December 22, 2024
Sevoke Road, Siliguri
उत्तर बंगाल कालिम्पोंग मौसम सिलीगुड़ी

एक्सक्लूसिव: सिक्किम और पहाड़ को कैसे तीस्ता त्रासदी से बचायें?

हालांकि अगले हफ्ते से उत्तर बंगाल और सिक्किम में बारिश की रफ्तार धीमी पड़ सकती है. परंतु यह भी सत्य है कि आगे भी बारिश होती रहेगी और सिक्किम समेत पूरे पहाड़ को भूस्खलन और बाढ़ से जूझते रहना पड़ सकता है. सिलीगुड़ी और पहाड़ के मौसम का कोई भरोसा नहीं होता है. कब धूप खिल जाए और कब आसमान बरसने लगे. जब जब सिक्किम में बरसात होती है, तो तीस्ता का जलस्तर इस कदर बढ़ जाता है कि तीस्ता के तट पर रहने वाले लोगों को भयानक त्रासदी का सामना करना पड़ता है. गांव के गांव बाढ़ में डूब जाते हैं.

पिछले दिनों खबर समय की टीम बाढ़ में डूबे ग्रामीणों का हाल लेने पहुंची तो पीड़ित लोगों का हाल देखा नहीं जा रहा था. तीस्ता थोड़ी सी बरसात में ही विकराल रूप ले लेती है. तीस्ता के तट पर बसे गांव लालटंग बस्ती और चमकडांगी तो सबसे पहले प्रभावित होते हैं. बंगाल सफारी के नजदीक ही जंगलों में स्थित ये गांव तीस्ता के तट पर स्थित है. यहां के लोग मौसम खराब होने और तीस्ता का जल स्तर बढ़ने के बाद रात में सो नहीं पाते हैं. जंगली जानवरों का भी खतरा बना रहता है. यहां के लोग बताते हैं कि तीस्ता कब भयानक रूप ले लेती है और कब शांत हो जाती है,कुछ पता नहीं होता. इसलिए जब-जब यहां पहाड़ में बरसात होती है तो गांव वालों की नजर तीस्ता पर टिक जाती है.

ऐसे में सवाल उठता है कि पहले तो तीस्ता पहाड़ के लोगों के लिए संकट नहीं थी. अब अचानक पिछले एक साल से यह पहाड़ के लिए अभिशाप क्यों बन चुकी है. खबर समय ने इसकी पड़ताल करने का फैसला किया और विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले कुछ बुद्धिजीवियों और विशेषज्ञों से इस पर चर्चा भी की है. आखिर क्या कारण है कि 2023, 4 अक्टूबर को सिक्किम समेत पूरा पहाड़ कांप गया था, जब दक्षिण लहोनक झील के फटने से तीस्ता में ज्वार उठा. उसके बाद से इसका प्रभाव यहां के अन्य संसाधनों पर भी पड़ा है. इनमें से NH-10 भी शामिल है.

सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग, GTA के चीफ अनित थापा तथा शासन प्रशासन के अधिकारियों और नेताओं की माने तो 2023 में तीस्ता नदी में आयी बाढ़ के कारण पहाड़ से बहकर आयी मिट्टी और सिल्ट ने नदी के तल को बढ़ा दिया है. जिसके कारण थोड़ी सी बरसात होते ही तीस्ता का पानी फैलने लगता है और आसपास के गांव में घुसकर तबाही का कारण बन जाता है. इसके कारण NNH-10 को भी भयंकर नुकसान पहुंचता है.

प्रभावित सिटीजंस तीस्ता के महासचिव और जाने-माने पर्यावरण विद M लेप्चा के अनुसार पिछले वर्ष सिक्किम में आई बाढ़ ने तीस्ता नदी के तल को काफी बढ़ा दिया है. यही कारण है कि हल्की-फुल्की बरसात में ही तीस्ता नदी अपने तल में बारिश के पानी को रोक नहीं पाती है और बहकर यह बाढ़ का कारण बन जाती है. उन्होंने खबर समय से बातचीत करते हुए कहा कि तीस्ता नदी में अनेक बांध बनाए गए हैं. यह बांध भी तीस्ता के तल को बढ़ा रहा है. क्योंकि नदी के मार्ग में बांध रहने से पहाड़ से बहकर आई मिट्टी पत्थर, बोल्डर आदि के लगातार प्रवाह में बहने का संपर्क टूट जाता है और यह कहीं ना कहीं नदी के तल में बैठ जाते हैं, जिससे गाद भरने की समस्या व्यापक हो जाती है.

