सिलीगुड़ी : सेवोक थाना क्षेत्र के 10 माइल से लापता 14 वर्षीय इशान गुरूंग को खोजते-खोजते तीन महीने से भी अधिक समय बीत चुका है, लेकिन आज भी उनका कोई पता नहीं चल पाया है। यह सिर्फ़ एक गुमशुदगी का मामला नहीं रहा—अब यह एक परिवार की टूटती उम्मीदों, एक माँ के सिसकते मन और एक पूरे समाज की चुप्पी को चीरती हुई पुकार बन चुका है। हर दिन इशान की याद, हर रात उनका डर, और हर सुबह एक नई उम्मीद लेकर शुरू होती है, जो शाम तक फिर टूट जाती है। इतना समय बीत जाने के बाद भी प्रशासन के हाथ खाली हैं, और परिवार का दिल सवालों से भरा हुआ।
जिस दिन इशान लापता हुए, उसी दिन से उनका परिवार लगातार पुलिस और प्रशासन के दरवाजे खटखटा रहा है। माँ और पिता कई बार थाना पहुँचे, अधिकारियों से मिले, कागज दिखाए, गुहार लगाई—लेकिन जवाब वही मिला: “खोज जारी है, कोई ठोस प्रगति नहीं।” तीन महीनों में एक भी ठोस सुराग न मिलना सिर्फ़ गुमशुदगी नहीं; यह एक व्यवस्था की संवेदनहीनता का सबसे कड़वा उदाहरण बन गया है। परिवार का कहना है कि उन्हें हर बार सिर्फ़ आश्वासन मिला, लेकिन खोज करने में न तो तेज़ी दिखी और न ही गंभीरता।
इशान अपने माता-पिता का इकलौता बेटा है। उनकी कमी ने परिवार का घर जैसे सूना कर दिया है। माँ हर रात बेटे की फ़ोटो सीने से लगाए रोती हैं, जबकि पिता चुपचाप दरवाज़े की ओर देखते रहते हैं—मानो अगली ही घड़ी इशान अंदर आता दिख जाए। हर दिन यह दर्द और भारी होता जा रहा है। परिवार पूछता है—“अगर तीन महीनों में भी कुछ नहीं हुआ, तो आखिर कब होगा? हमारा बेटा और कितने दिनों तक कहीं खोया रहेगा?”
परिवार की यह पीड़ा सिर्फ़ घर की चारदीवारी में ही कैद नहीं रही। दार्जिलिंग की सामाजिक संस्था ‘माटोको माया’ भी लगातार आवाज़ उठा रही है। सबसे पहले सालुगड़ा से पीसी मित्तल बस टर्मिनस तक विशाल रैली निकाली गई। हज़ारों की भीड़, हाथों में प्लेकार्ड, आँखों में आक्रोश—सब एक ही मांग कर रहे थे: “इशान को ढूँढो… उसे वापस लाओ।” लेकिन प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम न दिखा। यही चुप्पी लोगों को और अधिक बेचैन कर गई।
इसके बाद kurseong में एक और रैली निकाली गई। यहाँ महिलाओं से लेकर बुजुर्गों तक, स्कूली विद्यार्थियों से लेकर स्थानीय नेताओं तक—हर कोई सड़कों पर उतर आया। हवा में गूंज रही आवाज़ें सिर्फ़ यही पूछ रही थीं: “इशान गुरूंग कहाँ हैं?” तीन महीने में भी जांच आगे न बढ़ने से लोगों में गहरा असंतोष फैल गया है। उनका कहना है कि जब समाज इतना सक्रिय है, तो प्रशासन आखिर क्यों इतना धीमा और चुप है?
यह मामला अब सिर्फ़ एक परिवार का नहीं, पूरे गोरखा समाज की सामूहिक पीड़ा बन गया है। लोग अब प्रशासन से सिर्फ़ सहयोग नहीं, बल्कि गंभीर और तत्काल कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। इशान की गुमशुदगी ने हर किसी को अंदर से हिला दिया है। क्योंकि कहीं न कहीं हर माँ इशान में अपना बच्चा देख रही है, हर पिता अपनी चिंता, और हर समाज अपनी असुरक्षा।
आज इशान की तलाश उम्मीद की आखिरी डोर से जुड़ी है।
और इस उम्मीद की आवाज़ आज भी यही कह रही है—
“इशान को वापस लाओ।”
