सामान्य बुखार, सिर दर्द, बदन दर्द के लिए आमतौर पर पैरासिटामोल और एंटीबायोटिक दवाएं ली जाती हैं, जो मेडिकल स्टोर्स पर उपलब्ध है. परंतु देखा जाता है कि पैरासिटामोल और एंटीबायोटिक से भी बुखार नहीं उतरता है. फिर आप दवा बदलते हैं. या डॉक्टर के पास जाते हैं. वास्तव में सिलीगुड़ी समेत बंगाल में कुछ नकली दवाएं आ गई है, जो एक तरह से मनुष्य या पीड़ित व्यक्ति के लिए जानलेवा साबित हो रही है. पिछले काफी दिनों से बंगाल में चल रहा यह सिलसिला अभी थमा नहीं है. बल्कि इसमें और इजाफा ही हुआ है.
कई नामी गिरामी कंपनियों की दवाएं फेल हो रही है. केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने 52 दवाओं को मानक गुणवत्ता के अनुरूप नहीं पाया है. जबकि 93 प्रकार की दवाइयां राज्य सरकारों के औषधि नियंत्रण प्राधिकरणों द्वारा गुणवत्ता परीक्षण में असफल साबित हुई है. ऐसे में रोगी भ्रम में है. उसकी समझ में नहीं आ रहा है कि जो दवाई वह ले रहा है, वह असली है या नकली. क्योंकि नकली दवाइयां भी हुबहू असली पैकेज में बेची जा रही है. बाजार में हृदय संबंधी उपचार और एंटीबायोटिक दवाइयां की बहुत ज्यादा मांग है. लेकिन इन दवाइयां के ग्रुप में कई दवाइयां मानक गुणवत्ता में फेल हो गई हैं.
सर्विस डॉक्टर्स फोरम के महासचिव डा. सजल विश्वास कहते हैं कि पश्चिम बंगाल फार्मास्यूटिकल कंपनी की रिंगर लेक्टेड सलाइन समेत कई दवाइयां जो मिदनापुर मेडिकल कॉलेज की घटना के बाद सवालों के घेरे में आई थी, केंद्रीय औषधि परीक्षण प्रयोगशाला द्वारा गुणवत्ता परीक्षण में फेल साबित हुई है. लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि बहुत से मरीज इन नकली दवाइयां का सेवन कर रहे हैं. इससे उनके स्वास्थ्य पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ रहा है. इन दवाइयां में एंटीबायोटिक और विटामिन सप्लीमेंट भी शामिल है.
उपरोक्त के अलावा नकली वर्ग में जिन दवाइयां की पहचान की गई है उनमें पेरासिटामोल, हृदय रोग की कुछ दवाइयां, उच्च रक्तचाप की दवाई टेल्मा ए एम, उल्टी रोकने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाई एलकेम हेल्थ साइंसेज की ऑडेम 4 टैबलेट इत्यादि शामिल है. और भी कई प्रकार की दवाइयां शामिल हैं. सीडीएससीओ पोर्टल पर नकली दवाइयो की सूची प्रदर्शित की जाती है.
पश्चिम बंगाल के डॉक्टरों के एक संगठन ने बाजार में बिक रही नकली दवाइयों को लेकर जनता को जागरूक करने का प्रयास किया है. लेकिन उन्होंने माना है कि पीड़ित व्यक्तियों को इसकी समझ नहीं होती. ऐसे में केंद्र सरकार को समय रहते कार्रवाई करनी चाहिए. केंद्र सरकार इस मुद्दे पर तुरंत कार्रवाई करे और नकली दवा निर्माताओं के लाइसेंस रद्द करे. इतना ही नहीं उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई शुरू कर देनी चाहिए.
आपको बताते चलें कि अक्टूबर 2024 में ही बंगाल के विभिन्न शहरों में नकली दवाइयों की चर्चा शुरू हो गई थी. सीडीएससीओ ने 90 दवाइयों और फॉर्मूलेशन नमूने को मानक गुणवत्ता में फेल पाया था. नवंबर में यह संख्या बढ़कर 111 हो गई. दिसंबर में 135 और इस साल जनवरी में यह बढ़कर 145 हो गई है. इस तरह से यह कहा जा सकता है कि यहां नकली दवाइयों का कारोबार लगातार बढ़ रहा है. यह चिंता की बात है. अगर समय रहते संबंधित इकाइयों के द्वारा ठोस कदम नहीं उठाया गया तो स्वास्थ्य संकट बढ़ जाएगा.
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