जिस तरह से पिछले 10 दिनों में सिलीगुड़ी शहर में आपराधिक घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है और जिस तरह से अपराधियों का मनोबल बढा दिख रहा है, यह सभी घटनाएं कहीं ना कहीं पुलिस प्रशासन,सिलीगुड़ी की शांति प्रिय जनता तथा बुद्धिजीवियो को यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि क्या सिलीगुड़ी शहर में 90 का दौर लौट रहा है?
उदाहरण के लिए सोमवार की घटना ले लीजिए. पुलिस को विश्वसनीय सूत्रों से एक वांछित अपराधी के छिपने के ठिकाने का पता चला. प्रधान नगर थाने के आईसी, सब इंस्पेक्टर समेत कई अधिकारियों की पुलिस टीम अपराधी को धर दबोचने डागापुर स्थित उसके मिलने के अड्डे पर पहुंच गई. वांछित व्यक्ति द्वारा गोली चलाने से एक सब इंस्पेक्टर घायल हो गया. वर्तमान में जख्मी सब इंस्पेक्टर का एक अस्पताल में इलाज चल रहा है. इससे पहले इसी तरह की एक घटना भक्ति नगर थाना इलाके में हुई थी, जब साउंड सिस्टम डीजे बंद कराने गई पुलिस पर गोली चला दी गई थी. अगर उससे पहले की घटना ले तो अपराधियों के द्वारा पुलिस पर गोली चलाने की अनगिनत घटनाएं हैं. इन सभी घटनाओं को देखते हुए कहीं ना कहीं 90 के दशक की घटनाएं स्मृतियों में कौंध सी जाती हैं.
जब सिलीगुड़ी में बदमाशों का दबदबा था और पुलिस प्रशासन मूक दर्शक बनकर तमाशा देख रहा था. 90 के दशक में ही सिलीगुड़ी शहर में राणा घोष की कोयला डिपो में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. उसके बाद से खूनी वारदातों का एक लंबा सिलसिला शुरू हुआ. तब राज्य में वाम मोर्चा की सरकार थी और सिलीगुड़ी नगर निगम पर भी वाममोर्चा का शासन था. यह वह दौर था जब सिलीगुड़ी की जनता सुरक्षित नहीं थी.
उस काल में लोग शाम होते ही अपने घर के दरवाजे बंद कर लिया करते थे. क्या पता कब कौन सा अपराधी हमला कर बैठे. उस दौर को आंखों से देखे लोग बताते हैं कि सिलीगुड़ी शहर में अपराधियों की समानांतर सरकार चल रही थी, जिसे प्रशासन का संरक्षण प्राप्त था. चोरी, डकैती, हत्या, लूट, जमीन पर कब्जा, अपहरण जैसी वारदातें रोज ही हो रही थी. तब पुलिस प्रशासन के पास संसाधनों की भी कमी थी जबकि बदमाश जनता को आतंकित करके खुलेआम घूम रहे थे. सबूतों तथा साक्ष्यों के अभाव में पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने से बचती थी. कम से कम आज ऐसा तो नहीं कहा जा सकता.
समय बदला है. सरकार बदली है और सिलीगुड़ी पुलिस की कार्यशैली भी बदली है. सिलीगुड़ी मेट्रोपॉलिटन पुलिस के पास ना तो संसाधनों की कमी है और ना ही उसका खुफिया तंत्र कमजोर है. यही कारण है कि आज सिलीगुड़ी मेट्रोपॉलिटन पुलिस को तमाम आपराधिक वारदातों को सुलझाने में सफलता मिल रही है, पर सवाल तो वही है कि आखिर शहर में अचानक अपराध का ग्राफ क्यों ऊपर हो रहा है? क्या अपराधियों को पुलिस और कानून का खौफ नहीं रहा? क्या अपराधियों के लिए जेल एक सुरक्षित जगह बन गई है ?यह सभी सवाल ऐसे हैं जिनका उत्तर तलाशने की जरूरत है.
सिलीगुड़ी मेट्रोपॉलिटन पुलिस व प्रशासन को अपने तरीकों में बदलते समय के साथ हाईटेक सुधार करने की जरूरत है. पुलिस की कार्यशैली भी ऐसी होनी चाहिए कि अपराधी वारदात करने से पहले सौ बार सोचे. पुलिस प्रशासन को अपने खुफिया तंत्र को भी चुस्त-दुरुस्त करने की जरूरत है. इसके साथ ही पुलिस को मामलों को त्वरित ढंग से सुलझाने तथा दोषी व्यक्ति को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की भी जरूरत है. सिलीगुड़ी मेट्रोपॉलिटन पुलिस एक काम और भी कर सकती है. अपराधियों की मानसिकता में परिवर्तन के लिए सामाजिक और मनोवैज्ञानिक तरीके भी ढूंढ सकती है. आवश्यकता इस बात की है कि सिलीगुड़ी मेट्रोपॉलिटन पुलिस अपने कार्यों में गति लाए और मामले के निष्पादन में और तेजी से काम करे. हालांकि सिलीगुड़ी के कुछ थानों की पुलिस अच्छा काम कर रही है परंतु यह सुनिश्चित किया जाए कि सिलीगुड़ी मेट्रोपॉलिटन पुलिस के सभी थानों की पुलिस भी उतनी ही तेजी, निष्पक्ष, ईमानदारी पूर्ण और त्वरित ढंग से काम करे. निश्चित रूप से सिलीगुड़ी शहर में आपराधिक वारदातों पर नियंत्रण पाने में सफलता मिलेगी.