November 4, 2024
Sevoke Road, Siliguri
उत्तर बंगाल लाइफस्टाइल सिलीगुड़ी

बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा का प्रवचन सुनने के लिए सालूगाड़ा में उमड़ा भक्तों का जन सैलाब!

बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा सिक्किम की अपनी आध्यात्मिक यात्रा समाप्त करने के बाद सीधे सिलीगुड़ी पहुंचे. यहां उनके दर्शन के लिए भक्तों का अंबार लगा था. सालूगाड़ा स्थित गुंबा में आयोजित उनके दिव्य प्रवचन कार्यक्रम को सुनने के लिए लगभग 20 से 25 हजार भक्त और सामान्य लोग दार्जिलिंग, कालिमपोंग, सिक्किम, डुवार्स और सिलीगुड़ी तथा आसपास के क्षेत्रो से आए थे. इन भक्तों में नेपाल और भूटान से भी काफी संख्या में लोग आए थे. सालूगाड़ा पहुंचने पर धर्मगुरु का भव्य स्वागत किया गया. उनके स्वागत के लिए सिलीगुड़ी नगर निगम के मेयर गौतम देव, डिप्टी मेयर रंजन सरकार, प्रशासनिक अधिकारी और शहर के गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे.

एक दिन पहले ही बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा के प्रस्तावित कार्यक्रम को देखते हुए ताकि भक्तों को गुंबा तक पहुंचने में कोई परेशानी ना हो, सिलीगुड़ी ट्रैफिक विभाग के द्वारा मालवाहक गाड़ियों के लिए रूट परिवर्तन किया गया था. जो आज भी जारी रहेगा. इसके अलावा गुंबा के आसपास में सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था की गई है. दलाई लामा भक्तों को अपना दिव्य प्रवचन दे रहे हैं. भक्त बड़े ध्यान और अदब से उनकी वाणी सुन रहे हैं.

दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई 1935 को तिब्बत में हुआ था. 2 साल की उम्र में उनका नामकरण लहामो धोंडुप किया गया. उन्हें पिछले 13 वें दलाई लामा, थुबटेन ज्ञात्सो के पुनर्जन्म के रूप में पहचान मिली. दलाई लामा ने 6 साल की उम्र में ही अपनी मठ शिक्षा आरंभ की. 23 साल की उम्र में वे 1959 में वार्षिक महान प्रार्थना महोत्सव के दौरान ल्हासा के चोखांग मंदिर में अपनी अंतिम परीक्षा के लिए बैठे. वे उत्कृष्टता के साथ उत्तीर्ण हुए. इसके बाद उन्हें बौद्ध दर्शन में सर्वोच्च डॉक्टरेट के बराबर गेशे ल्हारंपा डिग्री से सम्मानित किया गया.

1950 में चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर दिया. इसका जवाब देने के लिए परम पावन दलाई लामा को बुलाया गया. 1954 में दलाई लामा बीजिंग गए, जहां वे माओतसेतुंग, देंग जिया ओपिंग, चाउ एनलाई समेत कई चीनी नेताओं से मिले. आखिर में 1959 में चीनी सैनिकों द्वारा ल्हासा में तिब्बती राष्ट्रीय विद्रोह के कठोर दमन के बाद परम पावन को निर्वासित कर दिया गया. तब से वह उत्तर भारत की धर्मशाला में रह रहे हैं.

1963 में परम पावन दलाई लामा ने तिब्बत के लिए एक लोकतांत्रिक संविधान का मसौदा प्रस्तुत किया. नए लोकतांत्रिक संविधान को निर्वासित तिब्बतियों का चार्टर नाम दिया गया. चार्टर भाषण, विश्वास, सभा और आंदोलन की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है. यह निर्वासन में रह रहे तिब्बतियों के संबंध में तिब्बती प्रशासन के कामकाज पर विस्तृत दिशा निर्देश भी प्रदान करता है. दलाई लामा के तिब्बत में किए गए सुधार के परिणाम स्वरूप 1990 में निर्वासित तिब्बती प्रशासन पूरी तरह से लोकतांत्रिक हो गया.

परम पावन दलाई लामा शांति के अग्रदूत हैं. 1989 में तिब्बत की मुक्ति के लिए उनके अहिंसक संघर्ष के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उन्होंने लगातार अहिंसा की नीतियों की वकालत की है. दलाई लामा ने 67 से अधिक देशों की दिव्य यात्रा की है.शांति, अहिंसा, अंतर धार्मिक समझ, सार्वभौमिक जिम्मेदारी और करुणा के उनके संदेश की मान्यता में उन्हें 150 से अधिक पुरस्कार, मानद डॉक्टरेट आदि प्राप्त हुए हैं. श्री दलाई लामा ने 110 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है.

दलाई लामा भारत में जहां भी जाते हैं, उनके दिव्य प्रवचन को सुनने के लिए भक्तों का मेला लग जाता है. आज सिलीगुड़ी पहुंचने पर एक लोकप्रिय ANI समाचार एजेंसी के संवाददाता के पूछने पर बौद्ध धर्म गुरु ने कहा कि हम तिब्बती लोग अपने ही देश में रिफ्यूजी हैं. तिब्बती लोगों को कई प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है. वे खुलकर अपनी बात नहीं कह सकते हैं. लेकिन भारत में पूरी आजादी है, अपनी बात कहने और भावनाओं को व्यक्त करने की. उन्होंने कहा कि भारत में पूरी शांति है. दलाई लामा ने घोषणा की है कि जब वह लगभग 90 साल के हो जाएंगे, तब तिब्बत की बौद्ध परंपराओं के प्रमुख लामा, तिब्बती जनता और तिब्बती बौद्ध धर्म में रुचि रखने वाले अन्य संबंधित लोगों से परामर्श करेंगे और यह आकलन करेंगे कि क्या दलाई लामा की संस्था उनके बाद भी जारी रहनी चाहिए.

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