तब तक स्कूल प्रबंधन भी सुरक्षित वाहन परिचालन पर ध्यान नहीं देते हैं, यह नहीं भूलना चाहिए!
