कोलकाता उच्च न्यायालय के निर्देश और राज्य स्कूल शिक्षा के गंभीर होने के बाद अब यह माना जा रहा है कि दार्जिलिंग जिला समेत पूरे प्रदेश के सरकारी स्कूलों में नियुक्त 1698 शिक्षकेतर कर्मचारियों को नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा. पहले से ही ऐसे अवैध कर्मचारियों पर कोलकाता हाई कोर्ट की पैनी नजर थी. उनकी नौकरी पर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे थे. परंतु कहीं ना कहीं एक आस बंधी थी, जो राज्य शिक्षा विभाग की जारी ताजा अधिसूचना के बाद खत्म हो चुकी है. सोमवार को राज्य शिक्षा विभाग ने ताजा अधिसूचना जारी की है.
जिस तरह से राज्य शिक्षा विभाग की ओर से अधिसूचना जारी की गई है, उसके बाद विभिन्न स्कूलों में कार्यरत गैर शिक्षक कर्मचारियों के हाथ-पांव फूलने लगे हैं. वह कुछ कर भी नहीं सकते.क्योंकि मामला अदालत का है और कोलकाता उच्च न्यायालय पहले से ही राज्य के स्कूलों में अवैध नियुक्ति को लेकर गंभीर है. राज्य स्कूल शिक्षा आयुक्त कार्यालय ने अधिसूचना जारी कर दी है.
स्कूलों से संबंधित जिला निरीक्षकों को अपने-अपने जिलों में संबंधित गैर शिक्षक कर्मचारियों को कोलकाता उच्च न्यायालय की समय सीमा के बारे में सूचित करने को कहा गया है, ताकि वे समय रहते अपनी बेगुनाही कोर्ट को दर्ज करा सकें. कोलकाता हाई कोर्ट के जस्टिस विश्वजीत बसु की सिंगल जज बेंच ने 1698 गैर शिक्षक कर्मचारियों को अपनी बेगुनाही साबित करने का आखिरी मौका दिया है.
स्कूलों में अवैध रूप से नियुक्त इन कर्मचारियों को सीबीआई और डब्ल्यूबीएसएससी के शिकंजे का सामना करना पड़ रहा है. जारी ताजा अधिसूचना में जिला विद्यालय निरीक्षकों को आदेश प्राप्त होने की तिथि से तीन कार्य दिवसों के भीतर जिले के संबंधित गैर शिक्षक कर्मचारियों को न्यायमूर्ति के आदेश की प्रति उपलब्ध कराने को कहा गया है. इसके बाद अगले 5 कार्य दिवसों में एक अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत की जानी है.
यह आखिरी मौका है और ऐसा माना जा रहा है कि अवैध ढंग से नियुक्त इन कर्मचारियों के पास अपने बचाव का कोई सबूत नहीं है. ऐसे में उनकी नौकरी जाना निश्चित है. इस मामले की अगली सुनवाई 24 जनवरी को होगी.यह माना जा रहा है कि वर्ष 2023 इन कर्मचारियों के जीवन का काला वर्ष साबित होगा. राज्य शिक्षा विभाग भी कुछ ऐसी ही धारणा रखता है.
आपको बता दूं कि राज्य के स्कूलों में भारी संख्या में अवैध ढंग से गैर शिक्षक कर्मचारियों की नियुक्ति की गई थी, जिसका कच्चा चिट्ठा सीबीआई के जरिए अदालत के सामने है.छात्रों के भविष्य को देखते हुए पहली बार कोलकाता हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया है.