निश्चित रूप से यह खबर हृदय विदारक के साथ ही चिंता को बढ़ाने वाली है. सिलीगुड़ी के एक निजी स्कूल की कक्षा चार के एक बच्चे की हृदयाघात से मौत हो गई है. बच्चे का नाम मास्टर कृष्णन बसाक बताया जाता है. वह स्कूल का सबसे होनहार और मेधावी छात्र था. उसकी अकस्मात मौत के बाद स्कूल में सन्नाटा पसरा हुआ है. शिक्षक और अभिभावक सभी दुखी हैं. किसी को विश्वास नहीं हो रहा है कि एक बच्चे को भी हृदयाघात हो सकता है. बच्चे के अभिभावकों का रो-रोकर बुरा हाल है.
हमारे समाज में यह धारणा व्याप्त है कि हार्ट अटैक केवल बड़ों को ही होता है. छोटे बच्चों को हार्ट अटैक नहीं होता. लेकिन इस घटना के सामने आने के बाद बच्चों के अभिभावक भी चिंतित हैं. जैसे ही यह खबर सामने आई, जिन्होंने भी इस खबर को सुना, उन्हें सुनकर काफी धक्का लगा. हालांकि चिकित्सकों का कहना है कि हृदय की बीमारी सिर्फ बड़े और बूढ़ों को ही नहीं बल्कि बच्चों में भी देखने को मिल रही है. दिल का दौरा तभी पड़ता है, जब हृदय में रक्त की आपूर्ति बाधित हो जाती है. इससे हृदय की मांसपेशियों को काफी नुकसान पहुंचता है.
सिलीगुड़ी के जाने माने चिकित्सकों ने बताया कि यह तभी होता है जब कोरोनरी आर्टरी में ब्लॉक के निर्माण से आर्टरी फट जाती है. इससे रक्त का थक्का बनने लगता है, जो रक्त संचार को अवरोध कर देता है. ब्लड सर्कुलेशन की कमी से हृदय की मांसपेशियों के ऊतकों को जबरदस्त नुकसान पहुंचता है. इसमें रोगी की जान जाने का भी खतरा उत्पन्न हो जाता है. बच्चों में हाल के दिनों मे हार्ट अटैक के खतरे बढ़ गए हैं. एक दसवीं कक्षा में पढ़ने वाले एक 16 साल के लड़के को भी हार्ट अटैक हुआ और अस्पताल में ले जाते समय ही उसकी मौत हो गई.
इसी तरह से कुछ दिनों पहले यह खबर आई थी कि ग्रेटर नोएडा के एक विद्यालय में पढ़ने वाले आठवीं कक्षा के छात्र की हृदय गति रुक जाने से मौत हो गई.छात्र की उम्र 15 साल थी. छात्र विद्यालय में खेल रहा था. अचानक सीने में दर्द उठा. उसके बाद उसे निजी अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. ऐसे अनेक मामले हैं जहां बच्चों ने हार्ट अटैक के चलते अपनी जान गंवा दी. ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिर बड़े बुजुर्गों को होने वाली बीमारी बच्चों में क्यों उत्पन्न हो रही है?
इसके विभिन्न कारण है. वर्तमान लाइफस्टाइल ऐसी है कि बच्चे इसके तेजी से शिकार हो रहे हैं. बच्चे समय पर खाना पीना नहीं खाते. इसके अलावा उनकी फिजिकल एक्टिविटी घटती जा रही है. वह हर समय मोबाइल में ही लगे होते हैं. बिना कुछ खाए पिए घंटो कंप्यूटर पर गेम खेल रहे होते हैं, जिसकी वजह से उनके शरीर में मेटाबॉलिक रेट खराब हो रहा है. हाइपोग्लाइसीमिया की वजह से उनमें हार्ट अटैक का खतरा बढ़ रहा है. डॉक्टरों ने बताया कि कुछ बच्चे फास्ट फूड और जंक फूड का ज्यादा सेवन करते हैं. इसके कारण उनके शरीर में जरूरी पोषक तत्वों की कमी होने लगती है. इससे हृदय में रक्त संचालन में भी कमी हो सकती है.
कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से बच्चों का रूटीन पूरी तरह से खराब हो चुका है. देर रात तक जागना, मोबाइल में व्यस्त रहना, गेम खेलना, सुबह देर से उठना, यह सारी चीजे उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है. इस तरह की लाइफस्टाइल में बच्चों में हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है. डॉक्टरों ने सुझाव दिया है कि बच्चों को हार्ट अटैक से बचाने के लिए बच्चों में अच्छी आदतों का विकास किया जाना चाहिए. इसके लिए माता-पिता को जागरूक रहने की जरूरत है.
बच्चों को शारीरिक श्रम के लिए प्रेरित करना चाहिए. इसके अलावा पढ़ाई अथवा अन्य मामलों में उत्पन्न होने वाले उनके तनाव को दूर करने के लिए उनसे बात करनी चाहिए तथा उनके प्रश्नों का उत्तर देना चाहिए. बच्चे जितना अधिक रिलैक्स महसूस करेंगे, उनके स्वास्थ्य के लिए उतना ही अच्छा होगा. इसके अलावा माता-पिता को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे बाजार के सामान कम खाएं और घर में ही शुद्ध पौष्टिक भोजन करें. जंक फूड बच्चों का दुश्मन है. इससे दूरी बनाकर रहे और प्रकृति के अनुसार स्वस्थ दिनचर्या का पालन करें.
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