सिलीगुड़ी को Dooars और पहाड़ से जोड़ने वाला सेवक में स्थित एकमात्र सेतु कोरोनेशन ब्रिज है, जिसका खतरा लगातार बढ़ रहा है. कोरोनेशन ब्रिज के धरातल पर दरारें आने और ध॔सान को भी महसूस किया जाने लगा है. पर्यावरण विदों का मानना है कि जब तक कोरोनेशन ब्रिज की मरम्मती नहीं हो जाती, तब तक इस पर चौकसी रखने की जरूरत है.
सिलीगुड़ी को पहाड़ और Dooars से जोड़ने वाले इस महत्वपूर्ण सेतु की देखभाल के लिए यूं तो पुलिस का पहरा रहता है. परंतु स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस महज मूकदर्शक की भूमिका निभा रही है. इस सेतु से होकर भारी वाहन आ जा रहे हैं. जबकि नियम यह है कि सेतु से होकर 10 टन से ऊपर के मालवाहक वाहन नहीं जा सकते. स्थानीय लोगों का कहना है कि 10 टन से 15 टन तक के मालवाहक यहां से होकर गुजरते हैं. पुलिस कुछ नहीं करती.
सबसे प्राचीन और अंग्रेजी जमाने का बना यह पुल सामरिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है. सेना के ट्रक इसी रास्ते से होकर सिक्किम बॉर्डर पर जाते हैं. इसके अलावा Dooars और कालिमपोंग जाने के लिए भी इसी पुल का उपयोग होता है. अब सेतु में दरारें आ चुकी है और कहीं ना कहीं इसमें धसान की प्रक्रिया शुरू हो गई है. ऐसे में अगर नियमों की उपेक्षा की जाती रही तो कोरोनेशन ब्रिज के टूटने में देर नहीं लगेगी.
यही कारण है कि पर्यावरणविद ब्रिज की चौकसी बढ़ाने की बात कह रहे हैं. स्थानीय प्रशासन और पुलिस को और चुस्त करने की मांग की जा रही है ताकि इस सेतु से होकर गुजरने वाले वाहनों पर कड़ी नजर रखी जा सके. दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, कूचबिहार, अलीपुरद्वार के भाजपा सांसद और विधायक कोरोनेशन ब्रिज को लेकर दिल्ली तक हाजिरी लगा चुके हैं. वैकल्पिक सेतु निर्माण का ड्राफ्ट भी तैयार कर लिया गया है.
पर जब तक वैकल्पिक सेतु बन नहीं जाता, तब तक कोरोनेशन ब्रिज की समुचित देखभाल और निगरानी की जरूरत है. अन्यथा हादसा होते देर नहीं लगेगी. जोशीमठ की घटना के बाद पूरा पहाड़ और पहाड़ी संरचना को लेकर सतर्कता बढ़ गई है. दार्जिलिंग और सिक्किम के क्षेत्रों में देखने को मिल रही है. ऐसा होना भी चाहिए.
ऐसे में जरूरी तो यह है कि कोरोनेशन ब्रिज को बचाने के लिए ट्रांसपोर्ट के मालिक और चालक भी सामने आएं. साथ ही पुलिस और पब्लिक को भी अलर्ट होने की जरूरत है. सभी को एक दूसरे का सहयोग करते हुए सेतु को बचाने का उपक्रम करना चाहिए तभी कोरोनेशन ब्रिज के खतरे को कम किया जा सकता है.