याद है, जब 2019 के विधानसभा चुनाव में एक राजनीतिक दल के उम्मीदवार ने सिलीगुड़ी के सेवक रोड पर अपने कार्यकर्ताओं के साथ चुनाव प्रचार किया था. उम्मीदवार के साथ चल रहे कार्यकर्ताओं में अधिकतर बच्चे थे. वे हाथों में झंडा लिए नेताजी की जय-जयकार कर रहे थे. इन बच्चों की उम्र 18 साल से कम थी. नेताजी ने प्रत्येक बच्चे को इस काम के लिए 200 रुपए दिए थे. इसके अलावा उन्हें भरपेट खाना भी खिलाया था.
सिलीगुड़ी में विधानसभा चुनाव के बाद नगर निगम के भी चुनाव हुए. यहां जब-जब चुनाव हुए, इस तरह के मंजर खूब देखे गए. उम्मीदवार के प्रचारकों में ज्यादातर बच्चे ही शामिल होते हैं. वे माइक पर अथवा विभिन्न माध्यमों से पार्टी का प्रचार करते हैं. कोई बच्चा माइक हाथ में लेकर कविता कहता है तो कोई नेताजी और उनके राजनीतिक दल का गुणगान करते हुए नारे लगाता है. कोई मंच पर नेताजी के स्वागत में जय जयकार लगाता है. कोई झंडा उठाता है, तो कोई अन्य कार्य देखता है. इसके बदले में पार्टी और उम्मीदवार की तरफ से बच्चों को पैसा और खाना दोनों दिया जाता है.
सिलीगुड़ी में अधिकतर बच्चे चुनाव आते ही खुश हो जाते हैं. यह सिर्फ इसलिए कि उन्हें चुनाव प्रचार का अवसर मिलेगा और इसके बदले में उम्मीदवार की ओर से पैसा और खाना. खासकर सिलीगुड़ी में यह मंजर आप जरूर देख सकते हैं. उम्मीदवार अथवा राजनीतिक दल के जो कार्यकर्ता होते हैं, वे चुनाव प्रचार और भीड़ जुटाने के लिए लड़कों को जरूर शामिल करते हैं. उनमें से अधिकतर नाबालिक ही होते हैं. कुछ दिनों के लिए उन्हें खाने-पीने की चिंता करने की जरूरत नहीं होती है. जेब में पैसे भी होते हैं. सामने 2024 का लोकसभा चुनाव है. अप्रैल में चुनाव होंगे. राजनीतिक दल के कार्यकर्ता बच्चों से संपर्क कर रहे होंगे.
लेकिन आज चुनाव आयोग ने जो फैसला लिया है, उसके बाद राजनीतिक चुनाव प्रचार में बच्चों का खेल खत्म हो जाएगा. चुनाव आयोग ने कहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में कोई भी राजनीतिक दल बच्चों को राजनीतिक कार्यक्रमों में शामिल नहीं करेगा. आयोग ने कहा है कि अगर कोई उम्मीदवार उसके गाइडलाइन का पालन नहीं करता है तो उसके खिलाफ बाल श्रम निषेध अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी. चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के नेताओं और उम्मीदवारों को सख्त निर्देश जारी किया है कि आम चुनाव में प्रचार के परचे बाटते हुए अथवा पोस्टर चिपकाते हुए या नारे लगाते हुए या फिर पार्टी के झंडे बैनर लेकर चलते हुए उनकी रैलियों में बच्चे या नाबालिक देखे गए तो जिम्मेदार लोगों के खिलाफ बाल श्रम निषेध अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी.
चुनाव आयोग ने चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि चुनाव अभियान गतिविधियों में बच्चों को शामिल करना कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए गाइडलाइन में किसी भी तरीके से बच्चों का राजनीतिक अभियान में शामिल करना दंडनीय अपराध होगा. बच्चे ना तो नारे लगा सकते हैं, ना ही राजनीतिक दल अथवा उम्मीदवार के समर्थन में कविता पाठ कर सकते हैं.वे गीत भी नहीं गा सकते हैं. वे राजनीतिक दलों के प्रतीक चिह्न का प्रदर्शन भी नहीं कर सकते हैं. यानी अब बच्चों का राजनीतिक दलों के लिए कोई काम नहीं रह जाएगा.
चुनाव आयोग के फैसले के बाद राजनीतिक दलों के साथ-साथ संभावित उम्मीदवारों की भी चिंता बढ़ गई है. क्योंकि बच्चों की अनुपस्थिति में उनकी रैलियों में ना भीड़ होगी और ना ही उनका जोरदार चुनाव प्रचार होगा. चुनाव प्रचार के नाम पर राजनीतिक दल के उम्मीदवार जिन लोगों को हायर करेंगे वह उनसे पैसे भी ज्यादा लेंगे और काम उतना नहीं कर सकेंगे. जितने कि बच्चे जोश और जज्बात में करते हैं. हालांकि चुनाव आयोग ने एक विकल्प जरूर दिया है. राजनीतिक गतिविधियों में अगर अभिभावक के साथ एक बच्चा होता है तो चुनाव आयोग के गाइडलाइन का उल्लंघन नहीं माना जाएगा. मालूम हो कि चुनाव आयोग ने इस संबंध में जिला निर्वाचन अधिकारी अथवा रिटर्निंग ऑफिसर को कार्रवाई करने की जिम्मेदारी दी है.
बदली हुई परिस्थितियों में यह देखना दिलचस्प होगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में सिलीगुड़ी समेत पूरे बंगाल में राजनीतिक दलों के चुनाव प्रचार का क्या परिदृश्य रहता है. यह भी कि उम्मीदवार अथवा राजनीतिक दल चुनाव आयोग के गाइडलाइन का कितना पालन कर पाते हैं?