पश्चिम बंगाल राज्य स्वास्थ्य विभाग सिलीगुड़ी समेत राज्य के अस्पतालों का बोझ कुछ कम करना चाहता है. यहां के सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, म्यांमार आदि देशो से मरीज आते हैं. इसके अलावा बिहार ,उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों से भी मरीज आते हैं. इस वजह से राज्य के मरीजों का यहां बेहतर इलाज नहीं हो रहा है. कभी बेड की कमी तो कभी किसी और कारण से राज्य के मरीजों का समय पर इलाज नहीं हो पाता है.
अतः अब इस पर विचार किया जा रहा है कि क्या राज्य के अस्पतालों में बाहरी राज्यों अथवा देशों से आए मरीजों का मुफ्त इलाज किया जाए या नहीं. इस पर विचार मंथन शुरू हो चुका है. सूत्र बता रहे हैं कि अधिकांश अधिकारी इस पक्ष में है कि बाहरी मरीजों का मुफ्त इलाज बंद हो. इसके लिए आधार कार्ड को अनिवार्य करने की बात हो रही है. यानी बाहरी मरीज और राज्य के मरीज की पहचान आधार कार्ड से हो जाती है. दूसरे राज्यों अथवा पड़ोसी देशों से आने वाले मरीजों को रेफर प्रिस्क्रिप्शन दिखाना पड़ सकता है.
विचार मंथन के लिए विशेष कमेटी बनाई गई है. राज्य स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी इस पहलू को गंभीरता से ले रहे हैं. ऐसी जानकारी मिली है कि कोलकाता, सिलीगुड़ी और मालदा आदि जिलों में इलाज कराने के लिए पड़ोसी देशों अथवा पड़ोसी राज्यों से काफी मरीज आते हैं. इससे राज्य के मरीजों का इलाज करने में कठिनाई होती है. बाहरी मरीजों की संख्या बढ़ जाने से राज्य के मरीजों को सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं. इन सभी पहलुओं पर ध्यान रखते हुए राज्य स्वास्थ्य विभाग नया नियम लागू करने की योजना बना रहा है.
राज्य के स्वास्थ्य सेवा निदेशक प्रोफेसर डॉक्टर सिद्धार्थ नियोगी का विचार है कि जो भी नए नियम बने, वे राज्य के मरीजों के हित में लागू किए जाएं. आपको बताते चलें कि पश्चिम बंगाल में प्रत्येक साल बांग्लादेश, नेपाल ,भूटान और म्यांमार जैसे देशों से मरीज इलाज कराने के लिए आते हैं. कोलकाता में कई सरकारी अस्पताल पड़ोसी देशों के मरीजों से भरे रहते हैं. इनमें एसएसके एम, एनआरएस, आर् जी कर, कोलकाता मेडिकल कॉलेज इत्यादि. पिछले साल राज्य के लगभग 75% मरीजों को सरकारी अस्पतालों में सेवाएं दी गई. लेकिन बेड की कमी के कारण बड़ी संख्या में मरीजों को दूसरे अस्पतालों में रेफर करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
कोलकाता मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल की रोगी कल्याण समिति के अध्यक्ष तथा तृणमूल कांग्रेस के विधायक डॉ सुदीप्त राय बताते हैं कि इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि राज्य के मरीजों को अस्पतालों में इलाज कराने में कोई परेशानी ना हो. अब समय आ गया है कि इस पर विचार किया जाए. क्योंकि कम डॉक्टर और नर्सों के रहते हुए भी सरकारी अस्पतालों में इलाज में कभी कोई बाधा नहीं आई. लेकिन अब या तो संसाधनों को बढ़ाना होगा या फिर नए नियम को लागू करना होगा. फिलहाल सरकार अभी कोई निर्णय नहीं ले पा रही है.