केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ देशभर में 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलाए गए भारत बंद का सिलीगुड़ी में असर देखा गया. सिलीगुड़ी के शहरी क्षेत्रों में बाजार, दुकान ,संस्थान आदि बंद रहे. हालांकि ग्रामीण और बस्ती क्षेत्रों में बंद का कोई असर नहीं देखा गया. S F Road, महावीर स्थान, नया बाजार ,विधान मार्केट, सेवक रोड और कई बाजार बंद रहे. निजी और सरकारी सभी तरह के बैंक बंद रहे. सड़कों पर गाड़ियां तो चली, लेकिन उनकी उपस्थिति बेहद कम रही.
पेंशन और विभिन्न मांगों को लेकर रेलवे ट्रेड यूनियनों की ओर से एनजेपी एडीआरएम ऑफिस के सामने धरना प्रदर्शन की भी जानकारी मिली है. जलपाईगुड़ी, कूचबिहार,अलीपुरद्वार आदि जिलों में भी बंद समर्थकों और बंद विरोधियों ने अलग-अलग रैलियां निकालीं.कई जगह से छिटपुट संघर्ष की भी जानकारी मिल रही है. हालांकि बंद आधिकारिक तौर पर शांतिपूर्ण रहा.
ब॔द को लेकर संभावित हिंसा अथवा पथराव की आशंका को देखते हुए सिलीगुड़ी में राज्य परिवहन की बसों के चालकों ने हेलमेट पहनकर ड्यूटी की. बस चालकों ने बताया कि उन्हें इस बात की आशंका थी कि बंद समर्थकों के द्वारा पथराव किया जा सकता है. इसलिए उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए हेलमेट पहनना जरूरी समझा. बस ड्राइवरों के हेलमेट पहनने की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. यात्रियों में भी डर और चिंता का माहौल देखा गया. हालांकि दोपहर में अधिकांश रूटों पर बस सेवा सामान्य रूप से जारी रही.
भारत बंद के दौरान सिलीगुड़ी और आसपास के इलाकों में बंद समर्थकों और विरोधियों के बीच सुबह के समय कुछ स्थानों पर झड़पों की भी खबर आई. हालांकि बाद में पुलिस ने पहुंचकर मामले को शांत करा दिया. ऐसी खबर भी आ रही है कि हिल कार्ट रोड पर वामपंथियों के सड़कों पर उतरने और प्रदर्शन करने के दौरान पुलिस से झड़प हो गई. इस क्रम में एक सुरक्षा बल जवान की टोपी उतारने की भी जानकारी मिली है. हाशमी चौक पर भी बंद समर्थकों और विरोधियों के बीच तनावपूर्ण स्थिति देखी गई.
सिलीगुड़ी के निकट नक्सलबाड़ी इलाके में सतभैया मोड़ के पास एशियन हाईवे बंद कराने पहुंचे बंद समर्थकों ने जबरन एशियन हाईवे को बंद करा दिया. इससे वाहनों का आवागमन बाधित हो गया. आरोप है कि तृणमूल कांग्रेस श्रमिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने बंद समर्थकों के साथ धक्का मुक्की की और एशियन हाईवे को खाली करवा दिया. बंद समर्थकों के द्वारा आरोप लगाया जा रहा है कि पुलिस की उपस्थिति में तृणमूल श्रमिक संगठनों ने उनसे हाथापाई की और पुलिस मूकदर्शक बनकर देखती रही. हालांकि पुलिस ने मौके पर पहुंचकर तनावपूर्ण स्थिति को नियंत्रित किया. और एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया.
सिलीगुड़ी में बंद को सफल करने के लिए सिलीगुड़ी प्रशासन की ओर से शहर में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई थी. जगह-जगह पर पुलिस और सुरक्षा बल के जवान मुस्तैद थे. राज्य सरकार की ओर से पहले से ही बंद का समर्थन नहीं करने के लिए नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया था.इसलिए बंद विरोधी भी सड़कों पर नजर आए. कानून एवं व्यवस्था को बनाए रखते हुए सिलीगुड़ी मेट्रोपोलिटन पुलिस ने बंद के दौरान माहौल को बिगड़ने नहीं दिया.
सिलीगुड़ी में बंद की सफलता को लेकर लोगों के अलग-अलग विचार हैं. कुछ लोगों के अनुसार आज के बंद को लेकर सीपीएम और ट्रेड यूनियनों की ओर से जमकर प्रचार किया गया था. इसलिए शहर के दुकानदारों और व्यापारियों ने आज बंद रखने के हिसाब से ही अपना काम पहले ही निपटा लिया था. हालांकि कुछ लोग यह भी कहते हैं कि सुबह के समय बंद समर्थकों ने उनकी दुकान बंद करा दी. उसके बाद उन्होंने पूरा दिन दुकान बंद रखी. बंद का व्यापक प्रचार करने के कारण ही बंद का सफल होना भी माना जा रहा है.
अगर लोग अपने घरों से कम निकले तो इसका एक प्रमुख कारण यह भी था. भारत बंद का आह्वान करने वाली ट्रेड यूनियनों के द्वारा लोगों के दिमाग में यह बात बैठा दी गई थी कि केंद्र सरकार की श्रम नीतियों के कारण ही बेरोजगारी, महंगाई और संस्थाओं का निजीकरण हो रहा है. यह बात मजदूर ,श्रमिकों और दैनिक मजदूरी करने वाले लोगों के दिल को छू गई और उन्होंने बंद का समर्थन कर दिया. सिलीगुड़ी में भारत बंद सफल होने का पहले से किया गया व्यापक प्रचार एक बड़ा हथियार साबित हुआ था.
मालूम हो कि ट्रेड यूनियनों ने पिछले साल श्रम मंत्री मनसुख मांडवीया को 17 सूत्री मांगों का एक ज्ञापन सौंपा था. जिस पर मंत्रालय की ओर से कोई विचार नहीं किया गया. यूनियन फोरम तभी से अपनी मांगों को लेकर संघर्ष कर रहा है. जब सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया तो मजबूर होकर उन्होंने बंद बुलाया था. भारत बंद से बैंकिंग, डाक सेवाएं तथा सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में कार्य नहीं हो सका.
श्रमिक संगठनों ने न्यूनतम मासिक वेतन 26000 करने और पुरानी पेंशन योजना बहाल करने जैसी मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बनाने के मकसद से हड़ताल का आह्वान किया था. संयुक्त किसान मोर्चा और नरेगा संघर्ष मोर्चा जैसे संगठन भी हड़ताल का समर्थन कर रहे थे.