स्वास्थ्य के प्रति लोगों में आई जागरूकता ने हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी की ओर उन्हें आकर्षित किया है. हालांकि इस पर लगने वाली जीएसटी की ऊंची दर ने अनेक परिवारों को हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी से दूर भी किया है. ग्राहक तो यही चाहते हैं कि हेल्थ इंश्योरेंस पर से जीएसटी को हटाया जाए. ताकि उन्हें राहत मिल सके.
सिलीगुड़ी में अनेक लोगों ने हेल्थ पॉलिसी ले रखी है. पर अभी भी एक बड़ी तादाद में लोग हैं जो हेल्थ पॉलिसी से दूर हैं.ताकि हेल्थ पॉलिसी सभी लोग ले सकें, इसके लिए जरूरी है कि इसे अधिक से अधिक सस्ता किया जाए. स्वास्थ्य बीमा पर जीएसटी कम करने अथवा हटाने की चर्चा काफी समय से की जा रही है. अब ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य बीमा से जीएसटी कम करने अथवा पूरी तरह हटाने का फैसला कर लिया है. इसकी आधिकारिक घोषणा जीएसटी काउंसिल की 9 सितंबर की होने वाली बैठक में की जा सकती है. 9 सितंबर को जीएसटी काउंसिल की 54 वी बैठक होने जा रही है.
इस समय अगर आप हेल्थ पॉलिसी लेते हैं तो आपको 18% जीएसटी देना पड़ता है, जो कि एक सामान्य ग्राहक के लिए एक बड़ी रकम हो जाती है.अनेक लोग जीएसटी के कारण ही हेल्थ पॉलिसी से दूर भागते हैं. अगर इस पर से जीएसटी हटा दी जाती है तो हेल्थ पॉलिसी के खरीदार अधिक होंगे. सरकार भी इस बात को अच्छी तरह समझती है. हमारे देश में लोगों में स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूकता आई है. यही कारण है कि विभिन्न कंपनियों की हेल्थ पॉलिसी लोग खरीद रहे हैं.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत अनेक नेताओं ने हेल्थ इंश्योरेंस पर से जीएसटी हटाने की वकालत की है. इसका सरकार पर दबाव भी बढा है. मिल रहे संकेत के अनुसार जीएसटी काउंसिल की 9 सितंबर को होने वाली बैठक में इस पर विचार किया जा सकता है. संभावना इस बात की है कि पूरी तरह से जीएसटी हटा लिया जाए. या फिर कम से कम जीएसटी का भार ग्राहकों को उठाना पड़े. पर इन सभी में एक बड़ी समस्या यह है कि इंश्योरेंस पर लगने वाली जीएसटी का अधिक भाग राज्यों को मिलता है. ऐसे में सवाल यह भी है कि हेल्थ इंश्योरेंस पर से जीएसटी हटाने के लिए कितने राज्य आगे आते हैं.
बता दे कि जीवन और स्वास्थ्य बीमा से मिलने वाले जीएसटी का 72% हिस्सा राज्यों के खाते में जाता है. जबकि 28% केंद्र के खाते में जाता है. ऐसे में केंद्र सरकार इस पर सहमत हो सकती है कि हेल्थ इंश्योरेंस पर से जीएसटी हटा दिया जाए.पर क्या राज्य सरकार इस पर सहमत होती है? यह एक बड़ा सवाल है. पिछले दिनों कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों ने हेल्थ इंश्योरेंस पर जीएसटी को लेकर केंद्र पर गंभीर आरोप लगाए थे. विपक्षी पार्टियों ने कहा था कि केंद्र सरकार लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रही है और पैसा बना रही है.
स्वयं केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने भी वित्त मंत्री को एक पत्र लिखा था. नितिन गडकरी के पत्र का हवाला देते हुए वित्त मंत्री ने राज्य सरकारों को ही कटघरे में खड़ा कर दिया. उन्होंने विपक्षी पार्टियों से कहा था कि वह इस मुद्दे को अपने राज्य के वित्त मंत्रियों के समक्ष उठाएं. क्योंकि जब-जब जीएसटी काउंसिल की बैठक होती है तब राज्य के वित्त मंत्री इसमें शामिल होते हैं. वित्त मंत्री ने कहा था कि हेल्थ इंश्योरेंस से मिलने वाले राजस्व में आधी हिस्सेदारी राज्यों को होती है. केंद्र को मिलने वाली 50% की राशि में से 41% राशि सभी राज्यों को वितरित कर दी जाती है. बहरहाल अब सबकी निगाहें 9 सितंबर को होने वाली जीएसटी काउंसिल की बैठक पर टिकी है.
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