सच ही कहा गया है कि आज जो है, कल वह नहीं रहेगा. एक समय था, जब सिलीगुड़ी नगर निगम के वार्ड नंबर 46 के पार्षद दिलीप बर्मन की टीएमसी में तूती बोलती थी. क्योंकि वह राजवंशी समुदाय से आते हैं, जो उत्तर बंगाल में एक महत्वपूर्ण चुनावी फैक्टर भी है. आज खुद को राजवंशियों का प्रतिनिधि नेता मानने वाले दिलीप बर्मन तृणमूल कांग्रेस के हाशिए पर जा चुके हैं. तृणमूल कांग्रेस द्वारा उन्हें कारण बताओं नोटिस जारी किया गया है और तृणमूल कांग्रेस की किसी भी बैठक में उन्हें शामिल नहीं किया जा रहा है.
तृणमूल कांग्रेस ने एक-एक करके दिलीप बर्मन का पार्टी में कद छोटा करना शुरू कर दिया है, जिसका साफ संकेत है कि पार्टी में दिलीप बर्मन की कोई आवश्यकता नहीं है. उन्हें तृणमूल कांग्रेस परिषदीय दल की बैठक में बुलाया नहीं गया, जिसका आयोजन सिलीगुड़ी के पीडब्ल्यूडी बंगले में हुआ था. इस बात को दिलीप बर्मन भी समझने लगे हैं. क्योंकि वह एक अनुभवी नेता हैं. जिस पार्टी के लिए दिलीप बर्मन ने खून पसीना बहाया, उसे आसानी से वे छोड़ना भी नहीं चाहते हैं. दिलीप बर्मन चाहते हैं कि पार्टी से पूरी तरह किनारा लेने से पहले पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी कर दी जाए.
दिलीप बर्मन की भावी रणनीति का हालांकि अभी तक खुलासा नहीं हुआ है, परंतु थोड़ा-थोड़ा संकेत मिलने लगा है कि वे भविष्य में तृणमूल कांग्रेस और उसके नेताओं को कौन सी बड़ी सजा देना चाहते हैं. उन्होंने राजवंशी कार्ड खेलना शुरू कर दिया है. जिसके बाद टीएमसी और उसके नेताओं के पांव तले की धरती खिसकने लगी है. सिलीगुड़ी से लेकर कोलकाता तक तृणमूल कांग्रेस के नेता दिलीप बर्मन के राजवंशी कार्ड से निपटने की तैयारी शुरू कर चुके हैं. अगर एक दिलीप बर्मन को निपटाना होता तो तृणमूल कांग्रेस के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं होती. परंतु तृणमूल कांग्रेस उत्तर बंगाल में विशाल आबादी वाले राजवंशियों की नाराजगी मोल लेना नहीं चाहती. दिलीप बर्मन राजवंशी समुदाय से आते हैं और यही उन्होंने राजनीति का एक्का कार्ड खेला है.
राजवंशी समुदाय उत्तर बंगाल की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. चाहे लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का चुनाव, जिस पार्टी को राजवंशियों का वोट हासिल हो जाता है, वही उत्तर बंगाल में लीड भी करती है. अब तक राजवंशियों का वोट दिल खोलकर भाजपा को मिला है. तृणमूल कांग्रेस इस बार उत्तर बंगाल में खेला करना चाहती है और राजवंशियों का वोट हासिल करना चाहती है. आपको बता दें कि राजवंशी समुदाय कूचबिहार, जलपाईगुड़ी, सिलीगुड़ी के तराई Dooars क्षेत्र में एक प्रमुख जनजातीय समुदाय है. अपनी संस्कृति व सामाजिक पहचान को लेकर यह समुदाय हमेशा संघर्षशील रहा है.
दिलीप बर्मन ने ज्वलंत मुद्दे को सोशल मीडिया के जरिए जोर-शोर से उठाया है. जिस तरह से टीएमसी सरकार के प्रति राजवंशी समुदाय की प्रतिक्रिया आ रही है, वह दर्शाता है कि दिलीप बर्मन को आज भी राजवंशी लोगों का समर्थन मिल रहा है. यही कारण है कि टीएमसी दिलीप बर्मन को पार्टी से निकालने अथवा सीधा कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा रही है. दूसरी तरफ डैमेज कंट्रोल के लिए तृणमूल कांग्रेस की ओर से राजवंशी समुदाय के प्रमुख नेता नागेंद्र नाथ राय तथा दूसरे नेताओं के साथ संवाद स्थापित करने की कोशिश की जा रही है.
नागेन्द्र नाथ राय इस समय बीमार चल रहे हैं, जिन्हें देखने के लिए सिलीगुड़ी नगर निगम के मेयर गौतम देव और दार्जिलिंग जिला तृणमूल कांग्रेस के अध्यक्ष संजय टिबरेवाल हाल ही में उनके घर पहुंचे थे और उनका हाल लिया था. अब तृणमूल कोर कमेटी की सदस्या पापिया घोष भी उनका हाल-चाल लेने उनके घर गई.
नागेंद्र नाथ राय को उनके सामाजिक और शैक्षिक योगदान के लिए भारत सरकार से पहले ही पद्मश्री और शिक्षा रत्न पुरस्कार मिल चुका है. उत्तर बंगाल में राजवंशी समुदाय के बीच नागेंद्र नाथ राय की व्यापक स्वीकार्यता और प्रभाव है. टीएमसी के नेताओं की कोशिश होगी कि राजवंशी समुदाय के प्रमुख और अन्य नेताओं का समर्थन मिल जाए तो उनका काम आसान हो जाएगा. उससे पहले टीएमसी के नेता दिलीप बर्मन को चाह कर भी पार्टी से बाहर नहीं कर सकते. अगर ऐसा नहीं होता तो दिलीप बर्मन आज मेयर इन काउंसिल के सदस्य नहीं होते. उन्होंने इस पद से अभी इस्तीफा नहीं दिया है.