आज दोपहर 12:00 बजे सालासर दरबार, संतोषी नगर के परम महंत और संत श्री छिंतरमल शर्मा का देहावसान हो गया. वे अपने पीछे भक्त और भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं. गुरु जी के आकस्मिक देहांत की खबर जैसे ही उनके भक्तों को मिली, वे शोक विह्वल हो गए. किसी को विश्वास ही नहीं हुआ कि अचानक गुरुजी परलोकवासी हो जाएंगे.
गुरु जी के निधन के बाद उनके भक्तों और शिष्यों की ओर से शोक संवाद और श्रृद्धाजंलियां व्यक्त की जा रही है. दार्जिलिंग मोड, दुर्गा गुड़ी, नवग्रह मंदिर के पंडित ध्रुव उपाध्याय ने अपने शोक संदेश में कहा है कि गुरुजी छिंतरमल शर्मा एक सादा जीवन और उच्च विचार के संत थे. उन्होंने हमेशा ही जरूरतमंदों की मदद की. उन्होंने अपने शोक संदेश में कहा है कि गुरु जी ने जिन्हें भी अपना आशीर्वाद प्रदान किया, वह जरूर फलित हुआ है. ईश्वर उन्हें श्री चरणों में जगह दे.
गुरुजी श्री छिंतरमल शर्मा ने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया था. यह वह दौर था, जब लोग रोजी-रोटी और स्व सुखाय की बात करते थे. उस दौर में समाज, धर्म, कर्तव्य और परहित की बात कुछ ही लोग करते थे. उनमें गुरु जी श्री छिंतरमल शर्मा भी एक थे. उन्होंने लोगों को समाज और धर्म से जोड़ने के लिए श्री सालासर दरबार को अपना माध्यम बनाया और समाज की सेवा को अपना लक्ष्य बनाया.
जो लोग भी श्री गुरु जी छिंतरमल शर्मा को जानते हैं, उन्हें पता है कि वे बहुत कम बोलते थे. लेकिन उनकी वाणी और भविष्यवाणी काफी सटीक होती थी. बड़े से बड़े कठिन मामलों में वे सोच विचार कर बोलते थे और फैसला करते थे. अपने भक्तों और समाज के लोगों के साथ वे सहज ही घुल मिल जाते थे.
सिलीगुड़ी में गुरु जी के भक्तों की तादाद हजारों में है. कोई भी तीज त्यौहार हो, धार्मिक रीति रिवाज और संस्कार हो,सालासर दरबार में बड़े ही धूमधाम और न्यायोचित ढंग से गुरु जी की निगरानी और निर्देश में उत्सव मनाया जाता था और प्रसाद का वितरण किया जाता था. सालासर दरबार में आए भक्त और सामान्य लोगों पर गुरु जी की समान कृपा रहती थी. सालासर दरबार से कोई भी खाली हाथ नहीं जाता था.
मौजूदा समय में जब लोग स्वार्थी और स्वहित की बात करते हैं, ऐसे में समाज और धर्म की रक्षा करना कठिन होता है. लेकिन कुछ साधु संत अपने स्वार्थ और निजी हित की चिंता किए बगैर समाज और धर्म की रक्षा के लिए जी जान लगा देते हैं. क्योंकि उन्हें पता होता है कि शरीर तो नश्वर है. एक दिन सभी को ही परलोकवासी होना है, तो ऐसे में धर्म और समाज तो जिंदा रहना ही चाहिए.
गुरुजी श्री छिंतरमल शर्मा का दृष्टिकोण उनके संस्कारों और आत्म अनुभूति से ही प्रस्फुटित होता है. कहते हैं कि जो लोग मौन साधना करते हैं या बहुत कम बोलते हैं, उनके अंतर्मन में बड़ी-बड़ी बातें होती हैं. वैज्ञानिक और सटीक दृष्टिकोण वाले होते हैं. गुरुजी में कई ऐसे गुण थे, जिनका पालन करके समाज को एक नई दिशा और ऊर्जा दी जा सकती है. गुरुजी पर भगवान की अद्भुत कृपा थी. धर्म और साधना के पथ पर निरंतर चलते रहे. ऐसे संत का अचानक चले जाना, सिलीगुड़ी के धार्मिक समाज,भक्तों और संतों के लिए एक अपूरणीय क्षति है.
गुरु जी का पार्थिव शरीर आज भक्तों के दर्शन के लिए रखा गया है. कल रविवार को दिन में 11:30 बजे उनकी अंत्येष्टि की जाएगी. उनका दाह संस्कार रामघाट पर किया जाएगा. गुरु जी ने समाज के हित में नेत्रदान करने का फैसला किया था. उनकी इच्छा और संकल्प को ध्यान में रखते हुए नेत्रदान की प्रक्रिया पूरी कर ली गई है. खबर समय परिवार की ओर से उन्हें बहुत-बहुत श्रद्धांजलि!