M लेप्चा के अनुसार वर्तमान में सिक्किम में तीस्ता नदी के कारण जो संकट की स्थिति उत्पन्न हुई है, वह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं है. बल्कि यह मानव निर्मित आपदा है. उन्होंने इस आपदा के लिए नदी में बनाए गए बांध को जिम्मेदार माना है. उन्होंने कहा कि उत्तरी सिक्किम को इससे भारी खतरा है. एक दूसरे बुद्धिजीवी और मौसम वैज्ञानिक गोपीनाथ राहा बताते हैं कि हर साल बरसात में ऐसा होना सामान्य है. उन्होंने कहा कि इस साल पिछले वर्ष के मुकाबले बरसात ज्यादा हुई है. जिसके कारण सिक्किम को विषमता का सामना करना पड़ा है. तीस्ता पर पिछले 25-30 सालों से अध्ययन कर रहे वरिष्ठ पत्रकार देवाशीष सरकार बताते हैं कि तीस्ता नदी लगातार अपनी दिशा बदल रही है. उनके अनुसार तीस्ता की दिशा बदलने से ही लगातार समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं.

उन्होंने कहा कि तीस्ता नदी पहाड़ियों के बीच से बहती है. बड़े-बड़े पहाड़ के नीचे की चट्टानों की संरचना काफी सॉफ्ट है जबकि पहाड़ का ऊपरी हिस्सा सख्त rock से बना है. नदी के पहाड़ के तल में बहते रहने से पहाड़ की सॉफ्ट भूमि नरम पड़ जाती है जिसके कारण आधार कमजोर होने और चोटी का भाग भारी होने से भूस्खलन की घटनाए बढ़ जाती है. यह मलबा सीधे NH-10 पर गिरते हैं, जिसके कारण NH-10 ध्वस्त होता जाता है. लालटंग बस्ती के बारे में उन्होंने बताया कि यह बस्ती पिछले 10 15 सालों से ही तीस्ता के निशाने पर रही है. लेकिन तब किसी ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया.

विभिन्न विशेषज्ञों और पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार सिक्किम को तीस्ता त्रासदी से बचाने और पहाड़ के लोगों के जान माल की सुरक्षा के लिए यह जरूरी है कि पहाड़ में वनों की कटाई पर तत्काल रोक लगे. क्योंकि हाल के दिनों में पहाड़ में आबादी बढ़ने से आवास की समस्या के समाधान के लिए वन जंगलों में पेड़ो की कटाई की गई. जबकि वृक्ष और जंगल भूमि को बांधकर रखते हैं. यह चट्टान को स्थिर रखते हैं. जब पेड़ ही नहीं रहेंगे तो चट्टान कैसे सुरक्षित रह पाएगी? सिक्किम और पहाड़ को संकट से बचाने के लिए विशेषज्ञों के विभिन्न सुझावों पर एक बार जरूर विचार करना चाहिए. यह सच है कि विकास जरूरी है, परंतु विकास प्राकृतिक संपदाओं से खिलवाड़ करके नहीं किया जाना चाहिए. बद्रीनाथ त्रासदी इसका ज्वलंत उदाहरण है, जहां जान माल का भारी नुकसान हुआ था.

(अस्वीकरण : सभी फ़ोटो सिर्फ खबर में दिए जा रहे तथ्यों को सांकेतिक रूप से दर्शाने के लिए दिए गए है । इन फोटोज का इस खबर से कोई संबंध नहीं है। सभी फोटोज इंटरनेट से लिये गए है।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *