दिल्ली के जंतर मंतर पर गोरखा जन मुक्ति मोर्चा के नेताओं के द्वारा गोरखालैंड के समर्थन में आवाज बुलंद की जा रही है. नेता,कार्यकर्ता भाषण दे रहे हैं और अपनी आवाज संसद तक पहुंचाने की चेष्टा कर रहे हैं. पहले भी विभिन्न पार्टियों के नेता जंतर मंतर पर दस्तक दे चुके हैं. कुछ दिनों पहले विमल गुरुंग दिल्ली में अपनी बात सरकार तक पहुंचा चुके हैं. अब उनके सहयोगी जंतर मंतर पर डेरा डाले हुए हैं. गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नेता अच्छी तरह जानते हैं कि चुनाव का मौसम है. एक बार फिर से मोदी जी सिलीगुड़ी आएंगे. अगर गोरखा लोगों का वोट चाहिए तो गोरखालैंड के लिए उन्हें काम भी करना होगा.
हालांकि पहाड़ के नेता अच्छी तरह जानते हैं कि गोरखालैंड का मसला काफी पेचीदा है. परंतु अगर गोरखालैंड का दबाव बनाया जाता रहा तो केंद्र सरकार कम से कम उनकी पुरानी मांगों को तो पूरा कर ही सकती है. 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के संकल्प पत्र में गोरखा लोगों के कल्याण की कई बातें कही गई थी. लेकिन उनमें से कुछ मांगों को छोड़कर भाजपा मुख्य मुद्दे को छेड़ना नहीं चाहती है. इसलिए पहाड़ के नेता गोरखालैंड की मांग के जरिए भाजपा और केंद्र सरकार से पुरानी मांगों को पूरा करवाना चाहते हैं.
दूसरी तरफ केंद्र सरकार कभी नरम कभी गरम के सिद्धांत पर चल रही है. सरकार पहाड़ के नेताओं को नाराज करना भी नहीं चाहती. इसलिए कभी विमल गुरुंग तो कभी जीटीए पर चारा डाल रही है. भारत सरकार के पंचायती राज विभाग के द्वारा जीटीए को जिला परिषद का दर्जा देने के निर्देश के बाद यहां की राजनीति एक नई करवट ले रही है. पंचायती राज विभाग की ओर से स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जीटीए क्षेत्र में जिला परिषद की स्थापना तक जीटीए जिला परिषद की भूमिका निभाएगी. अनित थापा ने इसका स्वागत किया है.
GTA के कार्यकारी अध्यक्ष अनित थापा खुश हैं और पंचायत प्रतिनिधियों को उनका महत्व समझा रहे हैं. उन्हें लगता है कि अब समय आ गया है जब पहाड़ के विकास में फंड की कमी आड़े नहीं आएगी. क्योंकि उन्हें 83.50 करोड़ बकाया रूपया जो मिलने वाला है. जिला परिषद की स्थिति में रुका हुआ बजट जीटीए को मिलने वाला है, जिसका उपयोग पंचायती क्षेत्रो के विकास में किया जा सकता है. लगभग 23 साल के बाद पहाड़ में पंचायत चुनाव हुए हैं. हालांकि यह चुनाव दो स्तरीय चुनाव था. जिसमें पंचायत समिति और पंचायत के लिए चुनाव हुए थे. लेकिन केंद्र सरकार की पहल के बाद अब यहां जिला परिषद का चुनाव भी हो सकता है. अगर इस बार नहीं हुआ तो अगली बार से पहाड़ में भी 3 स्तरीय पंचायत चुनाव का रास्ता साफ हो जाएगा.
पहाड़ में 112 ग्राम पंचायतों तथा नौ पंचायत समितियों को जिला परिषद का दर्जा देने का निर्देश जीटीए को दिया गया है. इसमें जीटीए को ही फायदा है. क्योंकि पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद की स्थिति में केंद्र सरकार के पंचायती विभाग की सारी योजनाओं का लाभ जीटीए को मिलने लगेगा. इसके साथ ही विकास कार्यों के लिए सरकार धन आवंटित करेगी तो इसका लाभ पहाड़ को भी मिलेगा. इसीलिए जीटीए और अनित थापा के सहयोगी खुश हैं और उन्हें लगता है कि पहाड़ के संपूर्ण विकास के लिए धन की आवश्यकता थी, वह अब पूरा होने जा रहा है.
अनित थापा ने कहा कि विरोधी पार्टियों के नेता जीटीए का मजाक उड़ा रहे थे. उन्हें यह बेकार लगता था. लेकिन इसी जीटीए ने पहाड़ की सूरत बदल दी है. जिला परिषद का दर्जा मिलने के बाद पहाड़ के लोग सुखी और खुशहाल होंगे. उन्होंने पंचायत प्रतिनिधियों को धन्यवाद दिया है. दूसरी तरफ यह भी समझने की बात है कि अनित थापा राज्य सरकार के साथ मिलकर पहाड़ का विकास करना चाहते हैं. लेकिन उनकी ही पार्टी भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा के स्थानीय नेता मेरी जमीन मेरा अधिकार की सरकार से मांग कर रहे हैं. पार्टी की ओर से 24 सितंबर को दार्जिलिंग में मेरी जमीन मेरा अधिकार नारे को लेकर एक बैठक करने की जानकारी मिल रही है. इसकी तैयारी में भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा के समष्टि अध्यक्ष समीर राई, सचिव कृष्ण वीर प्रधान, युवा शक्ति समूह के अध्यक्ष विवेक गोले और पंचायत समिति सदस्य संगीत राई लग चुके हैं. पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 24 सितंबर को दार्जिलिंग में एक आम सभा होगी जिसमें पार्टी एकजुटता दिखाने की कोशिश की जाएगी.
अगर इसका विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाए तो कुल मिलाकर स्थिति यह है कि केंद्र सरकार पहाड़ के मतदाताओं को साधने की चेष्टा कर रही है. भाजपा की सरकार क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं को नाराज नहीं करते हुए एक ऐसी रणनीति पर चल रही है, आने वाले चुनाव में जिसका लाभ उठाया जा सके. जिसके लिए यह कहा जा सकता है कि सांप भी भाग जाए और लाठी भी न टूटे!