दार्जिलिंग जिला अदालत के स्पेशल कोर्ट ने एक ऐसे मामले में युवक को 40 साल की सश्रम सजा सुनाई है, जिसने एक दिव्यांग नाबालिग बालिका के साथ दुष्कर्म किया और बार-बार दुष्कर्म करता रहा. दिव्यांग बालिका कुछ कह नहीं सकती थी और ना ही अपनी पीड़ा का इजहार कर सकती थी. अगर पीड़िता की मां ने अपनी बच्ची के शरीर पर चोट के निशान नहीं देखे होते तो शायद यह मामला उजागर भी नहीं होता और ना ही पीड़िता को इंसाफ मिलता.
पोक्सो एक्ट के अंतर्गत यह मामला पुलिस ने कई दफाओं में दर्ज किया था. इसलिए अदालत ने मुजरिम के खिलाफ अलग-अलग दफाओं में अपराध तय करते हुए आर्थिक दंड भी लगाया है. कुल मिलाकर अदालत ने मुजरिम को 40 साल का सश्रम कारावास की सजा सुनाई है. पोक्सो एक्ट सेक्शन 6, 2012 और सेक्शन 85 जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 के तहत अलग-अलग धाराओं में अलग-अलग सजा और जुर्माने के साथ आर्थिक द॔ड, जूविनाइल में 20 साल और ₹10000 जुर्माना, पोक्सो एक्ट धारा 6 के तहत 40 साल की सजा और ₹20000 आर्थिक जुर्माना लगाया है.
यह मामला किस कदर घिनौना और शर्मनाक है, उसका पता इसी बात से चल जाता है कि कोर्ट ने अपराधी पर जरा भी रहम बरतने की कोशिश नहीं की है. आर्थिक दंड और दो से अधिक सजाएं एक साथ सुनाई है. यानी अपराधी को पूरे 40 वर्षों तक जेल की सलाखों के पीछे रहना होगा. वो भी सश्रम सजा है. यानी जेल में अपराधी को मुफ्त में रोटियां तोड़नी नहीं मिलेगी. उसे कठोर परिश्रम करना होगा. अपराधी युवक 24-25 साल का है और 40 साल उसे जेल में रहना होगा. यानी आप कह सकते हैं कि उसकी पूरी जिंदगी जेल की सलाखों के पीछे ही खत्म हो जाएगी.
दार्जिलिंग में कोर्ट के इस फैसले की खूब चर्चा हो रही है. पीड़िता को इंसाफ मिला है. दार्जिलिंग जिला अदालत के पी पी प्रणय राई ने एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि जिस युवक को कोर्ट ने सजा सुनाई है, उसका नाम मोहम्मद हाशिम है. उसका घर दार्जिलिंग के तुंगसुंग बस्ती में है. उसकी उम्र 24 साल है. प्रणय राई ने बताया कि कोर्ट ने यह माना कि अपराधी मोहम्मद हाशिम दिव्यांग बच्ची के साथ काफी दिनों से दुष्कर्म कर रहा था. इस बात की जानकारी बालिका की मां को अपनी बेटी के शरीर के जख्म देखने से हुई तो उन्होंने थाने में यह मामला दर्ज कराया था. यह गंभीर अपराध था.
यह मामला जून जुलाई 2024 का है. अपराधी मोहम्मद हाशिम काफी पढ़ा लिखा और उच्च शिक्षित युवक था. वह दार्जिलिंग के एक मोंटेसरी स्कूल में किसी बड़े ओहदे पर कार्यरत था. उसने एक नाबालिक बालिका के साथ दुष्कर्म किया था. घटना प्रकाश में आने के बाद पूरे शहर में हंगामा मच गया. लोग आरोपी को फांसी देने की सजा की मांग कर रहे थे. जब आरोपी को पुलिस कोर्ट में प्रस्तुत करने ले जा रही थी, तब कोर्ट के बाहर लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी. भीड़ हिंसक होने लगी. भीड़ चाहती थी कि आरोपी को उनके हवाले किया जाए. बड़ी मुश्किल से पुलिस ने आरोपी को हिंसक भीड़ के हमले से बचाया और अदालत में प्रस्तुत करने में सफल रही.
इस घटना की चर्चा दार्जिलिंग में खूब हुई थी. यह मामला दार्जिलिंग सदर महिला थाने में मुकदमा अपराध संख्या 7/ 24 के तहत 7 जून 2024 को पंजीकृत किया गया था. मुकदमे की विवेचना अधिकारी SI चुंकू भूटिया थी. उस समय चुंको भूटिया महिला थाने में ओसी के पद पर कार्यरत थी. जब दार्जिलिंग पुलिस ने घटना की छानबीन शुरू की तो कई तरह की पेचीदीगिया सामने आई. आरोपी के खिलाफ अपराध निर्धारण के लिए फोरेंसिक जांच की भी मदद ली गई थी. इसके अलावा जांच अधिकारी ने अदालत में चार्जशीट दायर करने के लिए अनेक सबूत और साक्ष्य जुटाए, जिसके आधार पर अदालत में कार्यवाही शुरू हुई.
पुलिस ने आरोपी के खिलाफ विभिन्न धाराओं में पोक्सो एक्ट 2012 सेक्शन 6 के अंतर्गत तथा जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 की धारा 85 के तहत चार्ज शीट पेश कर दी. अदालत में यह मुकदमा चला. आरंभ से ही अदालत मुकदमे की आत्मा और सत्य को बचाने के लिए तथा समाज में एक संदेश स्थापित करने में जुटी रही.अदालत समाज में दिव्यांग और मजलूम बच्चियों की सुरक्षा चाहती थी. यह फैसले में भी दिखा है. लगातार गवाहियों और मुकदमे की कार्यवाही चलती रही. आखिर में आरोपी ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. अदालत ने अपराधी के खिलाफ 40 साल कारावास की सजा सुनाई है. यह मामला पोक्सो एक्ट के अंतर्गत दर्ज किया गया था. यह कई धाराओं में चला. अंततः पीड़िता को इंसाफ मिला है और सत्य की जीत हुई है.